क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भारत और चीनः नेपाल का नया नक्शा किस तरह दोनों देशों के झगड़े को भड़का रहा है?

हाल के सालों में नेपाल भारत के प्रभाव से दूर हुआ है और चीन ने धीरे-धीरे निवेश और कर्ज़ देकर उस जगह को भरा है.

By अनबरासन एथिराजन
Google Oneindia News
नेपाल भारत
AFP
नेपाल भारत

नेपाल की संसद इस हफ़्ते आधिकारिक रूप से देश का नया नक्शा जारी कर सकती है.

इसमें तीन उन जगहों को भी शामिल किया गया है जिन्हें लेकर मजबूत पड़ोसी मुल्क भारत से विवाद छिड़ा है.

नक्शा दोबारा बनाए जाने पर इसमें हिमालय के एक छोटे क्षेत्र को शामिल किया जा रहा है लेकिन इस वजह से दुनिया की बड़ी ताक़तों भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है.

नेपाल के लोगों ने विरोध और गुस्सा जाहिर करते हुए भारत पर देश की संप्रभुता की अनदेखी करने का आरोप लगाया है.

हालिया महीनों में भारत की ओर से नेपाल सीमा के पास सड़क निर्माण के काम की वजह से तनाव बढ़ा है क्योंकि भारत की ओर से जारी किए गए नए नक्शे में विवादित जगहों को भारत के हिस्से में दिखाया गया है.

क्यों भड़का है तनाव?

इस बीच भारत और चीन पहले ही उत्तरी लद्दाख में सैन्य टकराव से गुजर रहे हैं, जहां कई हफ़्तों तक उनके सैनिकों टकराव रहा.

मीडिया और कुछ भारतीय अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि चीन के बहकावे में आकर नेपाल नक्शा बदल रहा है. हालांकि चीन ने इन आरोपों का जवाब नहीं दिया.

नेपाल और भारत के बीच करीब 1880 किलोमीटर सीमा खुली हुई है.

दोनों देशों ने 98 फीसदी सीमा को कवर करने वाले नक्शे को अंतिम रूप दिया है, लेकिन पश्चिमी नेपाल में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा वो क्षेत्र हैं जिन पर तनाव जारी है.

नेपाली अधिकारियों का कहना है कि ये तीनों क्षेत्र कुल 370 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हैं. लिपुलेख पास भारतीय राज्य उत्तराखंड को चीन के तिब्बत क्षेत्र से जोड़ता है.

नेपाल भारत
BBC
नेपाल भारत

नेपाल से विवाद

भारत का नेपाल और चीन दोनों से सीमा विवाद है. भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटने के बाद भारत ने नवंबर में अपना नया नक्शा जारी किया था.

इस नक्शे में उन जगहों को भारत के हिस्से में दिखाया गया है जिन्हें लेकर नेपाल से विवाद चल रहा है.

नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने बीबीसी से कहा, "हम सब इस बात से सहमत हैं कि दो देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा द्विपक्षीय समझौतों से तय होती हैं. किसी भी तरह की एकतरफा कार्रवाई से उनकी उपस्थिति के दावे को वैध नहीं साबित करेगा."

उन्होंने कहा कि 1816 की सुगौधी संधि के अलावा और कोई समझौता नहीं है जो नेपाल और भारत की पश्चिमी सीमा को तय करता हो. उस संधि में स्पष्ट लिखा है कि ये तीनों इलाके नेपाल की सीमा में आते हैं.

भारत पर पलटवार करते हुए नेपाल ने बीते महीने नया नक्शा प्रकाशित किया जिसमें विवादित क्षेत्रों को नेपाल की सीमा में दिखाया गया है. इससे भारत का गुस्सा भड़का है.

नेपाल भारत
EPA
नेपाल भारत

सुगौली संधि

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा, "हम नेपाल सरकार से ऐसे अनुचित दावे करने से परहेज करने और भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आग्रह करते हैं."

नक्शे में बदलाव के लिए बिल नेपाल की संसद में इस हफ़्ते पास होने की उम्मीद है.

नेपाल ने 1816 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं से हार के बाद अपने पश्चिमी क्षेत्र का एक हिस्सा छोड़ दिया था. इसके बाद की सुगौली संधि ने काली नदी के उत्पत्ति स्थल को भारत और नेपाल की सीमा तय किया. लेकिन दोनों देश काली नदी के स्रोत को लेकर अलग-अलग राय रखते हैं.

भारत का कहना है कि संधि में नदी को लिए स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी और दावा करता है कि बेहतर सर्वे तकनीक की मदद से बाद के सालों में नक्शा बनाया गया.

'कार्टोग्राफ़िक वॉर'

हाल ही में 'कार्टोग्राफ़िक वॉर' ने दोनों देशों की राष्ट्रवादी भावना को उग्र कर दिया है और नेपाल ने भारत से कालापानी क्षेत्र से अपने सैनिक हटाने को कहा है.

नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रहे राकेश सूद कहते हैं, "क्षेत्रीय राष्ट्रवाद पर दोनों तरफ से जिस तरह बयानबाज़ी हो रही है वो दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए सही नहीं है."

असल में ये तीनों क्षेत्र बीते 60 सालों या उससे भी अधिक समय से भारत के नियंत्रण में रहे हैं और इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भारतीय नागरिक हैं, भारत को टैक्स देते हैं और भारतीय चुनावों में वोट डालते हैं.

नेपाल के नेताओं का कहना है कि देश कई दशकों तक राजनीतिक संकट से जूझ रहा था जिसमें माओवादी उग्रवाद भी चरम पर था, इस वजह से वो भारत के साथ सीमा विवाद का मुद्दा उठाने की स्थिति में नहीं थे.

भारतीय सुरक्षा बलों ने कालापानी क्षेत्र में एक कैंप लगाया हुआ है.
BBC
भारतीय सुरक्षा बलों ने कालापानी क्षेत्र में एक कैंप लगाया हुआ है.

नेपाल कितना अहम है?

एक लैंडलॉक देश होने की वजह से नेपाल कई सालों तक भारत के आयात पर निर्भर था और भारत ने नेपाल के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

लेकिन हाल के सालों में नेपाल भारत के प्रभाव से दूर हुआ है और चीन ने धीरे-धीरे नेपाल में निवेश और कर्ज़ देकर उस जगह को भरा है.

चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में नेपाल को एक अहम पार्टनर के तौर पर देखता है और वैश्विक व्यापार बढ़ाने के अपने बड़े प्लान के उद्देश्य से नेपाल के इनफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना चाहता है.

साल 1996 में जियांग ज़ेमिन के बाद शी जिनपिंग नेपाल का दौरा करने वाले पहले चीनी राष्ट्रपति बने.

इस दौरान दोनों देश अपने संबंधों को 'सामरिक भागीदारी' में बदलने के लिए राज़ी हुए.

लिपुलेख का मामला

दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ और शंघाई की फुदान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डिंगली शेन का कहना है, "नेपाल लंबे समय तक भारत के प्रभाव में रहा है. लेकिन अब चीन के आने से उनके पास चीनी बाज़ार और संशाधनों के उपयोग का मौका है. सवाल यह है कि क्या नेपाल भारत और चीन के साथ अपने संबंधों में संतुलन बना पाएगा."

भारत के लिए लिपुलेख का मामला सुरक्षा से जुड़ा है.

साल 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद उसकी चिंता यह रही है कि कहीं इस पास से चीन घुसपैठ न कर दे और साथ ही भविष्य में किसी भी घुसपैठ के ख़िलाफ़ रक्षा के लिए रणनीतिक हिमालयी रास्ता पकड़ने के लिए भी उत्सुक रहा है. तब से यह पास विवाद का मुद्दा बना है.

इस साल मई में भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यहां 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया. इस बदलाव से उन तमाम हिंदू श्रद्धालुओं का वक़्त बचेगा जो वहां का सफर करते हैं लेकिन इस वजह से नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंध बिगड़ गए.

नेपाल भारत
ISHWAR RAUNIYAR
नेपाल भारत

नेपाल में भारत विरोधी आवाज़ें

भारत के इस कदम से नाराज़ नेपालियों ने काठमांडू में भारतीय दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और भारत से मांग की कि वो इस क्षेत्र से अपने सैनिक हटा ले. बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर हैशटैग बैक ऑफ़ इंडिया (#Backoffindia) के ज़रिए भी अपना गुस्सा जाहिर किया.

नेपाल के सर्वे विभाग के पूर्व डायरेक्टर जनरल बुद्धि नारायण श्रेष्ठ ने कहा, "हमने साल 1976 में एक नक्शा प्रकाशित किया था उसमें लिपुलेख और कालापानी दोनों नेपाल की सीमा में दिखाए गए थे. सिर्फ लिंपियाधुरा रह गया था जो कि एक ग़लती थी."

हालांकि इस सीमा विवाद से पहले नेपाल में भारत विरोधी आवाज़ें उठती रही हैं. साल 2015 में मधेसी समुदाय के विद्रोह के दौरान हिंसा भड़की थी. वे लोग और अधिकार देने की मांग कर रहे थे. उस दौरान भारत की ओर से सामान का निर्यात रोक दिया गया था.

हालांकि भारत इस बात से इनकार करता रहा है कि वो आर्थिक नाकाबंदी करना चाहता था, लेकिन नेपाल में इस दावे को मानने वाले लोग बेहद कम ही थे.

पांच महीनों की नाकाबंदी ने नेपाल में जनजीवन बेहाल कर दिया और बहुत से लोग इस वजह से भी नाराज़ थे कि इसके चलते साल 2015 के भूकंप की वजह से आई तबाही के बाद पुनर्निर्माण के काम में काफ़ी मुश्किलें आईं.

क्या चीन दखल दे रहा है?

हालिया सीमा विवाद में भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि वो इस मुद्दे को सुलझाना नहीं चाहते. भारत ऐसा लगता है कि नेपाल का यह मिजाज़ चीन के समर्थन की वजह से है.

भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने सार्वजनिक तौर पर कहा नेपाल ''नेपाल ने किसी और की वजह से अपनी मुश्किलें बढ़ा ली हैं.'' इस बयान को चीन के दखल से जोड़ा गया और भारत में कुछ राइट विंग मीडिया चैनलों ने सीमा विवाद उठाने के मामले में नेपाल को ''चीन की प्रॉक्सी'' तक कह दिया. यह बयान नेपाल के लोगों को पसंद नहीं आया.

हालांकि प्रो. शेन का मानना है कि इसमें चीन का हाथ नहीं है. वो कहते हैं, ''निजी तौर पर, मुझे नहीं लगता कि नेपाल अभी जो कुछ भी भारत के साथ कर रहा है उसमें कहीं भी चीन की भूमिका है.''

नेपाल भारत
AFP
नेपाल भारत

इस सब के बावजूद अब तक चीन इस मामले में चुप ही रहा है. हालांकि उसके विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्हें उम्मीद है भारत और नेपाल कोई भी एकतरफा फैसला नहीं लेंगे जिससे इस क्षेत्र में स्थिति बिगड़ जाए.

दोनों देशों में यह आम सहमति है कि ये मुद्दा सिर्फ बातचीत से ही सुलझ सकता है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कभी सबसे करीबी साथी रहे नेपाल से अभी भारत नाखुश है.

जब नेपाल की संसद नया नक्शा पास कर देगी तो भारत के लिए बातचीत से बच पाना मुश्किल हो जाएगा. दोनों देशों के कई पूर्व राजनयिक भारत से बातचीत की शुरुआत करने की अपील करते रहे हैं.

राकेश सूद का कहना है कि फिलहाल बीते कुछ महीनों से भारत का सारा ध्यान कोरोना महामारी से निपटने में लगा है लेकिन ''उन्हें नेपाल से बातचीत करने का एक मौका निकालना चाहिए था. भले ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही सही लेकिन इस मामले पर बात करें.''

हालांकि भारत के लिए चीन के सीमावर्ती सामरिक क्षेत्र को छोड़ना मुश्किल होगा, लेकिन नेपाली नेता बदले में कुछ भी हासिल किए बिना अपने ही लोगों के बीच संघर्ष करेंगे. दोनों पक्षों के लिए यह राह काफ़ी लंबी है.

अगर भारत अपनी स्थिति और कठोर करता है और नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने की होड़ में शामिल हो जाता है तो उसे और अधिक भारत-विरोधी आवाज़ों सुननी पड़ सकती हैं.

भारत और चीन के बीच दुश्मनी से नेपाल को काफ़ी फायदा मिल सकता है लेकिन इसमें यह ख़तरा भी है कि वो एशिया के इस पावर गेम में पिस न जाए.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
India and China: How is the new map of Nepal provoking conflict between the two countries?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X