प्लास्टिक से वैज्ञानिकों ने बनाया हीरा, नये तरह के पानी का भी किया आविष्कार, दुनिया बदलने वाला रिसर्च
वाशिंगटन, 26 सितंबरः अमेरिका के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक पर अल्ट्रापावरफुल लेजर का इस्तेमाल कर हीरे हासिल करने में सफलता हासिल कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। यह प्लास्टिक कोई बेहद खास नहीं बल्कि घरों में पाया जाने वाला आम प्लास्टिक है। वैज्ञानिकों ने घर से निकलने वाले प्लास्टिक की बोलत पर किए गए एक रिसर्च में इसे सही साबित कर दिखाया है। इस रिसर्च में वैज्ञानिकों को हीरे के साथ ही एक नए प्रकार का पानी भी हासिल हुआ है।
घर में पाए जाने वाले प्लास्टिक से बनाया हीरा
अमेरिका के कैलिफोर्निया में एसएलसी नेशनल एक्सलरेटर ने लेजर का इस्तेमाल कर प्लास्टिक की बोतलों से कीमती हीरा बनाया है। ये शोध संभावित रूप से हमारे सौर मंडल में हीरे की बारिश के अस्तित्व को जाहिर कर सकते हैं और बता सकते हैं कि ठंडी दुनिया में ऐसे चुंबकीय क्षेत्र क्यों माजूद हैं। प्लास्टिक बोतलों से हीरा बनाने की प्रेरणा वैज्ञानिकों ने नेप्च्यून और यूरेनस ग्रह पर होने वाली हीरे की वर्षा वाली अवधारणा से ली है।
यूरेनस और नेप्च्युन पर होती है हीरो की बारिश
इन दोनों ग्रहों पर मीथेन गैस की अधिकता है। मीथेन में हाइड्रोजन और कार्बन के अणु होते हैं। जैसे धरती पर वायुमंडलीब दबाव बढ़ता है तो पानी, भाप के रूप में परिवर्तित होकर बादलों के संग हो जाता है और अलग-अलग हिस्सों पर बारिश करता है। ठीक उसी तरह यूरेनस और नेप्च्यून ग्रह पर जब मीथेन दबाव बढ़ता है तो हाइड्रोन और कार्बन के बीच के अणुओं का बांड टूट जाता है। इसके बाद उसमें मौजूद कार्बन के अणु हीरे में बदल जाते हैं और वहां तब हीरों की बारिश होती है।
ऑप्टिकल लेजर की बारिश से तैयार हुआ हीरा
जर्मनी के एचजेडडीआर रिसर्च लैब के वैज्ञानिक और शोध के लेखकों में से एक डोमिनिक क्रॉस ने कहा कि इन ग्रहों पर हीरे की बारिश पृथ्वी पर बारिश की तुलना में काफी अलग है। शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक की बोतल से हीरा बनाने के लिए मीथेन की जगह पीईटी गैस का इस्तेमाल किया। इसमें आप्टिकल लेजर का इस्तेमाल करके प्लास्टिक को 6000 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया। इसके बाद इसमें हीरे जैसी संरचना बन गई। फिजिक्स के प्रो. डोमिनिक क्रास के अनुसार पीईटी में उन दोनों ग्रहों के जैसा ही आक्सीजन, कार्बन और हाईड्रोजन के बीच बेहतरीन संतुलन देखा गया। पीईटी का इस्तेमाल अक्सर सिंगल यूज प्लास्टिक बनाने में किया जाता है।
उच्च दबाव और अधिक तापमान से तैयार बनता है हीरा
नैनोडायमंड्स को तापमान और चुंबकीय क्षेत्रों के लिए अल्ट्रास्मॉल और बहुत सटीक क्वांटम सेंसर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वैज्ञानिक इससे पहले भी यह बता चुके हैं कि यूरेनस और नेप्च्यून पर अत्यधिक उच्च दवाब और तापमान हाइड्रोजन और कार्बन को ठोस हीरे में बदल देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले हजार सालों से ये हीरे धीरे-धीरे इन ग्रहों की बर्फीली सतह पर जमा हो रहे हैं। नेप्च्यून और यूरेनस में इन हीरों का आकार काफी बड़ा हो सकता है।
छोटे हीरे बनाने की नई तकनीक का ईजाद
वैज्ञानिकों ने पीईटी प्लास्टिक में लेजर जनरेटेड शॉकवेव से नैनो डायमंड बनाने का राज ढूंढ़ लिया है। फिलहाल अभी तक नैनो डायमंड बनाने के लिए कार्बन या हीरे का गुच्छा बनाकर उसमें विस्फोट करने वाली तकनीक अपनायी जाती है, फिर इस नैनो डायमंड का इस्तेमाल पॉलिश में किया जाता है। नए शोध से पता चलता है कि इस प्रकार के हीरे का निर्माण पहले की तुलना में अधिक सामान्य हो सकता है। इस प्रयोग के साथ वैज्ञानिकों को एक नया पानी का रूप भी प्राप्त हुआ है जिसे 'सुपरियोनिक वॉटर आइस' कहा जा रहा है। पानी का यह नया रूप प्रोटॉन को ऑक्सीजन एटम की जाली के माध्यम से विचरण करने की अनुमति देता है।
नासा शुरू कर सकता है नया प्रोजेक्ट
वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि यदि यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों इस तरह का सुपरियोनिक पानी मौजूद है, तो इस नए प्रकार के पानी के माध्यम से उन ग्रहों पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने में मदद कर सकती हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले दशक तक एक नासा द्वारा यूरेनस के लिए एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा, ताकि देखा जा सके कि इस ग्रह पर हीरे की बारिश या सुपरियोनिक जल मौजूद है या नहीं।