
आर्मेनिया को हथियार देने पर क्यों राजी हुआ भारत? इजरायल के दोस्त पर टूटेगा पिनाका का कहर
नई दिल्ली, 30 सितंबरः अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच बीते कुछ दिनों से फिर जंग शुरू हो गई है। इसी बीच ऐसी खबर आयी है कि आर्मेनिया ने भारत से हथियार खरीदने का सौदा किया है। आर्मेनिया 2 हजार करोड़ रुपए के मिसाइल, रॉकेट और गोला-बारूद समेत पिनाका लॉन्चर भारत से खरीदने जा रहा है। सबसे पहले भारत अपना पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर भेजेगा। इसे डिफेंस मिनिस्ट्री की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने डेवलप किया है। खास बात है कि पिनाका का यह पहला निर्यात ऑर्डर है।

50 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हमला करता है पिनाका
आर्मेनिया वह पहला ऐसा देश होगा जिसके पास पिनाका जैसा अत्याधुनिक मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर होगा। पिनाका एमके-आई रॉकेट प्रणाली की मारक क्षमता लगभग 45 किमी और पिनाका-2 रॉकेट सिस्टम की मारक क्षमता 60 किमी है। पिनाका-3 को एक गाइडेड मिसाइल की तरह तैयार किया गया है। इस एडवांस वर्जन की मारक क्षमता 120 किलोमीटर है। इस मिसाइल में एडवांस नेविगेशन और कंट्रोल सिस्टम लगाया गया है। भगवान शिव के धनुष के नाम पर रखा गया पिनाका रॉकेट सिस्टम 44 सेकेंड में 12 रॉकेट लॉन्च करता है। यानी करीब 4 सेकेंड में एक रॉकेट लांच होता है। प्रत्येक रॉकेट 250 किलोग्राम तक के बम अपने साथ ले जा सकता है। अपने टारगेट पर यह 50 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हमला करता है।

तुर्की, पाकिस्तान और इजरायल तीनों अजरबैजान के मित्र राष्ट्र
तुर्की, पाकिस्तान और इजरायल तीनों अजरबैजान के मित्र राष्ट्र हैं। 2020 में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच झड़प के बाद तुर्की और इजरायल ने भारी तादाद में शस्त्रों की आपूर्ति की। तुर्की में बने टीबी-2 ड्रोन से अजरबैजान के जमकर तबाही मचाई और आर्मीनिया की सेना के हौसले पस्त कर दिए। तुर्की के इन ड्रोन विमानों ने आर्मीनिया के तोप, टैंक और अन्य घातक हथियारों नष्ट कर दिया था। अजरबैजान अपने सैन्य संबंधों को बेहतर बनाने के लिए चीनी मूल के जेएफ -17 लड़ाकू विमान हासिल करने के लिए पाकिस्तान से करार करने वाला है।

अजरबैजान के साथ रिश्ते क्यों बनाना चाहता है इजरायल?
वहीं दूसरी ओर इजरायल ने कामिकेज ड्रोनों की बड़ी खेप अजरबैजान को दी है। इजरायल, अजरबैजान की मदद करने के बदले ईरान को चुनौती देने के लिए नए तरीकों की तलाश कर रहा है। अजरबैजान, ईरान के साथ लगभग 420 मील लंबी सीमा साझा करता है। शिया बहुल देश होने के बावजूद दोनों देशों के बीच वर्षों से संबंध लगभग खराब ही रहे हैं। ऐसे में इजरायल, अजरबैजान और ईरान के बीच छिपे तनाव को अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की उम्मीद कर रहा है। ईरान के उत्तरी पड़ोसी अजरबैजान के साथ रक्षा संबंध मजबूत करने की वजह यही है।

भारत से मदद मांगने पर मजबूर हुआ आर्मेनिया
बीते तीन दशक से रूस आर्मेनिया का परंपरागत साथी रहा है। वह रूस ही है जिसने भारी मात्रा में आर्मेनिया को अस्त्र-शस्त्र की आपूर्ति की है। लेकिन बीते कुछ समय से रूस का आर्मेनिया को वैसा समर्थन नहीं मिला है जिसकी वह उम्मीद करता है। 2020 में हुए जंग तुर्की और पाकिस्तान खुल कर में अजरबैजान के साथ थे लेकिन रूस ने तटस्थ रहना ही बेहतर समझा। वहीं, अब जब रूस, यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है तो अजरबैजान के हौसले अधिक बढ़ गए हैं। आर्मेनिया जानता है कि रूस, खुद कई तरह की मुसीबतों में उलझा हुआ है ऐसे में वह खुद को सैन्य रूप से ताकतवर बनाने के लिए कोशिश कर रहा है। इसीलिए आर्मेनिया ने भारती से मदद मांगी है।

आर्मेनिया को हथियार देने पर क्यों राजी हुआ भारत?
कई विशेषज्ञ अजरबैजान को तुर्की और पाकिस्तान के साथ उभरती धुरी के एक हिस्से के रूप में देखते हैं। वर्ष 2017 में तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान ने एक त्रिपक्षीय मंत्री-स्तरीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने उनके बीच सुरक्षा सहयोग स्थापित किया था। अजरबैजान ने इस महीने की शुरुआत में तुर्की और पाकिस्तान के साथ 'थ्री ब्रदर्स' नाम से युद्धाभ्यास भी किया है। लगभग 30 वर्षों से आर्मेनिया के अधीन रहे नागोर्नो-कराबाख इलाके को कब्जा करने के बाद अजरबैजान का उदय और तुर्की-पाकिस्तान सैन्य सहयोग भारत के लिए एक संभावित चेतावनी संकेत है जिसकी अब और अनदेखाी नहीं की सकती है।

कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करता है आर्मेनिया
इसके साथ ही इस्लाम के नाम पर तुर्की और अजरबैजान कश्मीर मुद्दे पर हमेशा ही पाकिस्तान के समर्थक रहे हैं। भारत को यह भी आशंका है कि इस्लाम के नाम पर जैसे ये तीनों देश करीब हुए हैं, बाकी कई दूसरे देश भी पाकिस्तान और तुर्की की गोद में जा सकते हैं। दूसरी ओर आर्मेनिया, कश्मीर मुद्दे पर भारत को अपना स्पष्ट समर्थन देता है। दिलचस्प बात यह है कि आर्मेनिया की तुलना में भारत के अजरबैजान के साथ अधिक मजबूत आर्थिक संबंध हैं, जिसमें वहां के गैस क्षेत्रों में ओएनजीसी का निवेश भी शामिल है, लेकिन वर्तमान में इसका महत्व कम होता जा रहा है।
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