नहीं होता इजरायल तो नहीं मिलती कारगिल की जंग में विजय!
तेल अवीव। अब इसे संयोग कहें या कुछ और कि जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल की यात्रा पर तेल अवीव पहुंचने वाले हैं, भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल की जंग का एक और वर्ष पूरा होने वाला है। आज से 18 वर्ष पहले जम्मू कश्मीर के कारगिल में भारत और पाकिस्तान सैन्य संघर्ष में एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि पीएम मोदी जिस देश की यात्रा पर गए हैं, उस संघर्ष के समय सिर्फ उसी देश ने भारत का साथ दिया था। जी हां, गाहे बगाहे जब कभी भी कारगिल की जंग का जिक्र होगा, इजरायल और उसकी दरियादिली हर भारतीय को याद आएगी।
भारत के पास नहीं था जरूरी साजो-सामान
साल 1999 की गर्मियों में जिस समय कारगिल में जंग शुरू हुई भारत के पास न तो मोर्टार थे और न ही गोला-बारूद। उस समय इजरायल संकटमोचक के तौर पर भारत के साथ आया। इजरायल भारत का एक भरोसेमंद साथी साबित हुआ। इजरायल ने इंडियन आर्मी को तुरंत जरूरी गोली बारूद और मोर्टार मुहैया कराया।
अमेरिका ने डाला दबाव
अमेरिका और दूसरे देशों ने इजरायल के ऊपर दबाव डाला था कि वह भारत की मदद नहीं करेगा। लेकिन इजरायल ने इसकी परवाह नहीं की और सेना की तुरंत मदद की। इजरायल ने इंडियन आर्मी को सर्विलांस और बॉम्बिंग के लिए जरूरी सामान दिया। इसकी मदद से सेना ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों से एलओसी के उस तरफ बैठे दुश्मन को चारों खाने चित्त कर दिया।
फेल हो जाती IAF भी
इंडियन एयरफोर्स का ऑपरेशन सफेद सागर भी सफल नहीं हो पाता अगर इजरायली लेजर गाइडेड मिसाइल न हासिल हो पातीं। एयरफोर्स के फाइटर जेट्स ने इन्हीं लेजर गाइडेड बमों को पाकिस्तानी आतंकियों पर गिराया। अपने ड्रोन के लिए मशहूर इजरायल ने हेरॉन और सर्चर ड्रोन मुहैया कराया और इसकी वजह से सेना को पाकिस्तान के आतंकियों का पता लगाने में मदद मिली।
कारगिल की जंग ने बदले रिश्ते
वर्ष 1992 में भारत और इजरायल के बीच संबंध नए सिरे से परिभाषित हुए। इन संबंधों के ही 25 वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेल अवीव पहुंचेंगे। वर्ष 1992 के बाद 1999 का दौर एक ऐसा समय था जब भारत और इजरायल फिर से करीब आए। भारत की विदेश नीति में अमेरिका और इजरायल के साथ संबंधों को गहरा करने पर जोर दिया गया। इसी समय कारगिल की जंग हुई और इजरायल भारत का एक मददगार साथी बनकर उभरा।
भारत का साथी बना इजरायल
इजरायल तब तक भारत के लिए हथियार सप्लाई करने वाले एक बड़े देश में तब्दील हो चुका था। इसके बाद दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध मजबूत हुए और कई आधिकारिक दौरों को अंजाम दिया गया। तत्तकालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी समेत विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी इजरायल पहुंचे।
वाजपेयी ने दिया आमंत्रण
उस समय देश में वाजपेयी की सरकार थी और कारगिल की जंग के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन इजरायली पीएम एरियल शैरॉन को भारत आने का न्यौता दिया। हालांकि उन्हें अपने इस न्यौते की वजह से विपक्ष का खासा विरोध तक झेलना पड़ा था। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने तो उनके इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण तक करार दे डाला था।