भारत-रूस की दोस्ती में 'दरार' डालना चाहता है अमेरिका! चल रही है बड़ी 'प्लानिंग'
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी थी। इसके बाद से अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों ने रूस का सामुहिक बहिष्कार कर दिया।
न्यूयॉर्क/नई दिल्ली, 27 अगस्त : रूस यूक्रेन युद्ध (russia ukraine conflict) के बाद से अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश भारत को मॉस्को के साथ कोई भी व्यापारिक संबंध नहीं रखने की बात करता रहा है। अब खबर है कि, अमेरिका रूस और भारत के संबंधों को कमजोर ( India-Russia friendship) करने की फिराक में लगा हुआ है। बता दें कि, यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद रूस के कई बड़े देशों के साथ संबंध खराब हो गए। हालांकि, भारत अपने सबसे पुराने जिगरी दोस्त रूस के साथ लगातार खड़ा रहा है। हालांकि, भारत ने कभी भी यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को जायज भी नहीं ठहराया है।
जंग के बाद हालात बदल गए, अमेरिका क्या सोचता है रूस को लेकर
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी थी। इसके बाद से अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों ने रूस का सामुहिक बहिष्कार कर दिया। हालांकि, भारत के रूस के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध है, इसलिए अमेरिका,यूरोप नहीं चाहते कि, रूस को किसी भी तरह से सहायता मिले। अमेरिका ने भारत पर इस बात को लेकर कई बार दबाव डाला कि, वह रूस का साथ छोड़कर उसके खिलाफ खड़ा होकर यूक्रेन के लिए यूरोप और अमेरिका का साथ दे। लेकिन भारत रूस के साथ किए दोस्ती के वादे से पीछे नहीं हटा और वह आज भी दोस्ती निभाने से पीछे नहीं हट रहा है।
भारत सबको साथ लेकर चलना चाहता है, लेकिन अमेरिका...
एक सच यह भी है कि, यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत और अमेरिका के बीच कई मसलों पर एक साथ चलने को लेकर आपसी सहमती बनी है। यह साल नई दिल्ली-वाशिंगटन साझेदारी का परीक्षण चल रहा है। इससे 21वीं सदी में वैश्विक सत्ता की राजनीति में उल्लेखनीय बदलाव आने की उम्मीद जताई जा रही है। खबर के मुताबिक, अमेरिकी कांग्रेस में इस बात पर चर्चा जोरो पर है कि क्या भारत और रूस के बीच की दोस्ती को कम किया जाए, या समाप्त किया जाए। कांग्रेस में रूस और भारत की दोस्ती को हमेशा के लिए समाप्त करने पर विचार किया जा रहा है।
अमेरिका रूस,भारत की दोस्ती कमजोर करना चाहता है
अमेरिका चाहता है कि, रूस को दुनिया से अलग-थलग कर दिया जाए। वह भारत की आड़ में रूस को कमजोर करने का दांव आजमा रहा है। इंडिपेन्डेंट कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) (independent Congressional Research Service (CRS) के रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में नीति निर्माताओं के सदस्यों के लिए इस वक्त रूस और भारत की दोस्ती कैसे तोड़ा जाए, सबसे बड़ा मुद्दा है। दूसरी तरफ, रूस और चीन के बीच बढ़ती दोस्ती पर अमेरिका की नीतियां अभी तक स्पष्ट नहीं है।
रूस से दूर रहने को बाध्य किया जा रहा था
रूस और यूक्रेन युद्ध के मध्य भारत को कई बार वैश्विक मंच से रूस से दूर रहने को कहा गया, लेकिन भारत रूस को आर्थिक मदद देने के लिए जुलाई महीने में चीन को पीछे छोड़कर भारत, रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया था। भारत की मदद से रूस को काफी ज्यादा आर्थिक लाभ मिला।
पुतिन को कमजोर करना मकसद
अमेरिका और यूरोपीय देशों को लगता है कि, अगर ऐसे ही रूस को अन्य देशों के साथ व्यापार के जरिए आर्थिक मदद मिलती रही तो वह पुतिन पर नकेल कसने में नाकाम हो जाएंगे। इसलिए अमेरिका के भीतर बैठे नीति निर्माताओं ने भारत को रूस से दूर करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वैसे भी रूस और भारत के बीच बनते बिगड़ते रिश्तों में ही अमेरिका का हित और अहित छिपा हुआ है।
भारत-रूस संबंध
आपको बता दें कि सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस का एक रिसर्च विंग है, जिसमें दोनों दलों के सदस्य होते हैं। यह विंग समय-समय पर सांसदों के लिए जरूर मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार करता है। रिपोर्ट में कहा गया है, "कांग्रेस इस बात पर विचार करना चाहती है कि अमेरिका के विदेश और रक्षा जैसे द्विपक्षीय विभाग अपनी रणनीतियों में क्या बदलाव लाए जिससे भारत और रूस की दूरी बढ़े।" सीआरएस ने अपनी इस रिपोर्ट को 'भारत-रूस संबंध और अमेरिकी हितों के लिए निहितार्थ' शीर्षक दिया है।
अमेरिका भारत से पंगा नहीं लेना चाहता!
वैसे भी, बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर भारत की तटस्थता के पीछे की मंशा को स्वीकार कर चुका है। अमेरिका इसके बाद भी देश की हितों की रक्षा के लिए भारत-रूस के संबंधों पर अपनी गहरी नजर बनाए हुए है। उसे लगता है कि, अमेरिका की हितों की रक्षा के लिए रूस को अलग-थलग करना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले भारत के साथ उसकी दोस्ती को खत्म किया जाए। वैसे भी 2017 के अमेरिकी कानून (पीएल 115-44) के मुताबिक,रूस के रक्षा या खुफिया क्षेत्रों के साथ अगर कोई लेन-देन करता है, या शामिल होता है तो ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति उस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। हालांकि, बाइडेन प्रशासन ने अभी तक भारत को लेकर ऐसे कोई कड़े कदम नहीं उठाए हैं।
रूस का भारत की सैन्य ताकत को मजबूत बनाने में योगदान
भारत ने 2021 के अंत में रूस के साथ अरबों डॉलर के एयर डिफेंस सिस्टम (the S-400 Triumf) का सौदा किया था।रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन में युद्ध ने भारत-अमेरिका साझेदारी की परीक्षा ली है, जो 21वीं सदी में वैश्विक प्रमुख शक्ति राजनीति में अधिक उल्लेखनीय बदलावों में से एक रही है। बता दें कि, अक्टूबर 2018 में भारत ने तत्कालीन ट्रम्प प्रशासन की चेतावनी के बावजूद अपनी वायु रक्षा को मजबूत करने के लिए S-400 मिसाइल प्रणाली की पांच इकाइयों को खरीदने के लिए रूस के साथ 5 अरब अमरीकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
भारत-रूस की दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी!
अमेरिका की कड़ी आपत्तियों और बाइडेन प्रशासन से प्रतिबंधों की धमकी के बावजूद भारत ने अपने फैसले में कोई बदलाव करने से इनकार कर दिया है और मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के साथ आगे बढ़ रहा है। विदेश मंत्रालय ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता है और इसके रक्षा अधिग्रहण उसके राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के अनुसार होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका भारत के साथ हथियार व्यापार और रक्षा संबंधों को मजबूत करने के साथ ही रूस के साथ भारत के संबंधों को कम करने के लिए जरूरी कदमों पर विचार कर सकता है।