मंकी पॉक्स वायरस को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था रूस, वैज्ञानिक का दावा
लंदन, 21 मईः एक पूर्व सोवियत वैज्ञानिक ने दावा किया है कि रूस ने कम से कम 1990 के दशक तक मंकीपॉक्स को एक बायोहथियार के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी। ब्रिटिश टैब्लॉइड द मेट्रो की रिपोर्ट के मुताबिक दावे कनत अलीबेकोव 1991 में सोवियत संघ के पतन तक वहां जैव हथियार के विशेषज्ञ थे। बाद में अमेरिका जाने से पहले एक साल तक रूस में रहे।

कई अन्य वायरसों पर भी किया परीक्षण
अमेरिकन केमिकल एंड बायोलॉजिकल वेपन्स नॉनप्रोलिफरेशन के साथ हाल ही में खोजे गए 1998 के एक साक्षात्कार में अलीबेकोव ने दावा किया है कि रूस 32,000 कर्मचारियों की देखरेख में इस वायरस के उपयोग करने का एक कार्यक्रम चला रहा था। अलीकेब ने कहा कि हमने यह जांच करने का निर्णय किया कि चेचक के बजाय और कौन से मॉडल वायरस का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए हमने वैक्सीनिया वायरस, माउसपॉक्स वायरस, रैबिटपॉक्स वायरस और मंकी पॉक्स वायरस का परीक्षण किया। वैज्ञानिक ने दावा किया कि सोवियत संघ ने 1991 के बाद भी भविष्य के लिए जैविक हथियार बनाने पर काम जारी रखा।

यूरोप में तेजी से बढ़ रहे मामले
मंकी पॉक्स का वायरस स्मॉल पॉक्स से संबंधित है। हालांकि इसके लक्षण स्मॉल पॉक्स की तुलना में काफी हल्के होते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस वायरस के लगातार केस बढ़ रहे हैं। फिलहाल यह यूरोप के कई देशों में तेजी से फैल रहा है। मंकीपॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है जो कि आम तौर पर जंगली जानवरों में होता है। लेकिन इसके कुछ केस मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के लोगों में भी देखे गए हैं। लेकिन पहली बार इस बीमारी की पहचान 1958 में हुई थी। उस वक्त रिसर्च करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी हुई थी इसीलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है।

1970 में इंसानों में दिखा था पहला संक्रमण
पहली बार इंसानों में इसका संक्रमण 1970 में कांगों में एक 9 साल के लड़के को हुआ था। 2017 में नाइजीरिया में मंकी पॉक्स का सबसे बड़ा प्रकोप देखा गया था, जिसके 75% मरीज पुरुष थे। मंकीपॉक्स किसी संक्रमित जानवर के काटने या उसके खून या फिर उसके फर को छूने से हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह चूहों, चूहों और गिलहरियों द्वारा फैलता है।