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यूक्रेन हमेशा से रूस का हिस्सा था, पुतिन का ये दावा कितना सही? – दुनिया जहान

पुतिन का कहना है कि पुराने वक्त से यूक्रेन रूस का हिस्सा रहा है. वो इसके पश्चिमी देशों के करीब जाने के ख़िलाफ़ हैं. लेकिन इस बारे में इतिहास क्या कहता है?

By BBC News हिन्दी
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व्लादिमीर पुतिन
YURI KADOBNOV/AFP via Getty Images
व्लादिमीर पुतिन

12 जुलाई 2021 को रूस की सरकारी वेबसाइट पर क़रीब साढ़े छह हज़ार शब्दों का एक लेख प्रकाशित हुआ. इसमें बीते कई सदियों के रूस और यूक्रेन के साझा इतिहास के बारे में बताया गया.

दावा किया गया कि रूस, यूक्रेन और बेलारूस प्राचीन रूस का हिस्सा थे और ये विशाल स्लाविक देश कभी यूरोप का सबसे बड़ा मुल्क हुआ करता था.

ये लेख रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने लिखा था. उनके अनुसार 20वीं सदी की शुरुआत में यूक्रेन ने अपनी एक अलग 'काल्पनिक' पहचान बनानी शुरू की. और फिर, रूस विरोधी पश्चिमी मुल्कों के प्रभाव के कारण यूक्रेन रूस को अपना दुश्मन समझने लगा.

दुनिया जहान में इस सप्ताह पड़ताल इसी बात की कि यूक्रेन को लेकर पुतिन का दावा कितना सही है? और रूस और यूक्रेन का इतिहास क्या है?



प्राचीन रूस

रूस और यूक्रेन के पूर्वज कीएवन रूस नाम के एक स्लाविक देश का हिस्सा थे. वाइकिंग ओलेग ने नौवीं सदी में इसकी स्थापना की थी.

फेथ हिलिस यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो में रूसी इतिहास की प्रोफ़ेसर हैं. वो कहती हैं कि बाल्टिक सागर और काला सागर के बीच की वो जगह जहां आज यूक्रेन है, वहां क़रीब हज़ार साल पहले छोटे-छोटे समुदाय रहा करते थे.

वो कहती हैं, "स्लाविक समुदाय असंगठित थे और अलग-अलग मंडलों में बंटे हुए थे. प्रचलित कहानियों के अनुसार इन समुदायों ने निप्रो नदी के रास्ते स्कैंडिनेविया से बाइज़ेंटीयम आने-जाने वाले स्कैंडिनेवियन व्यापारियों के नेतृत्व में एकजुट होकर नया देश बनाने का फ़ैसला किया. ये नया देश था कीएवन रूस और इसकी राजधानी थी कीएव. ये स्लाविक लोग न तो यूक्रेनी थे और न रूसी. इसमें आदिवासी, खानाबदोश, मुसलमान और यहूदी जैसे ग़ैर-स्लाविक समुदाय भी शामिल थे."

यहां के अलग-अलग समुदायों को एक ऑर्थोडॉक्स धार्मिक आस्था ने आपस में जोड़कर रखा था, जिसके तार रोमन साम्राज्य के पूर्व से जुड़े थे. यहां कइयों ने ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म अपनाया, हालांकि यहां अलग-अलग नस्लीय समुदाय भी रहे.

13वीं सदी में मंगोलों ने कीएवन रूस पर आक्रमण किया. यहां की स्लाविक आबादी तीन बड़े हिस्सों में बंट गई. आने वाले वक्त में ये इलाक़े आधुनिक दुनिया के रूस, यूक्रेन और बेलारूस बने.

14वीं सदी में जब मंगोलों का पतन हो रहा था, उस वक्त कीएव पर एक और ख़तरा मंडरा रहा था. पोलैंड अपनी सीमाओं के विस्तार की तैयारी कर रहा था और इसका नेतृत्व रोमन कैथलिकों के हाथ में था.

फेथ हिलिस कहती हैं, "पोलैंड और लिथुआनिया ने आपस में हाथ मिला लिया और 16वीं सदी में ये दक्षिण की तरफ पैर फैलाने लगे. कीएव पर पोलैंड-लिथुआनिया का शासन हो गया. यहां एक ऑर्थोडॉक्स समूह ने सिर उठाना शुरू किया. ये वो लोग थे जो पोलैंड-लिथुआनिया के तौर-तरीकों को नापसंद करते थे. ये थे कोसाक जो खुद को पोलैंड और कैथलिकों द्वारा सताए ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की आवाज़ मानते थे."

2014 में यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों में रूस समर्थित विद्रोही गुट नोवोरशिया का झंडा दिखाते हुए
AFP
2014 में यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों में रूस समर्थित विद्रोही गुट नोवोरशिया का झंडा दिखाते हुए

रूस और यूक्रेन के इतिहास में अहम मोड़ 17वीं सदी में आया. पोलैंड के शासन वाले कीएव के स्लाविक और रूसी ज़ार के शासन वाले रूस के स्लाविक ने एक ऑर्थोडॉक्स ईसाई गठबंधन किया.

फेथ हिलिस समझाती हैं, "ये वो अहम मोड़ था जहां से राष्ट्रीयता को लेकर चर्चा शुरू हुई और मौजूदा दौर में भी जारी है. कोसाक लोगों ने यूक्रेन शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने रूस का ज़िक्र करते हुए कहा था कि ये ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की विरासत है जिसे वो बचाना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने कभी न तो खुद को रूसी कहा और न ही जिस इलाक़े को वो बचा रहे थे उसे रशिया कहा, वो उसे यूक्रेन कहते थे."

18वीं सदी में जब रूस औपचारिक तौर पर रूसी साम्राज्य बना तब यूक्रेन का पूर्वी हिस्सा इसमें शामिल था. यहां की अपनी संस्कृति, अपना स्वायत्त शासन और अपने नेता थे. 1762 में रूस की साम्राज्ञी बनी कैथरीन द ग्रेट का मानना था कि इस हिस्से का स्वतंत्र रहना उनसे शासन के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है.

वो कहती हैं, "उन्होंने इसका दमन किया, उस वक्त यूक्रेन का एक औपचारिक इलाक़ा हुआ करता था, जिसे उन्होंने ख़त्म कर दिया. उन्होंने कोसाक द्वारा बनाई स्वायत्त शासन व्यवस्था को भी ख़त्म कर दिया."

पूर्वी यूक्रेन का नाम अब नोवोरशिया यानी न्यू रशिया हो गया था. वहीं पश्चिम की तरफ का हिस्सा पहले ऑस्ट्रिया का और फिर हैप्सबर्ग वंश के शासन में ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य के अधीन रहा.

फेथ हिलिस कहती हैं, "19वीं सदी के आख़िर तक सम्राट को ये अंदाज़ा हो गया कि यूक्रेनी राष्ट्रवाद रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनके काम आ सकता है. वो इसे आर्थिक मदद देने लगे."

यूरोप में साम्राज्यों के बीच की यही तनातनी 1914 में विश्व युद्ध का कारण बनी. चार साल बाद जब युद्ध ख़त्म हुआ, न तो ऑस्ट्रो-हंगरी बचा था और न ही रूसी साम्राज्य. एक, हार के बाद बिखर चुका था, तो दूसरे को क्रांति ने उखाड़ फेंका था. आने वाले सालों में यहां एक महाशक्ति का उदय हुआ, ये था सोवियत संघ.


सोवियत संघ

सर्ही प्लॉख़ी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर और यूक्रेनियन रीसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक हैं.

वो कहते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध और रूसी क्रांति के बाद पैदा हुए उथलपुथल ने यूरोप का नक्शा बदल दिया. यूक्रेनी, यूरोप के सबसे बड़े नस्लीय समूह के रूप में उभरे और अपना अलग स्वतंत्र देश बनाने की कोशिश में जुट गए. 1917 में यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक बना. हालांकि ये अधिक दिन नहीं रहा.

1921 में पोलैंड-सोवियत युद्ध ख़त्म करने के लिए हुई रीगा संधि हुई जिसके तहत यूक्रेन के कुछ इलाक़े पोलैंड, चेकस्लोवाकिया और रोमेनिया का हिस्सा बने तो कुछ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के रूप में व्लादिमीर लेनिन और बोल्शेविक के नेतृत्व वाले सोवियत संघ में आ गए.

रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसे एक एतिहासिक भूल मानते हैं. उनके अनुसार सोवियत रिपब्लिक यानी पूर्वी यूक्रेन, दोनेत्स्क और लुहांस्क हमेशा से रूस का हिस्सा थे.

सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "बोल्शेविक पहले अधिक ताकतवर नहीं थे. उन्हें पहले के रूसी साम्राज्य से जुड़े अलग-अलग आंदोलनों को साथ मिलकर चलना था. इसके लिए उन्होंने उन्हें भाषा, संस्कृति की आज़ादी दी. उन्होंने यूक्रेनियों की अलग पहचान और अलग गणराज्य बनाने की चाहत को भी सम्मान दिया. वो ज़मीनी हकीकत को देखते हुए अपने कदम रख रहे थे."

धीरे-धीरे यूक्रेन पर सोवियत संघ की पकड़ मज़बूत होती गई. 1930 के दशक में सोवियत संघ ने औद्योगिकरण को लेकर जो नीति बनाई उसमें यूक्रेन की उपजाऊ ज़मीन पर कारखाने खोले गए. नतीजा ये हुआ कि यूक्रेन में अकाल पड़ गया.

वो कहते हैं, "ये 1932, 1933 में हुआ. क़रीब 40 लाख लोगों की मौत हुई जिनमें अधिकतर किसान थे. मरने वालों में नस्लीय यूक्रेनी की संख्या सबसे ज़्यादा थी. ये यूक्रेन की आबादी का दसवां हिस्सा था."

कीएव का होलोदोमोर मेमोरियल
GENYA SAVILOV/AFP via Getty Images
कीएव का होलोदोमोर मेमोरियल

क़रीब आधी सदी बाद सोवियत संघ का विघटन हुआ, लेकिन उससे पहले एक और युद्ध होना बाकी था. रूस-यूक्रेन तनाव का एक हिस्सा इस दौर से भी जुड़ा है. व्लादिमीर पुतिन कहते हैं कि यूक्रेनियों ने नाज़ी जर्मनी का साथ दिया था.

सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "1939 में हिटलर ने पोलैंड पर हमला किया, उस वक्त वहां सबसे बड़ा नस्लीय अल्पसंख्यक समूह यूक्रेनियों का था. यूक्रेन के राष्ट्रवादियों ने नाज़ी सैन्य ख़ुफ़िया तंत्र का साथ दिया. वो पोलैंड को दमनकारी और जर्मनी को सहयोगी के रूप में देखते थे. यूक्रेनी राष्ट्रवादी आंदोलन ने नाज़ियों के साथ हाथ मिला लिया."

लेकिन जल्दी ही ये संगठन ख़त्म भी हो गया.

वो कहते हैं, "जर्मन सेना यूक्रेन में घुसी तो राष्ट्रवादियों ने यूक्रेन की आज़ादी की घोषणा कर दी. जर्मनी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 1941 के आख़िर तक यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के सभी संगठन नाज़ी जर्मनी के विरोधी बन गए. और जब नाज़ी यूक्रेन के दूसरे हिस्सों की तरफ बढ़े तो, उस युद्ध में लाखों यूक्रेनी शामिल हुए."

द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म हुआ तो यूरोप का नक्शा एक बार फिर बदल चुका था. अब यूक्रेन पहले पोलैंड का हिस्सा रहे कुछ इलाक़ों तक फैल चुका था. यूक्रेनी एक इलाक़े के तौर पर साथ आ चुके थे, हालांकि यूक्रेन अभी स्वतंत्र मुल्क नहीं बना था.

सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "जब स्टालिन आए तो उन्होंने यूक्रेन के पूरे इलाक़े को सोवियत संघ में शामिल कर लिया. युद्ध से पहले इसके जो हिस्से पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया के साथ थे वो भी सोवियत संघ का हिस्सा बने. ये काफी हद तक आज के यूक्रेन की तस्वीर है हालांकि उस वक्त वहां सोवियत नियंत्रण था."

यूक्रेन में सोवियत रूस का विरोध लगातार चलता रहा. क़रीब सात दशक के सोवियत नियंत्रण के बाद 1989 में बर्लिन की दीवार गिरी और यहीं से सोवियत संघ के विघटन की शुरूआत हुई.


यूक्रेन की आज़ादी

दिसंबर 1991 में बेलारूस में रूस, बेलारूस और यूक्रेन के नेताओं की मुलाक़ात हुई. तीनों में सोवियत संघ से बाहर जाने को लेकर सहमति बनी. सोवियत युग का अंत हो गया. यूक्रेन अब एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने को तैयार था.

मार्गरीटा बामासेडा अमेरिका के सीटन हॉल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं. वो कहती हैं यूक्रेन आज़ाद तो हुआ लेकिन आम लोगों के लिए यहां ज़िंदगी मुश्किल हो गई.

वो कहती हैं, "यूक्रेन में बड़े पैमाने पर खनन का काम होता था. उस दौरान खदानों के पास मज़दूरों और सप्लायर्स को देने के लिए पैसा नहीं था. स्टील कंपनियों के पास कोयला खरीदने के पैसे नहीं थे. मुद्रा की तो तंगी थी ही, व्यवस्था के अलग-अलग हिस्सों को कैसे जोड़ा जाए, उसे लेकर भी मुश्किलें थीं."

रूस पश्चिमी यूरोप को जो प्राकृतिक गैस बेचता उसका 80 फीसदी यूक्रेन के रास्ते हो कर गुज़रता. इस काम में रूस की मदद के बदले यूक्रेन को सस्ता ईंधन मिल जाता. इससे कुछ मदद तो मिली लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ने लगा. और फिर रूस कभी भी इसे लेकर यूक्रेन पर दबाव डाल सकता था.

हालांकि यूक्रेन पर दबाव डालने के लिए रूस के पास एक और रास्ता था. यूक्रेन के अधिकतर उद्योग देश के पूर्व में हैं जहां रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या अधिक है.

मार्गरीटा समझाती हैं, "उस दौर में यूक्रेन की राजनीति के बारे में कहा जाता था कि राजनीति कीएव से चलती है और पैसा दोनेत्स्क से आता है. मतलब ये कि देश की अर्थव्यवस्था में दोनेत्स्क का बड़ा आर्थिक योगदान था, यहां के रईसों ने राजनीति के मामलों को पूरी तरह कीएव पर छोड़ दिया था."

सोवियत रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव, यूक्रेन के नव निर्वाचित राष्ट्रपति लियोनिड क्रावचुक और बेलारूस के राष्ट्रपति स्टानिस्लाव सुश्केविच
AFP
सोवियत रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव, यूक्रेन के नव निर्वाचित राष्ट्रपति लियोनिड क्रावचुक और बेलारूस के राष्ट्रपति स्टानिस्लाव सुश्केविच

2004 में यूक्रेन एक बार फिर बदलाव के मोड़ पर था. यहां राष्ट्रपति चुनावों में रूसी समर्थन वाले विक्टर यानुकोविच और पश्चिमी मुल्कों के समर्थक विक्टर यूश्चेन्को के बीच लड़ाई था.

यानुकोविच को विजेता घोषित कर दिया गया. लेकिन उनपर चुनावों में धांधली के आरोप लगे और उनके विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गए. इन विरोध प्रदर्शनों को ऑरेन्ज रिवोल्यूशन कहा गया. ऑरेंज यूश्चेन्को के चुनावी अभियान का रंग था.

मार्गरीटा कहती हैं, "लोगों ने एक बार फिर से चुनाव करवाने की मांग की और इसमें विक्टर यूश्चेन्को की जीत हुई. वो राष्ट्रपति बने. ये उस दौर का एक बड़ा राजनीतिक आंदोलन था जिसमें गणतांत्रिक और भ्रष्टाचार मुक्त देश की बात की गई."

इसके बाद अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई और निवेश बढ़ा. राष्ट्रीयता को लेकर भी लोगों की सोच मज़बूत हुई. लेकिन फिर 2008 की वैश्विक मंदी आई और अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी.

वो कहती हैं, "इसमें कोई शक़ नहीं कि यूक्रेन की राजनीति में ऑरेंज रिवोल्यूशन बेहद बड़ी कामयाबी थी. लेकिन असल में इससे लोगों की ज़िंदगी में वो बदलाव नहीं आया जिसकी उन्हें उम्मीद थी. शायद इसी कारण कुछ साल बाद सत्ता में यानुकोविच की वापसी हुई."

2010 में विक्टर यानुकोविच को पूर्वी हिस्सों का समर्थन मिला और वो चुनाव जीत गए. लेकिन यूक्रेन में एक और क्रांति की भूमिका बन रही थी.

https://www.youtube.com/watch?v=XtDJQ-AzAfw


मिदान स्क्वायर आंदोलन

सर्गेई राडचेन्को ब्रिटेन की कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हैं. वो कहते हैं कि असल में यूक्रेन को दो हिस्सों में देखा जा सकता है, पहला पश्चिमी हिस्सा जहां यूक्रेनी भाषा बोलने वाले लोग हैं और दूसरा पूर्वी हिस्सा जहां नस्लीय रूसी आबादी है.

वो कहते हैं, "विक्टर यानुकोविच का राष्ट्रपति बनना अभूतपूर्व घटना नहीं थी. अगर यूशचेन्कों के कार्यकाल में अर्थव्यव्स्था में बड़े सुधार हुए होते तो शायद यानुकोविच नहीं जीतते. उन्हें लुहांस्क, दोनेत्स्क और क्राइमिया जैसे पूर्वी हिस्सों का समर्थन मिला था."

तो क्या यानुकोविच के कार्यकाल में विदेश नीति में पूर्व की तरफ अधिक झुकाव था?

वो कहते हैं, "यानुकोविच का किसी एक तरफ यानी पूर्व या पश्चिम की तरफ झुकाव नहीं था. आज के वक्त में उन्हें रूस के हाथों की कठपुतली माना जा रहा है, लेकिन उस दौर में ऐसा नहीं था. वो यूरोपीय संघ और रूस दोनों के साथ बेहतर रिश्ते चाहते थे."

2013 में हालात जटिल हो गए. यानुकोविच को यूरोप या रूस में किसी एक में चुनना पड़ा. यूरोपीय संघ के साथ समझौते से ठीक पहले उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए और इसके लिए रूसी दबाव को ज़िम्मेदार ठहराया.

2014 की तस्वीर में विक्टर यानुकोविच
Sasha Mordovets/Getty Images
2014 की तस्वीर में विक्टर यानुकोविच

पश्चिमी हिस्से में लोगों को लगा कि यानुकोविच के फ़ैसले ने एक बेहतर भविष्य का उनका सपना तोड़ दिया है. कीएव के मिदान स्क्वायर में भीषण विरोध प्रदर्शन क़रीब सौ लोगों की मौत हुई. यानुकोविच ने रूस में शरण ली.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हरकत में आए. उन्होंने यूक्रेन में सरकार गिरने का कारण पश्चिमी ताकतों को बताया. उन्होंने क्राइमिया को रूस का हिस्सा घोषित कर दिया और लुहांस्क और दोनेत्स्क पर नियंत्रण करना शुरू किया.

सर्गेई राडचेन्को कहते हैं, "यूक्रेनी कभी अपनी एक ऐसी राष्ट्रीय पहचान बना नहीं सके जो देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से के लोगों को एकजुट कर सके. 2014 में हुई हिंसा के बाद डोनबास, लुहांस्क और दोनेत्स्क में रूस समर्थक अलगाववादी ताकतवर होते गए और रूसी समर्थक इन इलाक़ों की तरफ जाने लगे. वहीं पूर्वी इलाक़ों से भी पश्चिम की तरफ पलायन शुरू हुआ."

2014 के बाद से रूस और यूक्रेन के सीमावर्ती इलाक़ों में संघर्ष कभी थमा ही नहीं. और फिर, कई महीनों से यूक्रेन से सटी अपनी सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ा रहे रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया.

https://www.youtube.com/watch?v=8wH_5ev-XyA


लौटते हैं अपने सवाल पर, पुतिन का ये दावा कितना सही है कि यूक्रेन हमेशा से रूस का हिस्सा था.

राष्ट्रपति पुतिन के लिए रूस और यूक्रेन के इतिहास की जड़ें एक होना केवल बीते कल की बात नहीं है, वो आने वाले कल में इसे सच्चाई बनते देखना चाहते हैं. वो बीते तीन दशक से आज़ाद रहे अपने पड़ोसी मुल्क की स्वतंत्र पहचान को स्वीकार नहीं करना चाहते.

हमारे आख़िरी एक्सपर्ट सर्गेई राडचेन्को के शब्दों में, "एक तरह से पुतिन फिर से रूसी साम्राज्य खड़ा करना चाहते हैं. ऐसा लगता है, वो 21वीं सदी में ऐसा साम्राज्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुका है."

प्रोड्यूसर - मानसी दाश

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English summary
Ukraine was always a part of Russia how true is Putin's claim?
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