फुटबॉल वर्ल्डकप जीतने वाले अर्जेंटीना को कितना जानते हैं आप? मेसी के देश में कचरा खाते लोग
अर्जेंटीना की अर्थव्यववस्था चार बार डिफॉल्ट कर चुकी है, जबकि 20वीं शताब्दी में देश की अर्थव्यवस्था काफी अच्छी हुआ करती थी। इस वक्त भी देश नकदी की किल्लत से बुरी तरह से जूझ रहा है।
Know About Argentina: याद कीजिए 2011 का क्रिकेट वर्ल्ड कप, जब महेन्द्र सिंह धोनी के छक्के के साथ ही भारत ने 1983 के बाद क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता था और उस छक्के के साथ ही पूरा हिन्दुस्तान सड़कों पर आ गया था। हर गली, हर नुक्कर और हर चौराहे पर लोग जश्न मना रहे थे और कुछ ऐसा ही हाल इस वक्त अर्जेंटीना का है। पूरा अर्जेंटीना जीत के जश्न में डूबा हुआ है और राजधानी ब्यूनस आयर्स की सड़कों पर देर रात तक "एगुआंटे अर्जेंटीना (अर्जेंटीना जिंदाबाद)" के नारे लग रहे थे। जैसे ही अर्जेंटीना के गोलकीपर एमिलियानो मार्टिनेज ने आखिरी पेनल्टी बचाई, ठीक वैसे ही पूरा अर्जेंटीना जीत के जश्न में पागल हो गया।
आसानी से नहीं मिली जीत
फुटबॉल विश्वकप ये फाइनल कुछ अलग था। कुछ अलग इसलिए, क्योंकि पहले हाफ में अर्जेंटीना 2-0 से आगे था और ऐसा लग रहा था, कि फ्रांस के खिलाड़ी फुटबॉल तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं और ऐसा लग रहा था, कि अर्जेंटीना ने शुरूआती दो गोल दागकर जीत हासिल कर ली है, लेकिन हाफ टाइम खत्म होने के बाद खेल पूरी तरह से बदल गया। लेस ब्लूस ने हार मानने से इनकार कर दिया और किलियन एम्बाप्पे के एक मिनट 37 सेकंड के अंदर एक के बाद एक दो गोल ने अर्जेंटीना के सभी प्रशंसकों को निराश कर दिया। मैच फिर अतिरिक्त समय में बढ़ा और इसके साथ ही लोगों की धड़कने पढ़ने लगीं। लियोनेल मेसी एक बार फिर गोल करने और अर्जेंटीना को जीत की तरफ आगे बढ़ाने के लिए बेताब थे, लेकिन अब फ्रांस डंट गया था। मेसी ने जैसे ही तीसरा गोल किया, तो फिर लगा कि खेल खत्म होने से करीब 4 मिनट पहले हुए गोल ने अब अर्जेंटीना को वर्ल्ड चैंपियन बना दिया है, लेकिन मैच खत्म होने के ठीक दो मिनट पहले फ्रांस के 23 वर्षीय खिलाड़ी एमबीप्पे ने एक बार फिर अकल्पनीय गोल कर दिया और इसके बाद मामला पेनल्टी शूटआउट की तरफ आ पहुंचा और फिर अंत में अर्जेंटीना ने फुटबॉल वर्ल्डकप जीत लिया।
इस विश्वकप में जीत के मायने
अर्जेंटीना के कप्तान मेसी सन्यास ले चुके थे, लेकिन फुटबॉल फैन्स ने उन्हें वापस खेल में लाया और मेसी अपने सपने के पूरा करने के लिए निकल पड़े और यही इस विश्व कप फाइनल की सबसे बड़ी उपलब्धि है। अपने मुख्य व्यक्ति लियोनेल मेसी के लिए यह आखिरी विश्व कप होने के अलावा, यह एक व्याकुलता का पल था और एक ऐसे देश के लिए एक नई उम्मीद थी, जो अपने सबसे बुरे संकट का सामना कर रहा है। आखिरी विश्वकप अर्जेंटीना ने 1986 में जीता था और फुटबॉल विश्वकप में मिली ये जीत अर्जेंटीना के लिए काफी मायने रखता है और अर्जेंटीना में जिस तरह का उत्सव जारी है, उसे करीब से देखने के बाद पता चलता है, कि अर्जेंटीना के लिए ये जीत कितना मायने रखता है।
बेतहाशा महंगाई में फंसा है अर्जेंटीना
दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र अर्जेंटीना भारी महंगाई में फंसा हुआ है, जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर काफी गहर नुकसान पहुंचा है। पिछले गुरुवार को ही जारी INDEC स्टेटिक्स इंडेक्स में अर्जेंटीना का प्राइस इंडेक्स 6 प्रतिशत तक पहुंच गया था, जो पिछले 6 महीने के मुकाबले 88 प्रतिशत ज्यादा है। अर्जेंटीना की सरकार लाख कोशिशों के बाद भी महंगाई को काबू में करने में कामयाब नहीं हो पा रही है और महंगाई दर 10 प्रतिशत को पार कर चुका है। महंगाई ने लोगों की बचत और सपनों को तेजी से खत्म कर दिया है, खासकर मध्यम वर्ग काफी ज्यादा प्रभावित हुआ है। राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज की वामपंथी सरकार देश की मुख्य वस्तुओं - सोया, मांस और गेहूं जैसी कृषि वस्तुओं के निर्यात को प्रतिबंधित कर या फिर भारी टैक्स लगाकर अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि, इन उपायों ने अर्जेंटीना के आर्थिक दर्द को और बढ़ाया ही है।
बेखरों की संख्या में भारी इजाफा
राजधानी ब्यूनस आयर्स और अन्य जगहों की सड़कों पर हाल के वर्षों में बेघर लोगों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है और कचरों के डिब्बों से खाना खोजकर जीवनयापन करने की कोशिश करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। वाशिंगटन पोस्ट का अनुमान है कि, 'देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी अब गरीबी रेखा से नीचे रहती है।' इस प्रकार लोगों को विदेश जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन, इस कयामत और निराशा के बीच, इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लियोनेल मेसी ने मसीहा अधिनियम को हटा दिया है, और लोगों की भावना को सातवें आसमान पर ला दिया है। अस्पताल में काम करने वाली 38 साल के लुक्रेसिया प्रेस्डिगर ने एएफपी को बताया कि, "लोग समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन फुटबॉल की जीत ने उन्हें असीमित खुशियां दी हैं। वो फिलहाल तंगहाली के जीवन को भूल गये हैं। वहीं, डिजाइनर टोनी मोल्फिस ने एएफपी को बताया कि, अर्जेंटीना जीत एक "राहत, ताजी हवा की सांस और एक खुशी झोंका है और हम इस खुशी के लायक थे।"
अर्जेंटीना में राजनीति अस्थिरता
विश्व कप की जीत अर्जेंटीना के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐसे समय में आई है जब देश की शक्तिशाली और ध्रुवीकरण करने वाली उपराष्ट्रपति क्रिस्टीना किरचनर को भ्रष्टाचार के आरोप में छह साल की जेल की सजा सुनाई गई है। इस फैसले ने अर्जेंटीना में दरारें और गहरी कर दीं हैं, क्योंकि देश की उपराष्ट्रपति रहीं क्रिस्टीना किरचनर का देश की राजनीति में काफी गहरा पकड़ था। अर्जेंटीना आज एक संघीय, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी शासन शक्ति कार्यकारी, विधायी और ज्यूडिशियल ब्रांचेज के बीच विभाजित है। हालांकि, ये हमेशा से ऐसा नहीं था और 1983 में ही अर्जेंटीना एक लोकतांत्रित देश बना था। 1816 में स्पेन से आजादी मिलने के बाद अब तक अर्जेंटीना आठ बार डिफॉल्टर देश बन चुका है और अर्जेंटीना में महंगाई दर अकसर 10 प्रतिशत से ऊपर ही रही है।
सेना ने किया था देश पर कब्जा
स्पेन से 1816 में आजादी हासिल करने वाले अर्जेंटीना में 1930 के बाद राजनीतिक अस्थिरता मच गई, जब सेना ने पिछले 7 दशकों से चल रही नागरिक लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर दिया था, लिहाजा उसके बाद से देश की आर्थिक स्थिति लगातार खराब ही रही। 1980 के दशक में अर्जेंटीना विदेशी कर्ज में पूरी तरह से डूब गया था और देश की अर्थव्यवस्था की तीन चौथाई हिस्सा कर्ज से भर गया था। जिसके बाद तानाशाह सरकार ने कंपनियों को निजीकरण करना शुरू किया, लेकिन बाद में देश डिफॉल्ट हो गया।
बार बार बिगड़ती अर्थव्यवस्था
बाद में देश में 1983 में देश में एक बार फिर से लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई और देश ने आर्थिक संकट से पार पाना शुरू किया और साल 2005 तक अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था काफी सुधर भी गई, लेकिन एक बार फिर से 2008 में देश आर्थिक संकट में फंस गया और 2014 में अर्जेंटीना फिर से डिफॉल्ट हो गया। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री साइमन क़ुज़नेत्स ने अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था को लेकर दिलचस्प बात कही थी, उन्होंने कहा था, कि "विश्व में चार प्रकार की अर्थवावस्थाएँ हैं- विकसित, अविकासित, जापान और अर्जेंटीना।" फिलहाल अर्जेंटीना फिर से आर्थिक संकट में फंसा हुआ है और देश में नकदी की किल्लत है, लिहाजा देखना दिलचस्प होगा, कि देश आखिर कब तक इन समस्याओं से पार पाता है।
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