Special Report: चीन में उइगर मुसलमानों का ‘नरसंहार’, अमेरिका समेत 90 देश करेंगे चीन ओलंपिक का बहिष्कार!
चीन में उइगर मुस्लिमों पर जुल्म के खिलाफ अमेरिका चीनी ओलंपिक 2022 का बहिष्कार करने का फैसला ले सकता है। अमेरिका अपने 90 सहयोगियों को भी चीन ओलंपिक बहिष्कार करने के लिए मना रहा है।
America may boycott Beijing Olympics: वाशिंगटन: अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आते ही चीन को अपने सख्त तेवर दिखा दिए हैं। चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर चीनी जुल्म के खिलाफ अमेरिका सख्त रवैया अख्तियार करते हुए 2022 में होने वाली बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार करने की घोषणा कर सकता है। अमेरिका मानता है कि शिनजियांग प्रांत में चीन ने डिटेंशन कैंप खोल रखे हैं, जहां उइगर मुसलमानों को प्रताड़ित किया जाता है, उनके साथ बर्बरता की जाती है। लिहाजा अब अमेरिका चीन को सख्त संदेश देते हुए बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार कर सकता है। माना जा रहा है कि अगर अमेरिका चीन ओलंपिक का बहिष्कार करता है, तो उसके साथ कई और देश भी बीजिंग ओलंपिक में शामिल होने से मना कर सकते हैं।
90 देश करेंगे चीन ओलंपिक का बहिष्कार!
यूनाइडेट नेशंस की परिभाषा के मुताबिक किसी देश, किसी संप्रदाय या फिर किसी मजहब को खत्म करने की नीयत रखना भी 'नरसंहार' की श्रेणी में आता है। लिहाजा, अमेरिका मानता है कि चीन की कम्यूनिस्ट सरकार उइगर मुसलमानों को खत्म करने की कोशिश कर रहा है, लिहाजा चीन पर प्रेशर बनाना ही होगा। चीन पर दवाब बनाने के लिए अमेरिका अपने उन सहयोगी देशों पर चीन से व्यापारिक संबंध खत्म करने या कम करने के लिए प्रेशर बनाएगा जिनका चीन से काफी व्यापार है। माना जा रहा है कि 90 से ज्यादा देश चीन में होने वाली ओलंपिक गेम्स का बहिष्कार कर सकते हैं।
चीन से ओलंपिक गेम हटाने की मांग
ऑस्ट्रेलिया, इग्लैंड, कनाडा समेत अमेरिका के कई नेता उइगर मुसलमानों से बर्बरता को लेकर चीन की कड़ी आलोचना करते हुए चीन से ओलंपिक गेम छीनने की बात कर चुके हैं। मार्च 2020 में अमेरिका के 12 सांसदों ने कांग्रेस में एक रिजॉल्यूशन पास करते हुए इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी से चीन से आयोजन छीनने और नये आयोजन स्थल को लेकर बीडिंग करवाने की मांग की थी। हालांकि, अभी तक किसी देश में आधिकारिक तौर पर चीन ओलंपिक का बहिष्कार करने का एलान नहीं किया है।
ओलंपिक संघ का बयान
अमेरिकी न्यूज चैनल CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने अपने बयान में कहा है कि 'उसे चीन की सरकार और चीन की नेशनल ओलंपिक कमेटी की तरफ से भरोसा दिया गया है कि चीन में ओलंपिक मापदंडों का पूरा सम्मान किया जाएगा। मगर फिर भी इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी मानता है कि उसके लिए किसी देश का पॉलिटिकल स्ट्रक्चर, सामाजिक तानाबाना और वहां का मानवाधिकार काफी महत्व रखता है'। सितंबर 2020 में ओलंपिक गेम्स में शामिल होने वाले 160 से ज्यादा देश IOC को चिट्ठी लिखकर चीन ओलंपिक पर रोक लगाने की मांग कर चुके हैं।
इंटरनेशनल तिब्बत नेटवर्क के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मैंडी मैककेन के नेतृत्व में चीन से ओलंपिक वापस लेने की मांग 160 देशों ने की थी। वहीं अब मैंडी मैककेन का मानना है कि अगर चीन से ओलंपिक छीनने या होल्ड लगाने की मांग 160 से भी ज्यादा देश कर सकते हैं। मैंडी मैककेन कहती हैं कि अगर चीन ओलंपिक को कैंसिल नहीं किया जाता है, तो कम से कम राजनीतिक स्तर पर उसका बहिष्कार कर देना चाहिए। इससे चीन पर काफी दवाब बनेगा।
ओलंपिक संघ के नियम
2017 में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने अपने नियमों में मानवाधिकार, भ्रष्टाचार को जोड़ा था, जिसके तहत किसी देश को अगर इन मामलो में शामिल पाया जाता है तो उससे ओलंपिक ओयाजन छीन लिया जाएगा। लेकिन ओलंपिक संघ का ये नियम 2022 ओलंपिक के बाद लागू होगा साथ ही ओलंपिक संघ ये भी मानता है कि किसी संप्रभु राष्ट्र के साथ वो ऐसा नहीं कर सकता है। लिहाजा, ओलंपिक संघ चीन पर बैन लगाने में सक्षम नहीं है। आपको बता दें कि चीन ओलंपिक का आयोजन 4 फरवरी 2022 से किया जाएगा। जिसको लेकर चीन में काफी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।
चीन के सुधरने के आसार कम
ह्यूमन राइट की वांग बताती हैं कि चीनी की सरकार को ह्यूमन राइट को लेकर एक मौका जरूर दिया जाना चाहिए, लेकिन वांग ये भी मानती हैं कि चीनी सरकार पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। शिनजियांग में रहने वाले मुसलमानों के अलावा चीन की सरकार हांगकांग में भी लोगों के मानवाधिकार को कुचल रही है, उसपर भी दुनियाभर से आवाजें उठ रही हैं, लेकिन चीन कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दे रहा है, ऐसे में वांग को नहीं लगता है कि जब तक चीन की राजनीति में कोई परिवर्तन होगा, तब तक चीन में मानवाधिकार का दमन कम होगा।
'यातना कैंप में मुस्लिमों का नरसंहार'
दरअसल, शिनजियांग और तिब्बत में मानवाधिकारों पर रिसर्च करने वाले कई संगठनों ने दावा किया है, उइगर मुस्लिमों को यातना कैंप में जबरन रखा जाता है, और नसबंदी कर उनकी जनसंख्या पर लगाम लगाने की कोशिश की जाती है। उइगर मुस्लिमों को यातना कैंप से निकलने की इजाजत नहीं होती है। जर्मन एंथ्रोपॉलोजिस्ट और विक्टिम ऑफ कन्युनिज्म मेमोरियल फाउंडेशन में सीनियर फेलो एड्रियन जेंज ने अपनी रिसर्च और यूनाइटेड नेशंस की परिभाषा के मुताबिक इसे जेनोसाइड यानि नरसंहार का मामला बताया है। ब्रिटिश अखबर 'गार्डियन' ने पिछले साल 4 सितंबर को अपनी रिपोर्ट में एक उइगर मुस्लिम महिला के हवाले से रिपोर्ट छापी थी, कि यातना कैंपों से उइगर मुस्लिमों को निकलने की इजाजत नहीं होती है, महिलाओं को IUD (गर्भाधारण रोकने का उपकरण) लगाने को कहा जाता है, और अगर कोई महिला IUD लगाने से इनकार कर देती है, तो फिर उसपर भारी जुर्माना लगाया जाता है, धमकी दी जाती है और उनके साथ यौन शोषण किया जाता है।
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