दुर्लभ खनिजों को लेकर भारत-ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक समझौता, अब नहीं ब्लैकमेल कर पाएगा चीन
महत्वपूर्ण खनिज ऐसे तत्व हैं, जो आधुनिक युग में महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी की बुनियाद होते हैं और क्रिटिकल मिनरल्स की खोज में पूरी दुनिया लगी हुई है।
नई दिल्ली, जुलाई 05: महत्वपूर्ण क्वाड पार्टनर्स भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सोमवार को क्रिटिकल मिनरल्स यानि महत्वपूर्ण खनिजों के लिए परियोजनाओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्र में अपनी साझेदारी को मजबूत करने का फैसला किया गया है। दोनों देशों के बीच किया गया ये समझौता काफी महत्वपूर्ण है और दोनों देशों के बीच इस डील से ना सिर्फ आपसी साझेदारी और भी मजबूत होगी, बल्कि क्रिटिकल मिनरल्स के क्षेत्र में भी काफी फायदा होगा।
भारत-ऑस्ट्रेलिया में अहम समझौता
भारत के केंद्रीय कोयला और खान मंत्री प्रल्हाद जोशी ने ऑस्ट्रेलिया के अपने छह दिवसीय दौरे के दौरान अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष मेडेलीन किंग से मुलाकात की और इस दौरान दोनों देशों के बीच यह समझौता किया गया। इस दौरान ऑस्ट्रेलिया मंत्री मेडेलीन किंग ने भारत के साथ समझौता करते हुए कहा कि, "भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप के तहत तीन साल के लिए के लिए $ 5.8 मिलियन का निवेश करेगा'। ऑस्ट्रेलिया के केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि, 'ऑस्ट्रेलिया के पास वो संसाधन हैं, कि भारत गैस उत्सर्जन को कम कर सके और भारत अपने अंतरिक्ष और रक्षा उद्योगों, सौर पैनलों, बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए ऑस्ट्रेलिया संसाधनों का इस्तेमाल करे। ऑस्ट्रेलियाई मंत्री ने कहा कि, ऑस्ट्रेलिया भारत के मजबूत हित का समर्थन और स्वागत करता है और ये एक द्विपक्षीय साझेदारी जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाते हुए ऑस्ट्रेलिया में महत्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद करेगी'।
क्या होते हैं क्रिटिकल मिनरल्स?
महत्वपूर्ण खनिज ऐसे तत्व हैं, जो आधुनिक युग में महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी की बुनियाद होते हैं और क्रिटिकल मिनरल्स की खोज में पूरी दुनिया लगी हुई है। क्रिटिकल मिनरल्स की कमी की वजह से पूरी दुनिया में आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ा है। इन खनिजों का उपयोग मोबाइल फोन निर्माण, कंप्यूटर से लेकर बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहन और हरित प्रौद्योगिकी जैसे सौर पैनल और पवन टरबाइन बनाने से लेकर हर जगह किया जाता है। अपनी व्यक्तिगत जरूरतों और रणनीतिक विचारों के आधार पर, विभिन्न देश क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर अपनी सूची बनाते हैं। चीन भी अफगानिस्तान में इसीलिए निवेश कर रहा है, कि वो वहां से क्रिटिकल मिनरल्स निकाल सके और दुनिया के टेक्नोलॉजीकल इंडस्ट्री में अपना वर्चस्व हासिल कर सके।
कौन से खनिज हैं क्रिटिकल मिनरल्स?
हालांकि, ऐसी सूचियों में ज्यादातर ग्रेफाइट, लिथियम और कोबाल्ट शामिल हैं, जिनका उपयोग इलेक्ट्रिक व्लिकल बैटरी बनाने के लिए किया जाता है। ये काफी दुर्लभ खनिज होते हैं, जिनका उपयोग मैग्नेट और सिलिकॉन बनाने के लिए किया जाता है जो कंप्यूटर चिप्स और सौर पैनल बनाने के लिए एक प्रमुख खनिज है। एयरोस्पेस, संचार और रक्षा उद्योग भी कई ऐसे खनिजों पर निर्भर हैं, जिनका उपयोग लड़ाकू जेट, ड्रोन, रेडियो सेट और अन्य महत्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
क्रिटिकल मिनरल्स महत्वपूर्ण क्यों है?
जैसे-जैसे दुनिया भर के देश स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं, ये महत्वपूर्ण संसाधन उस पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो इस परिवर्तन को बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं, क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति में आया एक झटका, महत्वपूर्ण खनिजों की खरीद के लिए दूसरों पर निर्भर देश की अर्थव्यवस्था और सामरिक स्वायत्तता को गंभीर रूप से संकट में डाल सकता है। लेकिन, इन क्रिटिकल मिनरल्स की कमी एक ना एक दिन होनी ही है, लिहाजा दुनिया के कई देश इसको लेकर अभी से प्लानिंग कर रहे हैं और भारत की भी यही कोशिश है। ये आपूर्ति जोखिम दुर्लभ उपलब्धता, बढ़ती मांग और कॉम्पलेक्स प्रोसेसिंग के कारण मौजूद हैं। इसके साथ ही कई राष्ट्र अपनी शत्रुतापूर्ण नीति के जरिए या किसी देश की अर्थव्यवस्था में तूफान लाने के लिए, या फिर वहां की राजनीतिक स्थिरता को भंग करने के लिए क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं, इसीलिए आज के दौर में क्रिटिकल मिनरल्स काफी महत्वपूर्ण हो गये हैं।
400 से 600 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी मांग
फरवरी में अमेरिकी सरकार के एक बयान में कहा गया है, 'जैसा कि दुनिया एक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रही है और जीवाश्म इंधन को पीछा छोड़ रही है, इन महत्वपूर्ण खनिजों की वैश्विक मांग, खासकर लिथियम की मांग, अगले कई दशकों में 400-600 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बैटरियों में इस्तेमाल होने वाले ग्रेफाइट की मांग तो और भी ज्यादा बढ़ने की आशंका है और ग्रेफाइट की मांग आने वाले सालों में 4 हजार प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है, लिहाजा क्रिटिकल मिनरल्स को हासिल करने के लिए पूरी दुनिया में होड़ शुरू हो चुकी है। क्रिटिकल मिनरल्स इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि क्योंकि दुनिया तेजी से जीवाश्म ईंधन से खनिज-गहन ऊर्जा प्रणाली में स्थानांतरित हो रही है।
क्या है चीन का 'खतरा'?
2019 यूएसजीएस मिनरल कमोडिटी सारांश रिपोर्ट के अनुसार, चीन 16 क्रिटिकल मिनरल्स का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों की भूमिका पर एक रिपोर्ट के अनुसार, 'साल 2019 से चीन अकेले कोबाल्ट और दुर्लभ अर्थ एलिमेंट्स के वैश्विक उत्पादन के क्रमशः 70% और 60% के लिए जिम्मेदार है। इसके साथ ही प्रसंस्करण कार्यों में भी चीन की मजबूत उपस्थिति है। रिफाइनिंग में चीन की हिस्सेदारी निकेल के लिए लगभग 35%, लिथियम और कोबाल्ट के लिए 50-70% और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के लिए लगभग 90% है। और ये आंकड़े इस बात की गवाही देने के लिए काफी है, कि आने वाले वक्त में चीन कितनी आसानी से किसी भी देश के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इतना ही नहीं, अफ्रीदी देश कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में कोबाल्ट खानों को भी चीन ही नियंत्रित करता है, जहाँ से इस खनिज का 70% स्रोत प्राप्त किया जाता है।
जापान को परेशान कर चुका है चीन
साल 2010 में एक क्षेत्रीय विवाद के चलते चीन ने जापान को दुर्लभ क्रिटिकल मिनरल्स के निर्यात को दो महीने के लिए सस्पेंड कर दिया था और ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के अनुसार, चीन के इस फैसले ने आरआरई के बाजार मूल्य को 60% से 350% के बीच कहीं भी उछाल दिया। वहीं, चीन द्वारा शिपमेंट फिर से शुरू करने के एक साल बाद ही कीमतें सामान्य हो गईं। यानि, चीन ने काफी आसानी से क्षेत्रीय विवाद में क्रिटिकल मिनरल्स का इस्तेमाल किया और हो सकता है, कि आगे जाकर भारत और अमेरिका के साथ भी चीन ऐसा ही कर सकता है।
अमेरिका और भारत क्या कर रहे हैं?
2021 में, अमेरिका ने अपनी महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं में कमजोरियों की समीक्षा का आदेश दिया था, और रिपोर्ट में अमेरिका को पता चला था, कि "महत्वपूर्ण खनिजों और सामग्रियों के लिए विदेशी स्रोतों और प्रतिकूल राष्ट्रों पर अधिक निर्भरता ने राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर दिया है"। आपूर्ति श्रृंखला मूल्यांकन के बाद, अमेरिका ने घरेलू खनन, उत्पादन, प्रसंस्करण और महत्वपूर्ण खनिजों और सामग्रियों के पुनर्चक्रण के विस्तार पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। वहीं, भारत ने "भारतीय घरेलू बाजार में महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने" के लिए, तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के संयुक्त उद्यम, KABIL या खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड की स्थापना की है। 2019 में KABIL के गठन की घोषणा करते हुए, कोयला और मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा था कि, "जबकि KABIL राष्ट्र की खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, यह आयात प्रतिस्थापन के समग्र उद्देश्य को साकार करने में भी मदद करेगा।"
ऑस्ट्रेलिया ने भी उठाया अहम कदम
ऑस्ट्रेलिया के क्रिटिकल मिनरल्स फैसिलिटेशन ऑफिस (CMFO) और KABIL ने हाल ही में भारत को महत्वपूर्ण खनिजों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। वहीं, ब्रिटेन ने सोमवार को इन खनिजों की भविष्य की मांग और आपूर्ति का अध्ययन करने के लिए अपने नए क्रिटिकल मिनरल्स इंटेलिजेंस सेंटर का अनावरण किया। इसने यह भी कहा कि इस साल के अंत में देश की महत्वपूर्ण खनिज रणनीति का अनावरण किया जाएगा। वहीं, पिछले साल जून में, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने महत्वपूर्ण खनिज भंडार का एक इंटरेक्टिव मानचित्र लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य सरकारों को उनके महत्वपूर्ण खनिज स्रोतों में विविधता लाने के विकल्पों की पहचान करने में मदद करना था।