अब पछताए होत क्या: चीन के सामने भारत के पड़ोसी देश ने लगाई रहम की गुहार, क्या दया करेंगे शी जिनपिंग?
श्रीलंका ने अंतर्राष्ट्रीय चेतावनी को दरकिनार करते हुए चीन से जी-भरकर कर्ज लिया है और अब स्थिति ये है कि, चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है और श्रीलंका के पास चीनी कर्ज चुकाने को पैसे नहीं हैं।
कोलंबो, जनवरी 10: हिंदी की बहुत ही मशहूर कहावत है, अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत और ये कहावत पूरी तरह से श्रीलंका पर लागू हो रहा है। भारत ने कई दफे श्रीलंका को चेतावनी दी, अमेरिका ने कई बार श्रीलंका को रोका, श्रीलंका ने पाकिस्तान का हाल भी देखा, लेकिन श्रीलंका के नेता चीन से कर्ज लेने से पीछे नहीं हटे, वो भी तब, जब वो चीन के हाथों अपना महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह गंवा चुके थे। लेकिन, अब श्रीलंका बार बार ड्रैगन के सामने रहम की गुहार लगा रहा है और सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या चीन जरा भी दया श्रीलंका पर दिखाएगा या फिर हिंद महासागर में घुसने के लिए ड्रैगन, भारत के पड़ोसी देश को 'कुचल' कर रख देगा?
चीन से रहम की गुहार लगाता श्रीलंका
चीन के भारी-भरकम कर्ज के बोझ में दब चुके श्रीलंका ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से रहम की गुहार लगाई है। श्रीलंका ने चायनीज विदेश मंत्री वांग यी से श्रीलंका की खराब आर्थिक हालत को देखते हुए भारी कर्ज के बोझ को कुछ कम करने की अपील की है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कार्यालय ने रविवार को एक बयान में कहा कि, "राष्ट्रपति ने कहा कि अगर महामारी के बाद आर्थिक संकट को देखते हुए कर्ज भुगतान को पुनर्निर्धारित किया जा सकता है तो यह एक बड़ी राहत होगी।" आपको बता दें कि, श्रीलंका आर्थिक दिवालिएपन की कगार पर खड़ा हो चुका है और इस बीच चीन के विदेश मंत्री श्रीलंका के दौरे पर पहुंचे हैं और विश्लेषकों का मानना है कि, चीन के विदेश मंत्री श्रीलंका पर और ज्यादा प्रेशर बनाने के लिए पहुंचे हैं।
ड्रैगन की दांतों के नीचे श्रीलंका
श्रीलंका ने अंतर्राष्ट्रीय चेतावनी को दरकिनार करते हुए चीन से जी-भरकर कर्ज लिया है और अब स्थिति ये है कि, चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है और चायनीज विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों की चेतावनी के बाद हुई है, कि श्रीलंका की राजपक्षे की सरकार डिफॉल्ट के कगार पर हो सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि, श्रीलंकी की सत्ता पर पिछले कई सालों से काबिज राजपक्षे परिवार ने देश की आर्थिक हालात को बर्बाद करके रख दिया है और इस साल के अंत तक श्रीलंका दिवालिया हो सकता है। वहीं, पर्यटन पर निर्भर रहने वाले श्रीलंका की स्थिति कोविड महामारी ने और भी ज्यादा बर्बाद कर दी है और देश का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया है, वहीं, श्रीलंका के बाजारों में खाने-पीने की आवश्यक वस्तुएं भी खत्म हो चुकी हैं और महंगाई काफी ज्यादा बढ़ चुकी है।
विकास के नाम पर बर्बादी के राह पर...?
श्रीलंका की सरकार ने देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के नाम पर चीन से भारी-भरकम कर्ज उधार लिया है और कर्ज का एक बड़ा हिस्सा उन प्रोजेक्ट्स में खत्म हो चुके हैं, जो श्रीलंका के लिए सफेद हाथी पालने जैसा है। यानि, उन प्रोजेक्ट्स से सिर्फ चीन को ही फायदा होना है और श्रीलंका को कुछ नहीं मिलने वाला। चीन यही काम पाकिस्तान में भी कर रहा है, लेकिन इस वक्त पाकिस्तान को भी आटे-दाल की कीमत समझ नहीं आ रही है।
कर्ज चुकाने में असमर्थ है श्रीलंका
श्रीलंकन सरकार की रिपोर्ट के मुकाबिक, दक्षिणी श्रीलंका में एक बंदरगाह निर्माण के लिए श्रीलंका ने चीन ने 1.4 अरब डॉलर का कर्ज लिया हुआ है, लेकिन अब वो इस कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं है। वही, चीन साल 2017 में श्रीलंका से कोबंलो में बनाया गया हंबनटोटा बंदरगाह 99 सालों के लिए छीन चुका है और हंबनटोटा बंदरगाह निर्माण के लिए भी श्रीलंका ने चीन से भारी कर्ज लिया था और उसे भी चुकाने में असमर्थ हो गया था। भारत और अमेरिका ने श्रीलंका को कई बार चायनीज कर्ज को लेकर चेतावनी दी थी हंबनटोटा पोर्ट के लिए श्रीलंका चीन के साथ सौदा नहीं करे, क्योंकि इससे चीन को सीधे तौर पर हिंद महासागर में एंट्री मिल जाएगी, लेकिन चीन के प्रेम में पड़े श्रीलंका की सरकार ने तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और फिर बाद में हंबनटोटा पोर्ट हाथ से गंवा दिया।
राजपक्षे परिवार ने किया बेड़ा गर्क?
श्रीलंका के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद, दोनों कुर्सी पिछले कई सालों से राजपक्षे परिवार के पास ही है और राजपक्षे परिवार के कार्यकाल में श्रीलंका ने चीन के साथ खूब दोस्ती बढ़ाई है। विकास के नाम पर श्रीलंका ने चीन से अंधाधुंध कर्ज लिया है और अब स्थिति ये है कि, श्रीलंका के पास ड्रैगन का कर्ज चुकाने के लिए पैसे ही नहीं बचे हैं और इसका फायदा उठाकर चीन श्रीलंका की रणनीतिक और सैन्य लिहाज से महत्वपूर्ण ठिकानों को 'कब्जाने' की कोशिश में है, ताकि वो हिंद महासागर में घुसकर भारत को चुनौती दे सके।
क्या दिवालिया हो जाएगा श्रीलंका?
वहीं, श्रीलंका के विपक्षी सांसद और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा ने हाल ही में संसद को बताया कि जनवरी 2022 तक देश का विदेशी मुद्रा भंडार माइनस 43.7 करोड़ डॉलर होगा, जबकि फरवरी से अक्टूबर 2022 तक देश को कुल 4.8 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज चुकाना है। उन्होंने देश की संसद में कहा कि, 'श्रीलंका पूरी तरह से दिवालिया हो जाएगा'। वहीं, सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजीत निवार्ड काबराल ने सार्वजनिक आश्वासन दिया कि श्रीलंका अपने कर्ज को धीरे धीरे चुकाने में सक्षम हो सकता है, लेकिन श्रीलंका के रिजर्व बैंक के पूर्व उप-गवर्नर विजेवर्धने ने कहा कि श्रीलंका के ऊपर डिफॉल्टर होने का खतरा मंडरा रहा है और अगर ऐसा होता है, तो इसके अंजाम भयानक होंगे।
1.9 अरब डॉलर का पैकेज देगा भारत
वहीं, श्रीलंकन अखबार द संडे मॉर्निंग की रिपोर्ट के मुताबिक, मुश्किल में फंसे श्रीलंका को गंभीर वित्तीय संकट से निकालने के लिए भारत सरकार 1.9 अरब डॉलर की मदद देने के लिए तैयार हो गई है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से 90 करोड़ डॉलर की दो वित्तीय सहायता पैकेज इसी महीने श्रीलंका पहुंचेंगे। भारत सरकार के सूत्रों ने द संडे मॉर्निंग को पुष्टि की है कि, 40 करोड़ डॉलर स्वैप सुविधा के तहत दी जाएगी, जबकि ईंधन के लिए 50 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन श्रीलंका को दी जाएगी। माना जा रहा है कि इनमें से एक सुविधा 10 जनवरी तक श्रीलंका सरकार के खजाने में पहुंच जाएगी। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार इस द्वीप की मदद के लिए तैयार हुई है, जो पहले चीन की तरफ झुकी दिखाई देती थी।
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