चीन को मिडिल ईस्ट में मिल गया नया दोस्त, अमेरिका की इस नीति का असर, भारत के लिए भी चिंता
IPEF को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जापान की राजधानी टोक्यों में पिछले महीने क्वाड की बैठक के दौरान लांच किया है, जिसका मकसद इंडो-पैसिफिक में चीन को रोकना है।
बीजिंग/नई दिल्ली, जून 15: ग्लोबल सुपरपावर बनने के लिए चीन लगातार अपने आर्थिक कदमों का विस्तार कर रहा है और वैश्विक महाशक्ति बनने के लिए नये नये 'दोस्त' बना रहा है। चीन ने अब मिडिल ईस्ट में एक दोस्त को चुना है, जो भारत को असहज करने वाला है। दरअसल, अमेरिका जिस तरह से चीन को रोकने के लिए नई नई संधियां कर रहा है, उसके जवाब में चीन भी कदम उठा रहा है और अब चीन ने मिडिल ईस्ट में एक नये साथी को खोज लिया है।
मिडिल ईस्ट में चीन को मिला नया दोस्त
अमेरिका ने जैसे ही अपने इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढांचे का अनावरण किया, ठीक वैसे ही चीन ने मिडिल ईस्ट में संयुक्त अरब अमीरात और जाम्बिया को कॉल कर दिया। स्ट्रेट टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले महीने के अंत में संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान और दूसरे ने अपने जाम्बिया के समकक्ष हाकेंडे हिचिलेमा को फोन किया था। शी जिनपिंग ने यूएई के राष्ट्रपति को उस वक्त फोन किया है, जब बाइडेन प्रशासन ने इंडो-पैसिफिक में चीनी वर्चस्व को कुंद करने के लिए अपनी नई नीति का खुलासा किया है।
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क
दरअसल, IPEF को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जापान की राजधानी टोक्यों में पिछले महीने क्वाड की बैठक के दौरान लांच किया है, जिसका मकसद इंडो-पैसिफिक यानि भारत-प्रशांत क्षेत्र में, जहां चीन का प्रभाव बन रहा है, वहां व्यापारिक भागीदारी को चीन के प्रभाव से मुक्त कर बढ़ाना है। इस संगठन में अमेरिका के अलावा 12 और देश ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। यानि, 13 देशों का ये गठबंधन दुनिया की कुल जीडीपी का 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं। सबसे खास बात ये है, कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर इस संगठन के सभी साझेदार एशिया महाद्वीप के हैं और उससे भी सबसे बड़ी बात ये हैं, कि इनमें से ज्यादातर देश चीन के पड़ोसी हैं और चीन के साथ इनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। लिहाजा, इस व्यापारिक प्लेटफॉर्म को बनाने का मकसद ही इंडो-पैसिफिक में विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ चीन के आर्थिक प्रभुत्व का मुकाबला करना है।
ताइवान पर चीन बनाम अमेरिका
आपको बता दें कि, शंगरी-ला डॉयलाग के दौरान ताइवान के मुद्दे पर चीन और अमेरिका की नाराजगी खुलकर सबके सामने आई है। इन सबके बीच चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग ने ने एक बड़ा बयान दिया है और उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि, ताइवान की स्वतंत्रता को रोकने के लिए बीजिंग अंत तक लड़ेगा। जनरल वेई फेंग ने आरोप लगाया कि अमेरिका बहुपक्षवाद की आड़ में अपने हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। बता दें कि, चीन में 1949 में हुये गृहयुद्ध के बाद ताइवान अलग हो गया था । लेकिन चीन हमेशा से दावा करता रहा है कि ताइवान उसका हिस्सा है।। शंगरी-ला डॉयलाग में उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि, ताइवान की आजादी की खोज एक 'डेड एंड' है।
यूएई में पांव पसारता चीन
यहां यह जानना जरूरी है, कि यूएई का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार चीन है और चीन के बाद भारत और फिर अमेरिका का स्थान है। पिछले कुछ सालों से यूएई ने चीन के साथ अपने संबंधों को विस्तार दिया है। पिछले साल नवंबर में अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि, संयुक्त अरब अमीरात में चीन सीक्रेट बंदरगाह का निर्माण कर रहा है, जिसको लेकर अमेरिका ने चेतावनी जारी की थी। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस मामले के परिचित लोगों के हवाले से लिखा था कि, चीन ने संयुक्त अरब अमीरात में एक गुप्त बंदरगाह परियोजना पर निर्माण रोक दिया है, जिस पर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को संदेह है कि यह एक सैन्य निर्माण है।
बाइडेन प्रशासन ने दी थी चेतावनी
उस रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन प्रशासन ने यूएई को चेतावनी दी थी, कि खाड़ी देश में चीनी सैन्य उपस्थिति दोनों देशों के बीच संबंधों को खतरे में डाल सकती है, जिसके बाद इस परियोजना को रोक दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका ने सीक्रेट उपग्रह इमेजरी के आधार पर पता लगाया कि, चीन अबू धाबी की अमीराती राजधानी के पास बंदरगाह पर सैन्य निर्माण कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, संयुक्त अरब अमीरात में बंदरगाह पर चीन सैन्य निर्माण कर रहा था, इसके बारे में संयुक्त अरब अमीरात प्रशासन को भी खबर नहीं था। वहीं, अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का यूएई के राष्ट्रपति को फोन करना नये जियोपॉलिटिक्स की तरफ इशारा कर रही है। वहीं, अगले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति यूएई और सऊदी अरब का दौरा करने वाला है, लिहाजा माना जा रहा है, कि एशिया में नये राजनीतिक समीकरण बन और बिगड़ सकते हैं।