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वो शख्स, जिसे ग़लत ट्रेन ने पाकिस्तान से हिंदुस्तान पहुंचा दिया

रकूल में अपने पुश्तैनी घर के बाहर लकड़ी की चारपाई पर बैठे सिराज दावा करते हैं, "कुछ दिनों तक मुझे लगा कि मैं कराची में हूं मगर फिर पता चला कि भारत पहुंच गया हूं."

सिराज अपने घर के पीछे नज़र आ रहे पहाड़ों की तरह शांत नज़र आ रहे थे मगर वह बेहद उदास और गंभीर थे.

"मैंने तीन साल अहमदाबाद में बच्चों की जेल में बिताए. रिहा होने के बाद मेरी किस्मत मुझे मुंबई ले गई 

By BBC News हिन्दी
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वो शख्स, जिसे ग़लत ट्रेन ने पाकिस्तान से हिंदुस्तान पहुंचा दिया

एक छोटी सी रिहाइश है जहां सिराज और साजिदा रंग-बिरंगे ख़्वाब देखते हुए अपने तीन बच्चों के साथ रह रहे थे. सिराज कुक का काम करता था और साजिदा शादी के बाद पिछले 13 सालों से ज़्यादातर समय घर पर ही मां की भूमिका अदा कर रही थीं.

लगभग एक महीने पहले उस समय उनकी सपनीली दुनिया बिख़र गई जब भारतीय प्रशासन ने सिराज पर ग़ैरकानूनी रूप से सीमा पार करने का आरोप लगाया और वापस उसे अपने जन्म वाले देश पाकिस्तान भेज दिया.

इस सबकी शुरुआत 24 साल पहले हुई थी जब 10 साल के सिराज का अपने माता-पिता से परीक्षा के नतीजों में ख़राब अंक आने पर विवाद हो गया था.

वह कराची जाने की उम्मीद में उत्तर पश्चिम पाकिस्तान के शरकूल गांव में अपना पुश्तैनी घर छोड़कर भाग गए. मगर लाहौर रेलवे स्टेशन पर वह ग़लत ट्रेन पर चढ़ गए और कराची के बजाय भारत पहुंच गए.

शरकूल में अपने पुश्तैनी घर के बाहर लकड़ी की चारपाई पर बैठे सिराज दावा करते हैं, "कुछ दिनों तक मुझे लगा कि मैं कराची में हूं मगर फिर पता चला कि भारत पहुंच गया हूं."

सिराज अपने घर के पीछे नज़र आ रहे पहाड़ों की तरह शांत नज़र आ रहे थे मगर वह बेहद उदास और गंभीर थे.

"मैंने तीन साल अहमदाबाद में बच्चों की जेल में बिताए. रिहा होने के बाद मेरी किस्मत मुझे मुंबई ले गई जहां मैंने अपनी ज़िंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश शुरू की."

सिराज मुंबई में शुरुआती कुछ सालों तक फुटपाथ पर भूखे सोए मगर बाद में वह क़ामयाब कुक बन गए. 2005 तक सिराज ठीक-ठाक पैसा कमाने लगे थे.

यही वह वक्त था जब पड़ासियों की मदद से वह साजिदा से मिले और शादी करने का फैसला किया.

बीबीसी से बात करते हुए साजिदा सुबकने लगती हैं. वह रोते हुए कहती हैं, "उन्होंने (प्रशासन ने) मेरी दुनिया उजाड़ दी. मेरे बच्चे अपने पिता को देखने के लिए बेताब हैं."

"क्या हिंदुस्तान में एक आदमी के लिए जगह नहीं थी? अब मैं प्रशासन से दरख़्वास्त करती हूं कि मुझे और मेरे बच्चों को पासपोर्ट दें ताकि हम पाकिस्तान में सिराज से मिल सकें."

जब सिराज़ ने किया आत्मसमर्पण

समस्या उस समय शुरू हुई थी जब 2009 में सिराज ने ख़ुद को पाकिस्तानी बताते हुए भारतीय अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

सिराज ने ऐसा इसलिए किया ताकि पाकिस्तान जाकर अपने माता-पिता से मुलाक़ात कर सके जो बरसों से उन्हें तलाश रहे थे.

सिराज कहते हैं, "2006 में पहले बच्चे के जन्म के बाद मुझे अपने माता-पिता की याद आने लगी. मुझे अहसास हुआ कि मेरी भलाई के लिए वे मेरे ऊपर सख़्ती बरत रहे थे."

सिराज के मुताबिक़, मुंबई की सीआईडी ब्रांच ने उनके मामले की जांच शुरू की और पाया कि उनका परिवार पाकिस्तान में है.

लेकिन पाकिस्तान जाने की इजाज़त देने के बजाय देश के फ़ॉरनर एक्ट के तहत मामला दर्ज करके उन्हें फिर जेल में डाल दिया.

पांच साल तक वह क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहे मगर आख़िर में हारने के बाद पाकिस्तान वापस भेज दिए गए.

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'हमें मदद नहीं मिली क्योंकि हम मुसलमान हैं'

साजिदा काफ़ी दुखी होते हुए कहती हैं, "सरकार की तरफ़ से कोई भी हमारी मदद के लिए नहीं आया. इसलिए कि हम मुसलमान हैं? मैं उनसे गुज़ारिश कतरती हूं कि मेरे बच्चों पर रहम खाएं और पासपोर्ट देने में हमारी मदद करें."

साजिदा को पासपोर्ट के लिए अपने मकान मालिक से अनापत्ति प्रमाण पत्र चाहिए, मगर वह कहती हैं कि मकान मालिक इसमें सहयोग नहीं कर रहा.

सिराज ने पाकिस्तान के पहचान पत्र के लिए आवेदन किया है मगर प्रक्रिया में हो रही देरी से वह तंग आ चुके हैं.

वे दोनों कानूनी पेचीदगियों में फंसे हुए हैं और सरहद के कारण एक नहीं हो पा रहे.

सिराज मायूस हो चुके हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इतिहास ख़ुद को दोहरा रहा है.

वह कहते हैं, "25 साल पहले मैं अपने माता-पिता से जुदा हो गया और अब अपने बच्चों से. मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे उसी दर्द को महसूस करें जो दो दशक पहले मैंने झेला था."

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भारत पाकिस्तान दोनों मुल्क एक बराबर

सिराज कहते हैं कि उनके लिए भारत और पाकिस्तान दोनों बराबर हैं. वह एक देश में पैदा हुए मगर दूसरे ने उनकी ज़िंदगी बनाई. मगर उन्हें सबसे ज़्यादा अपने परिवार की याद आती है.

अपने पुश्तैनी रूढ़िवादी गांव में सिराज की ज़िंदगी कुछ पेचीदा सी है. वह जिस पश्तो संस्कृति से संबंध रखते हैं, उसी में ढलने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं. क्योंकि वह इतनी कम उम्र में यहां से चले गए थे कि आज इससे मेल नहीं कर पा रहे.

'मैं भी इस मुल्क की बेटी हूं'

साजिदा की व्यथा भी अलग नहीं है. सिराज के जाने के बाद उन्हें सबकुछ खुद करना होता है. रोज़ी-रोटी के लिए कुक के तौर पर काम कर रही हैं और घर पर दिखावटी गहने बनाती हैं.

साजिदा रोते हुए बताती हैं, "भले ही मैं अपने बच्चों की हर ज़रूरत पूरी कर दूं, भले ही उन्हें हर सुविधा दूं, मै उनके पिता की जगह नहीं ले सकती. उन लोगों ने (प्रशासन ने) मेरे बच्चों को बाप के प्यार से दूर कर दिया है."

साजिदा ने भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी इस मामले में मदद मांगी है, जिनकी पहचान सरहदों के कारण मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करने की है.

साजिदा अपने इंटरव्यू में विदेश मंत्री को संबोधित करते हुए कहती हैं, "मैं भी हिंदुस्तानी हूं, इस मुल्क की बेटी हूं; प्लीज़ मुझे मेरे पति से मिलवाने में मदद कीजिए."

BBC Hindi
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English summary
The man who misplaced the train from Pakistan to Hindustan
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