महाबली या खलनायक? जानिए क्यों दुनिया के खिलाफ जाकर यूक्रेन युद्ध कर रहे हैं रूसी राष्ट्रपति?
अमेरिका के साथ जारी शीतयुद्ध के बीच साल 1991 के अंत में सोवियत संघ टूट गया और कई हिस्सों में बंट गया और व्लादिमीर पुतिन के दिल में वो घाव अभी भी जिंदा है।
मॉस्को, फरवरी 23: 'सोवियत संघ का विघटन मेरे लिए परमाणु बम धमाके से कम नहीं था'... रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दिन रात सोवियत संघ विघटन कचोटता रहता है और इसके लिए वो पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका को जिम्मेदार मानते रहे हैं। लेकिन, अब रूसी राष्ट्रपति महाबलि बन चुके हैं और अकेले ही दुनिया की तमाम महाशक्तियों से टक्कर ले रहे हैं। लेकिन, क्या अकेले पुतिन अमेरिका को हरा पाएंगे? क्या पुतिन अकेले यूरोपीय ताकतों को परास्त कर पाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल... कि पुतिन वाकई एक महाबलि हैं या फिर दुनिया के लिए वो एक खलनायक बन गये हैं, इन सवालों के जवाब पुतिन के जीवन से जुड़ी कुछ रहस्यों में छिपी हुई है।
1952 में हुआ था पुतिन का जन्म
व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर, 1952 को लेनिनग्राद में हुआ था, जिसका नाम अब सेंट पीटर्सबर्ग हो चुका है। बचपन के दिनों से ही पुतिन अकसर अपनी उम्र से बड़े लड़कों के साथ पंगे लेते रहते थे और झगड़े में अकसर उन्हें मार खानी पड़ती थी, जिसके बाद उन्होंने बचपन में ही जूडो-कराडा सीख लिया और फिर उन लड़कों की काफी पिटाई की थी। साल 1975 में पुतिन की जिंदगी ने सबसे बड़ा मोड़ लिया और उन्होंने रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के साथ एक खुफिया अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू कर दिया। धीरे धीरे पुतिन का कद बढ़ता चला गया और साल 1998 में वो रूस के संघीय सुरक्षा सेवा में डायरेक्टर बन गये।
माता-पिता के तीसरे संतान
व्लादिमीर पुतिन का जन्म तत्कालीन सोवियत संघ के लेनिनग्राद में व्लादिमीर व्लादिमीरोविच और मारिया इवानोवना के घर हुआ था और वो अपने माता-पिता के तीसरे संतान थे। हालांकि, जब पुतिन काफी छोटे थे, उसी वक्त उनके दोनों बड़े भाईयों की मौत किसी बीमारी की वजह से हो गई थी। उम्र बढ़ने के साथ ही पुतिन की रगों में देशप्रेम भरा हुआ था और इसीलिए उन्होंने रूस की खुफिया एजेंसी को भी ज्वाइन किया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, खुफिया अधिकारी रहते हुए ही उनकी मुलाकात जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजला मर्केल से 80 के दशक में हुई थी और उस वक्त एंजला मर्केल भी जर्मनी की राजनीति में नई नई थीं और कहा जाता है कि, एंजला मर्केल और पुतिन काफी अच्छे दोस्त बन गये थे। वहीं, एंजला मर्केल ने जब राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की थी, उस वक्त बतौर चांसलर रहते हुए उनका आखिरी दौरा रूस का ही हुआ था और एंजला मर्केल दुनिया की इकलौती नेता थीं, जो पुतिन को डांट लगाने से भी नहीं हिचकतीं थीं।
राजनीति में पुतिन की एंट्री
रूस की सक्रिय राजनीति की तरफ व्लादिमीर पुतिन की एंट्री 1990 में हुई थी, जब लेनिनग्राद के मेयर अनातोली सोबचक के अंतरराष्ट्रीय मामलों के सलाहकार के रूप में पुतिन को नियुक्त किया गया। अगले साल ही पुतिन मेयर कार्यालय के बाहरी संबंधों की समिति के प्रमुख भी बन गये और व्लादिमीर पुतिन साल 1994 में सेंट पीटर्सबर्ग सरकार के पहले उपाध्यक्ष बने। उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री विक्टर चेर्नोमिर्डिन द्वारा स्थापित एक उदार राजनीतिक दल, सरकार समर्थक 'हमारा घर रूस' की सेंट पीटर्सबर्ग शाखा का आयोजन किया। बाद में उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग शाखा का नेता नियुक्त किया गया।
1999 में रूसी राजनीति में टॉप पर पहुंचे
साल 1999 में व्लादिमीर पतिन को रूस के तीन प्रथम उप प्रधानमंत्रियों में से एक के तौर पर नियुक्त किया गया था और बाद में तत्कालीन राष्ट्रपति येल्तसिन ने उन्हें रूसी संघ की सरकार के कार्यवाहक प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त कर दिया और उसके एक हफ्ते बाद ही व्लादिमीर पुतिन रूस के पूर्णकालिक प्रधानमंत्री बन गये। प्रधानमंत्री बनने के बाद उसी साल की तत्कालीन राष्ट्रपति येल्तसिन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह जो रूस का अगला राष्ट्रपति बना, उसका नाम था व्लादिमीर पुतिन। 7 मई 2000 को व्लादिमीर पुतिन पहली बार रूस के राष्ट्रपति बने। उनका राष्ट्रपति का कार्यकाल 2008 तक लगातार दो कार्यकाल तक चला, जिसके बाद उन्हें देश के संविधान के अनुसार तीसरे कार्यकाल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया।
1991 में टूट गया सोवियत संघ
अमेरिका के साथ जारी शीतयुद्ध के बीच साल 1991 के अंत में सोवियत संघ टूट गया और कई हिस्सों में बंट गया। उसी 25 दिसंबर 1991 को रूस के राष्ट्रपति भवन, जिसे क्रेमलिन कहा जाता है, उससे सोवियत संघ का झंडा उतर गया और रूसी झंडा लग गया। उसी दिन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बोचोफ ने अपना इस्तीफा दे दिया और नये राष्ट्रपति बने बोरिस येल्तासिन, जिनके व्लादिमीर के साथ काफी अच्छे संबंध थे और फिर येल्तसिन ने व्लदिमीर पुतिन को रूसी राजनीति में बढ़ाने का काम किया। 26 मार्च 2000 को पुतिन ने रूस में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत लिया और फिर साल 2004 में 70 फीसदी मतों के साथ दुबारा राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत लिया। लेकिन, व्लादिमीर पुतिन के मन में सोवियत संघ विघटन का घाव नहीं भरा है।
2014 में यूक्रेन वार
साल 2014 में पहली बार व्लादिमीर पुतिन ने उस वक्त दुनिया का ध्यान खींच, जब उन्होंने पहली बार यूक्रेन में रूस की सेना भेजी थी और फिर एक जनमत संग्रह के बाद यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। रूस-यूक्रेन युद्ध पिछले काफी समय से चल रहा है क्योंकि रूस पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है। स्थिति अब वर्तमान रूस-यूक्रेन संकट तक बढ़ गई है क्योंकि रूस ने डोनेट्स्क और लुहान्स्क के विद्रोही क्षेत्रों को स्वतंत्र संस्थाओं के रूप में मान्यता दी है। 21 फरवरी 2022 को पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में डोनबास क्षेत्र में रूसी सेना भेजी और इस कदम को इसे "शांति बनाए रखने का प्रयास" बताया। जिसे अमेरिका समेत पश्चिमी देश युद्ध की शुरूआत कह रहे हैं।
क्या हैं व्लादिमीर पुतिन की मांगे
पुतिन ने मांग की है कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) पूर्वी यूरोप में अपनी सभी सैन्य गतिविधियों को छोड़ दे। इसमें पोलैंड और बाल्टिक्स से नाटो बटालियनों की वापसी की मांग भी शामिल है। पुतिन ने मांग की कि नाटो को यूक्रेन को कभी भी सदस्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति ने कानूनी गारंटी की भी मांग की है कि, पश्चिम, नाटो या किसी अन्य संगठन के माध्यम से रूस के करीब सैन्य विस्तार से दूर रहेगा। इसके साथ ही राष्ट्रपति पुतिन यूरोप के उस हिस्से में अमेरिका के परमाणु निरस्त्रीकरण चाहते हैं, जो रूस के करीब है। पुतिन की मांगों का तात्पर्य है कि अमेरिका और अन्य नाटो सदस्यों को अपनी सेना रूस के करीब से वापस खींचनी होगी और पोलैंड, एस्टोनिया, लातविया, स्लोवाकिया, हंगरी और लिथुआनिया जैसे देशों को हथियारों की आपूर्ति बंद करनी होगी।
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