मुसलमानों के कपड़े पहन कर क्यों प्रार्थना कर रहे हैं यहूदी
अगर इन लोगों की पहचान पता चल गयी तो इन पर हमला हो सकता है. इन्हें गिरफ़्तार भी किया जा सकता है. आख़िर ऐसा कहां और क्यों हो रहा है.
"कितना अजीब है कि लोग प्रार्थना के लिए भी गिरफ़्तार किए जा सकते हैं."
यहूदी इसराइली ऐक्टिविस्ट रफ़ाएल मोरिस ने बीबीसी को इंटरव्यू के दौरान जब ये बात कही, तो उनके चेहरे पर तंज़ वाली मुस्कान थी.
दरअसल, रफ़ाएल उस यहूदी समूह का नेतृत्व करते हैं जो मुस्लिमों की तरह पोशाक पहनकर, भेस बदलकर अल-अक़्सा मस्जिद में प्रार्थना करने जाते हैं. इसे बक़ायदा एक मिशन का नाम दिया गया है.
'रिटर्निंग टू द माउंट' नाम के इस मिशन में रफ़ाएल के अलावा और भी कुछ लोग शामिल हैं. इसका मक़सद टेंपल माउंट को दोबारा से हासिल करना है.
इन लोगों ने बताया है कि वे मुसलमानों की तरह कपड़े पहनकर अल-अक़्सा मस्जिद में प्रार्थना करने जाते हैं.
रफ़ाएल और उनका समूह अल-अक़्सा मस्जिद में प्रार्थना करने को सही ठहराते हैं. वे इसे अल-अक़्सा मस्जिद के बजाय टेंपल माउंट कहते हैं.
रफ़ाएल कहते हैं, "मैं धार्मिक यहूदी हूं और मेरा मानना है कि टेंपल माउंट यहूदियों का है क्योंकि बाइबल में ऐसा लिखा गया है."
डर के बीच प्रार्थना
रफ़ाएल और उनके समूह के दूसरे साथी मुसलमानों की तरह तैयार होते है. वह कहते हैं, "आपको सिर्फ़ कपड़े बदलने होते हैं. टोपी पहनी पड़ती है. हालांकि कुछ दफ़ा बाल या तो कटवाने पड़ते हैं या फिर रंगने होते हैं. हां, बोली ना पकड़ आए इसके लिए अरबी भी सीखते हैं."
रफ़ाएल बताते हैं कि मुसलमान दिन में पांच बार नमाज़ अदा करते हैं. ऐसे में थोड़ी सावधानी रखते हुए आप यहूदी प्रार्थना गुनगुनाते हुए, उनके साथ ही प्रार्थना कर सकते हैं.
वह कहते हैं, "ऐसे में टेंपल में कहीं भी खड़े होकर आप प्रार्थना कर सकते हैं."
हालांकि मुस्लिम पोशाक पहनकर, एक तरह से धोखे में रखते हुए मस्जिद में प्रार्थना करना, एक जोख़िम भरा काम है.
इन लोगों की पहचान पता चल जाने पर इन पर हमला हो सकता है. इन्हें गिरफ़्तार भी किया जा सकता है.
रफ़ाएल बताते हैं कि 'शुरुआत में यह काफ़ी डरावना था, लेकिन धीरे-धीरे आपके अंदर का डर जाता रहता है और आप सहज होते जाते हैं.'
वह कहते हैं, "डर तो बेशक होता है, लेकिन अच्छा भी लगता है कि अंतत: आप प्रार्थना तो कर सके. दूसरी अच्छी बात यह होती है कि आप बिना किसी निगरानी के खुल कर इस जगह घूम पाते हैं."
क्यों है महत्वपूर्ण
यह यहूदियों की सबसे पवित्र जगह है और इस्लाम में भी इसे तीसरे सबसे पवित्र स्थल के रूप में माना जाता है. यहूदियों के लिए 'टेंपल माऊंट' और मुसलमानों के लिए 'अल-हराम अल शरीफ़' के नाम से मशहूर पावन स्थल में 'अल-अक़्सा मस्जिद' और 'डोम ऑफ़ द रॉक' भी शामिल है.
'डोम ऑफ़ द रॉक' को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है. पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण 'डोम ऑफ़ द रॉक' को मुसलमान भी पावन स्थल मानते हैं.
इस धार्मिक स्थल पर ग़ैर-मुसलमानों की प्रार्थना पर पाबंदी लगी हुई है. लेकिन यहूदियों का यूं भेष बदलकर, मुसलमान बनकर आना, उकसावा माना जा रहा है.
एक फ़लस्तीनी मुसलमान ऐक्टिविस्ट और कुरान पढ़ाने वाली हनादी हलावानी इस घटना से ख़ासी नाराज़ हैं.
वह कहती हैं, "यह साफ़ है कि उनका इस तरह अल-अक़्सा मस्जिद में मुसलमान बनकर आना डराता है. यह एक राजनीतिक क़दम है. "
हनादी अपने दिन का ज़्यादातर समय अल अक़्सा में ही गुज़ारती हैं.
वह कहती हैं, "अल-अक़्सा मस्जिद मेरी ज़िंदगी है और बतौर मुसलमान ये हर शख़्स की आस्था से जुड़ी हुई है. यह कोई आम मस्जिद नहीं है."
वह कहती हैं "मैं एक मुसलमान हूं और मस्जिद में घुसने के लिए मेरी भी तलाशी ली जाती है. पुलिस यहां हथियार लेकर आती है. उन लोगों को सुरक्षा देती है. आख़िर दिक़्क़तें कौन पैदा कर रहा है ? जिसके पास हथियार हैं वो या जिनके पास सिर्फ़ कुरान है."
क्या है विवाद?
अल-अक़्सा मस्जिद परिसर जो कि पुराने यरुशलम शहर में है, उसे मुसलमानों की सबसे पवित्र जगहों में से एक माना जाता है. लेकिन इस जगह पर यहूदियों का पवित्र माउंट मंदिर भी है.
1967 के मध्य पूर्व युद्ध के बाद इसराइल ने पूर्वी यरुशलम को नियंत्रण में ले लिया था और वो पूरे शहर को अपनी राजधानी मानता है.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसका समर्थन नहीं करता. फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के एक आज़ाद मुल्क की राजधानी के तौर पर देखते हैं.
यहूदी यहां आ तो सकते हैं, लेकिन उन्हें यहां आकर प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है. अगर लोग प्रार्थना करते पकड़े गए तो उन्हें गिरफ़्तार तक किया जा सकता है.
हाल के सालों में इसराइल ने यहूदियों के यहां आने को लेकर कुछ छूट दी है, लेकिन इससे फ़लीस्तीनियों का एक वर्ग ख़ुश नहीं है.
अल-अक़्सा मस्जिद
अक्टूबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने एक विवादित प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा था कि यरुशलम में मौजूद ऐतिहासिक अल-अक़्सा मस्जिद पर यहूदियों का कोई दावा नहीं है.
यूनेस्को की कार्यकारी समिति ने ये प्रस्ताव पास किया था. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि अल-अक़्सा मस्जिद पर मुसलमानों का अधिकार है और यहूदियों से उसका कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है. यहूदी उसे टेंपल माउंट कहते रहे हैं और यहूदियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता रहा है.
वहीं रफ़ाएल अकेले नहीं है जो चाहते हैं कि यहां पर नया टेंपल बने. फ़िलहाल पुलिस ने उनके ऊपर अस्थायी तौर पर पुराने शहर में घुसने से रोक लगा रखी है, लेकिन उनका दावा है कि वे लौटकर दोबारा आएंगे.
(गिडी क्लेइमेन, योलांडे नेल और योसेफ़ शोमाली की रिपोर्ट)
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