क्यों भारत के लिए बुरी खबर है अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, ये सच्चाई जानकर हिल जाएंगे आप
नई दिल्ली, 16 अगस्त: अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, भारत के लिए बहुत बड़ी चिंता की वजह है। जम्मू-कश्मीर में हिंसा का दौर तब शुरू हुआ था, जब सोवियत यूनियन के सैनिकों को अफगानिस्तान छोड़कर जाने को मजूबर होना पड़ा था। तारीख गवाह है कि पाकिस्तान ने बाद में उस युद्ध के लॉजिस्टिक का भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया। इतिहास एकबार फिर से उसी मुकाम पर पहुंच गया है। पिछले कुछ दिनों से अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसमें पाकिस्तान पूरी तरह से शामिल है। जाहिर है कि वह एकबार फिर से वही खौफनाक खेल खेलने की कोशिश करेगा, जिसमें उसे बीते दशकों में काफी कामयाबी हाथ लगी थी।
पाकिस्तान को मिल सकता है भारत के खिलाफ मौका
1988 में 8 वर्षों के संघर्ष के बाद सोवियत संघ को भी अमेरिका की तरह से ही अफगानिस्तान से बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा था। तब अमेरिका सोवित संघ के खिलाफ लड़ रहे अफगानी लड़ाकों को पीछे से समर्थन दे रहा था, जिसमें पाकिस्तान आज की तरह ही घुसा हुआ था। जब पुराना अफगान युद्ध खत्म हुआ तो उसके तत्काल बाद के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित प्रॉक्सी वॉर शुरू हो गया। दरअसल, इसके लिए हथियार कहीं और से नहीं आए थे, बल्कि यूएसएसआर के जाने के बाद अफगानिस्तान में जो हथियार और गोला-बारूद गोदामों में भरे पड़े थे, पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों के जरिए उसे कश्मीर के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। तालिबान के सामने लगभग हथियार डाल चुके अमेरिका के निकलने के बाद जो स्थिति बनने वाली है, वह भारत के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है। क्योंकि, तालिबान में पाकिस्तान सीधे और परोक्ष रूप से किस कदर घुसा हुआ है, उसकी सच्चाई किसी से छिपी नहीं रह गई है। यानी जो हथियार और गोला-बारूद तालिबान और उसके पाकिस्तानी सहयोगी अफगान सरकार के खिलाफ कर रहे थे, उसे भारत की ओर मोड़ने की कोशिश से वह बाज आएंगे, यह सोचना भारी पड़ सकता है।
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कश्मीर में गतिविधियां बढ़ाने की कर सकता है कोशिश
सिर्फ तालिबान के आतंकियों और उसके पाकिस्तानी साथियों के हाथ लगे अफगानी सेना के हथियारों तक ही बात सीमित नहीं है। सच्चाई ये है कि लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), हरकत-उल जिहादी इस्लामी (एचयूजेआई) और हरकत उल मुजाहिदीन (एचयूएम) जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का जन्म अफगानिस्तान के भीतर सोवियत सेना के खिलाफ लड़ाई के लिए ही हुआ था, जिसने 80 के दशक के अंत से भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर में पाकिस्तान के लिए काम करना शुरू किया। यह बात भी किसी से छिपी नहीं रह गई है कि तालिबान को मिलिट्री ट्रेनिंग देने में पूर्वी और दक्षिण अफगानिस्तान के पश्तून इलाके में पाकिस्तान ने कितनी अहम भूमिका निभाई है। इन आतंकी संगठनों का भारत के खिलाफ क्या रवैया होने वाला है, इसका अभी सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। खासकर आर्टिकल 370 हटाने के खिलाफ उनकी बौखलाहट तालिबान की सत्ता आने पर भी शांत रह पाएगी यह बहुत बड़ा सवाल बन गया है।
जिहादियों का पनाहगार रह चुका है अफगानिस्तान
1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का कट्टर इस्लामी शासन था, तब दुनिया कैसे अलग-अलग जिहादी संगठनों को झेलने को मजबूर हुई थी, जरा उसपर भी गौर फरमा लीजिए। चेचन्या से लेकर फिलीपींस तक जिहादी संगठन फलने-फूलने लगे थे, जिनके लिए अफगानिस्तान तब सुरक्षित पनाहगार बन गया था। सबसे बड़ी बात कि 1996 में जब अल-कायदा को सूडान से भागना पड़ा तो तालिबान के मुल्ला उमर ने उसका राजकीय मेहमान की तरह स्वागत किया। वह ऐसा वक्त था, जब अफगानिस्तान में हजारों जिहादी आतंकियों ने ट्रेनिंग ली और दुनिया भर में जाकर दहशत का नंगा नाच किया। अफगानिस्तान से सोवियत का वर्चस्व खत्म करने के लिए जिस अमेरिका ने कभी पाकिस्तान के प्रेम में जिहादियों का परोक्ष समर्थन दिया था, 11 सितंबर, 2001 में वही उसपर भारी पड़ गया। लेकिन, इसके बाद अमेरिका को होश जरूर आया और तालिबान को सत्ता से उसने दूर किया। ये अलग विडंबना है कि न्यूयॉर्क में हुई उस आतंकी वारदात की 20वीं बरसी से ठीक पहले तालिबान वापस आ चुका है।
नहीं भुला सकते विमान अपहरण कांड
अफगानिस्तान में इतिहास फिर से उसी मोड़ पर आ चुका है, जो भारत के लिए नासूर साबित हुआ था। अफगानिस्तान की हार पर जिस तरह से पाकिस्तान और उसके हुक्कमरान उत्साहित हैं, भारत की पुरानी खौफनाक यादें ताजा हो जाती हैं। पाकिस्तानी की कई मीडिया में तो तालिबान की जीत के बाद भारत के खिलाफ ही जहर उगले जा रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर से पाकिस्तान की मौजूदगी में अफगानिस्तान के फिर से आतंकवाद की नर्सरी बनने की आशंका भारत के लिए बहुत बड़ी चिंता की वजह बन सकती है। यह चाह कर भी आई 814 विमान अपहरण कांड को भुला नहीं सकता। चार पाकिस्तानी आतंकी 1999 में काठमांडू से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट को हाइजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ही ले गए थे, क्योंकि वहां उनके साथी तालिबान का राज था। तालिबान की मदद की वजह से ही पाकिस्तानी अपहरणकर्ता 150 हवाई यात्रियों के बदले मौलाना मसूद अजहर, मुस्ताक अहमद जरगर और उमर सईद शेख जैसे आतंकियों को रिहा करवाने में कामयाब हो गए थे।
तालिबान की मदद से ही छूटा था आतंकी मसूद अजहर
तालिबान की मदद से छूटा पाकिस्तानी आतंकी मौलाना मसूद अजहर ने फौरन ही जैश-ए-मोहम्मद जैसा आतंकी संगठन बनाया, जिसने 13 दिसंबर, 2001 में संसद पर हमले को अंजाम दिया था। 14 फरवरी, 2019 में कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले में भी उसी का हाथ था, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। लेकिन, तब पाकिस्तान को इल्म नहीं था कि भारत इसका इतना बड़ा बदला लेगा। दो दिन बाद ही 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई में खैबर पख्तूनखा के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करके जैश की ट्रेनिंग कैंप को तबाह कर दिया था और रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 300 से ज्यादा आतंकी ढेर कर दिए गए थे।
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पाकिस्तान बना नई चुनौती, नए तरीके से निपटना होगा
जब अफगानिस्तान में पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के चहेतों की सत्ता आ गई है तो इस बात की संभावना काफी हद तक बढ़ गई है कि अब पाकिस्तान अपने आतंकी मिलिट्री ट्रेनिंग कैंप को अफगानिस्तान के भीतरी इलाकों में शिफ्ट कर सकता है, ताकि उन्हें भारत की कार्रवाई की पहुंच से हर संभव दूर किया जा सके। आशंका यह भी है कि तालिबान को अफगानी सेना के जो हथियार हाथ लगे हैं, वह उसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को भी दे सकता है। वहीं तालिबानी आतंकियों के पास अब काम कम हुआ है, ऐसे में वह अपने दहशतगर्दों को भी भारत के खिलाफ जिहाद में इस्तेमाल कर सकता है। ऊपर से वहां से अमेरिका के जाने और अफगानिस्तानी सरकार की सत्ता खत्म होने से उसे जो खुफिया समर्थन मिल पा रहा था, उसपर भी ब्रेक लगने की पूरी संभावना है। यानी आने वाला समय भारत के लिए पाकिस्तान के साथ नए तरीके से निपटने का होगा, जो नई चुनौतियों से भरा हुआ है।