
तुर्की में श्रीलंका से भी बुरे हालात, चुनाव जीतने के लिए एर्दोगन कर रहे हिजाब की बात, कराएंगे जनमत संग्रह
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने शनिवार को देश के संस्थानों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में महिलाओं के हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर एक जनमत संग्रह करवाने का प्रस्ताव दिया है। बतादें कि एर्दोगन ने 2012 में तुर्की का राष्ट्रपति बनने के ठीक एक साल बाद 2013 में हिजाब पर से प्रतिबंध हटा दिया था। ऐसे में इस्लाम के कट्टर अनुयायी रहे एर्दोगन का रेफरेंडम करवाने का प्रस्ताव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

तुर्की में अगले साल होंगे आम चुनाव
बतादें कि अगले साल तुर्की में आम चुनाव होने वाले हैं। तुर्की की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंसी हुई है। महंगाई दर 83.5 फीसदी पर पहुंच चुकी है। तुर्की में हालात किस हद तक खराब हैं इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में महंगाई दर 23.2 है और लगभग दीवालिया साबित हो चुके श्रीलंका में यह दर 69.8 है। तुर्की के राष्ट्रपति अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बुरी तरह फेल साबित हुए हैं ऐसे में अगली बार फिर से देश का नेतृत्व करने के लिए उन्हें ऐसे बहाने चाहिए जिसके दम पर वे मतदाताओं को मूल मुद्दे से ध्यान हटा सकें।

तुर्की में छाया हेडस्कार्फ का मुद्दा
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का ये दांव सफल होता भी दिख रहा है और 2023 में आम चुनावों से पहले हेडस्कार्फ का मुद्दा राजनीतिक बहस पर हावी हो गया है। राष्ट्रपति एर्दोगन ने मुख्य विपक्षी दल के नेता केमल किलिकदारोग्लू को सीधे चुनौती देते हुए कहा, "अगर आपमें हिम्मत है, तो आइए, इस मुद्दे को एक जनमत संग्रह में डालते हैं। देश को निर्णय लेने दें।" केमल किलिकडारोग्लू रिपब्लिकन पीप्लस पार्टी (Republican People's Party), पार्टी का नेतृत्व करते हैं, जो कि एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है।

हिजाब के समर्थन में मुस्तफा कमाल पाशा की पार्टी
आपको बता दें कि रिपब्लिकन पीप्लस पार्टी की स्थापना आधुनिक तुर्की गणराज्य के संस्थापक मुस्तफा कमाल पाशा अतातुर्क ने किया था। हैरानी की बात है कि मुस्तफा कमाल पाशा की पार्टी ही अब हिजाब के खिलाफ नहीं बल्कि इसके समर्थन में दिख रही है। इससे पहले रिपब्लिकन पीप्लस पार्टी के नेता ने एक कानून बनाने का भी प्रस्ताव रखा था। इसके मुताबिक हिजाब पहनने के अधिकार को गारंटी देना था। किलिकडारोग्लू ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि 1990 के दशक में हेडस्कार्फ बहस के केंद्र में था, लेकिन आज कोई भी पार्टी मुस्लिम बहुल तुर्की में प्रतिबंध का प्रस्ताव नहीं रखती है।

'अतीत की गलतियों को पीछे छोड़ने का समय'
किलिकडारोग्लू ने कहा, "हमने अतीत में हेडस्कार्फ के संबंध में गलतियां की थीं। यह उस मुद्दे को हमारे पीछे छोड़ने का समय है।" विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि किलिकदारोग्लू धार्मिक मतदाताओं को दिखाना चाहते हैं कि उन्हें अगले साल अपनी धर्मनिरपेक्ष पार्टी को चुनने से डरने की कोई बात नहीं है। वहीं, तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक संवैधानिक परिवर्तन का प्रस्ताव रखा है जो कि जल्द ही संसद में अनुमति के लिए भेजा जाएगा जहां उनकी पार्टी अपने राष्ट्रवादी गठबंधन सहयोगी के साथ सरकार चला रही है।

कानून लाने के लिए 400 सांसदों का समर्थन जरूरी
हालांकि, तुर्की कानून के तहत, इस बदलाव (गारंटी का कानून) के लिए कम से कम 400 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी। ऐसे में एर्दोगन की पार्टी को विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन पीप्लस पार्टी से भी समर्थन लेना होगा। इसके अलावा पार्टी के पबास विकल्प है कि वह जनता के बीच जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखे। एर्दोगन ने कहा, "अगर इस मुद्दे को संसद में हल नहीं किया जा सकता है, तो हम इसे जनता के सामने पेश करेंगे।"
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