यूपी में गन्ना किसानों के मुद्दे पर क्यों डरे हुए हैं योगी आदित्यनाथ?
नई दिल्ली- यूपी में 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सात चरणों में वोटिंग होनी है। लेकिन, गन्ना किसानों के मुद्दे ने पहले चरण के चुनाव को बहुत ही रोमांचक बना दिया है। दरअसल, पहले चरण में 11 अप्रैल को राज्य के जिन 8 सीटों पर चुनाव होने हैं, वे सभी गन्ना बेल्ट में आते हैं। इसलिए, विपक्ष जितनी जोर से गन्ना किसानों के बकाए का मुद्दा उछाल रहा है, यूपी की बीजेपी सरकार उतनी ही रक्षात्मक होती नजर रही है। क्योंकि, पश्चिमी यूपी के गन्ना बेल्ट ने ही पिछलीबार कमल खिलाकर बीजेपी को राज्य में जबर्दस्त सफलता दिलाई थी।
विपक्ष का यूपी सरकार पर प्रहार
कांग्रेस की पूर्वी यूपी प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति गर्मा दी है। प्रियंका का आरोप है कि प्रदेश के गन्ना किसानों का 10,000 करोड़ रुपया अभी भी बकाया है, जिसे राज्य की योगी आदित्यनाथ की सरकार नहीं दिला रही है। वाड्रा के मुताबिक गन्ना किसानों के लिए वह 10,000 करोड़ रुपया ही सबकुछ है। इसी से उन्हें खाना मिलना है, बच्चों की पढ़ाई होनी है, बीमारी का इलाज होना है और अगली फसल की तैयारी भी करनी है। उनके भाई एवं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी गन्ना किसानों के बकाए के बहाने सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध रहे हैं। प्रियंका और राहुल ने जिस तरह से इस मुद्दे को हवा दी है, उसने महागठबंधन को भी परेशान कर दिया है। अब बीएसपी भी इसमें किसानों की हितैषी बनकर कूद पड़ी है। मायावती ने कहना शुरू कर दिया है कि बीजेपी सरकार मिल मालिकों पर दबाव बनाकर गन्ना किसानों का बकाया क्यों नहीं दिलवा रही है?
मुख्यमंत्री का 10,000 करोड़ रुपये का डर!
राहुल और प्रियंका ने जिस दिन गन्ना किसानों के बकाए को तूल दिया उसी दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री को गन्ना किसानों के बेल्ट से ही चुनाव प्रचार की शुरुआत करनी थी। जाहिर है कि कांग्रेस ने भी यही सोचकर बीजेपी सरकार पर निशाना साधने की कोशिश की होगी। लिहाजा, सीएम के लिए इस मामले को टालना आसान नहीं लगा। पहले तो उन्होंने विपक्ष के सियासी दांव को उल्टे विपक्ष पर ही पलटने की कोशिश की। मसलन उनका कहना है कि जब 2012 से 2017 के बीच राज्य के किसानों का बकाया था और वो भूखों मरने की कगार थे, तो उनके शुभचिंतक कहां थे? मुख्यमंत्री का तो दावा है कि उनकी सरकार ने गन्ना किसानों का रिकॉर्ड भुगतान किया है। उनके मुताबिक जब यूपी में बीजेपी की सरकार बनी थी, तब गन्ना किसानों का लगभग 57,800 करोड़ रुपये बकाया था। मतलब, उनकी सरकार ने बकाए का अधिकतम भुगतान करा दिया है और सारे आरोप चुनावी मकसद से लगाए जा रहे हैं। क्योंकि, बीजेपी जानती है कि अगर इस मुद्दे को हावी होने दे दिया गया, तो पार्टी को इसकी सजा भुगतनी पड़ सकती है। इसलिए उन्होंने गन्ना किसानों के बकाए का ठीकरा एसपी-बीएसपी की पिछली सरकारों पर ही थोप दिया है।
किन सीटों पर है विपक्ष की नजर?
11 अप्रैल को पहले चरण में यूपी के जिन 8 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं,वे हैं- सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर। ये सभी सीटें गन्ना बेल्ट में आती हैं और यह प्रदेश के जाटलैंड के नाम से भी मशहूर है। लिहाजा, राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजीत सिंह मुजफ्फरनगर से और उनके बेटे जयंत चौधरी बागपत से चुनाव मैदान में हैं। मुजफ्फरनगर में बीजेपी के संजीव बालियान और बागपत में पार्टी के सत्यपाल सिंह क्रमश: पिता-पुत्र के लिए चुनौती बने हुए हैं। कांग्रेस के चर्चित लेकिन विवादित उम्मीदवार इमरान मसूद भी सहारनपुर से ही चुनाव मैदान में हैं। इस बेल्ट की अहमियत के मद्देनजर बीजेपी ने अपना चुनाव प्रचार भी इसी क्षेत्र से शुरू किया है और महागठबंधन की पहली साझा रैली भी यहीं के देवबंद में 7 अप्रैल को होने वाली है।
2014 के मोदी लहर में बीजेपी यहां की सारी सीटें जीत गई थी, लेकिन पिछले साल हुए कैराना उपचुनाव में वह संयुक्त विपक्ष की प्रत्याशी हार गई थी। इसबार महागठबंधन बनने से बीजेपी की मुश्किलें पहले से ही बढ़ी हुई हैं, ऐसे में गन्ना किसानों के बकाए के मुद्दे पर विपक्ष उसे किस हद तक घेरने में कामयाब रहता है, यह देखने वाली बात होगी। वैस इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी की चुप्पी में कहीं न कहीं विपक्ष के डर को भी जाहिर कर रहा है, क्योंकि बकाए का ये मसला सिर्फ दो साल में पैदा नहीं हुआ है।
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