उन्नाव में किसानों पर पुलिस ने क्यों बरसाईं लाठियां?: ग्राउंड रिपोर्ट
उन्नाव में ट्रांस गंगा सिटी परियोजना स्थल पर दो दिन तक चले किसानों और पुलिस के संघर्ष के बाद सोमवार को उससे सटा शंकरपुर गांव गतिविधियों का केंद्र बना रहा. ट्रांस गंगा सिटी और उसके आस-पास का इलाक़ा छावनी में तब्दील हो गया है और शायद इसीलिए परियोजना स्थल पर सोमवार को शांति रही. किसान मुआवज़ा बढ़ाने और अन्य मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं
उन्नाव में ट्रांस गंगा सिटी परियोजना स्थल पर दो दिन तक चले किसानों और पुलिस के संघर्ष के बाद सोमवार को उससे सटा शंकरपुर गांव गतिविधियों का केंद्र बना रहा.
ट्रांस गंगा सिटी और उसके आस-पास का इलाक़ा छावनी में तब्दील हो गया है और शायद इसीलिए परियोजना स्थल पर सोमवार को शांति रही.
किसान मुआवज़ा बढ़ाने और अन्य मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं तो प्रशासन का कहना है कि नब्बे फ़ीसदी किसानों को मुआवज़ा मिल चुका है और इसे बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है.
सोमवार सुबह से ही किसान शंकरपुर के रामलीला मैदान में डट गए तो दूसरी ओर ज़िले के आला प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी वहीं कैंप किए रहे.
दोपहर क़रीब बारह बजे रामलीला ग्राउंड के दाहिनी ओर एक मंच पर प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी कुछ किसानों को ये समझाने में लगे थे कि उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा दिया जा चुका है और अधिग्रहण के वक़्त उनसे जो और वादे किए गए हैं, वो भी जल्द पूरे कर दिए जाएंगे.
वहीं बाईं ओर किसान परिवारों की महिलाएं और पुरुष बड़ी संख्या में बैठे सभा कर रहे थे जिनका साथ देने के लिए कुछ राजनीतिक दलों के लोग भी मौजूद थे.
प्रशासनिक अधिकारियों के चले जाने के बाद उसी जगह पर समाजवादी पार्टी के नेताओं ने सभा की और किसानों से हमदर्दी जताते हुए शनिवार और रविवार को हुई कथित पुलिस ज़्यादती की निंदा की.
वहीं आस-पास मौजूद किसान और गांव के लोग पुलिस और सरकार पर ग़ुस्सा निकाल रहे थे.
किसानों का आरोप है कि शनिवार को पुलिस वालों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठियां बरसाईं, बुज़ुर्गों और महिलाओं को भी नहीं बख़्शा.
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'बेरहमी से पीटा गया'
साठ वर्षीय सुनील त्रिवेदी हाथों पर पट्टी बांधे थे. शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ी लाठियों के निशान दिखाते हुए बोले, "हम लोगों को मीटिंग के लिए बुलाया गया था. हम सब वहां पहुंचे ही थे कि बिना किसी वार्ता के डीएम-एडीएम ने सीधे लाठी जार्च का आदेश दे दिया. इतनी बेरहमी से पीटा गया जैसे हम आतंकवादी हैं. एक-एक आदमी को पीटने के लिए आठ-आठ, दस-दस पुलिस वाले लगे थे. बूढ़ी महिलाओं तक को मारा गया."
सुनील त्रिवेदी जब ये बता रहे थे, उसी वक़्त कई युवक पहुंच गए और अपने शरीर पर चोटिल जगहें दिखाने लगे.
रमेश निगम नाम के एक युवक कहना था, "रविवार को प्लांट में आग लगने के बाद पुलिस वालों ने लोगों के घरों में घुसकर मारा-पीटा और दरवाज़े-खिड़कियां तोड़ गए. डर के मारे कई लोग गांव से ही भाग गए हैं. कुछ लोगों को पुलिस ले गई है जिनका अब तक पता नहीं चला है."
कई लोग घरों पर लाठी-डंडों के प्रहार के निशान, टूटे ताले, खिड़कियां और दरवाज़े दिखाने लगे. लोगों का ये भी कहना था कि पुलिस वाले घरों से ज़बरन मोटर बाइक्स उठा ले गए. लेकिन प्रशासन दावा कर रहा है कि किसानों ने ख़ुद ही पथराव किया जिसमें कई पुलिस वाले और अधिकारी भी चोटिल हुए हैं.
पुलिस का क्या है कहना?
उन्नाव के ज़िलाधिकारी देवेंद्र पांडेय बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "यूपीएसआईडीसी ने यहां काम शुरू कराने के लिए पुलिस बल की मदद मांगी थी जो उन्हें उपलब्ध कराई गई."
शनिवार की घटना के बारे में उन्होंने बताया, "शनिवार सुबह जब काम शुरू होने वाला था तो कुछ लोग आए और पत्थरबाज़ी करने लगे. लोगों को समझाने की कोशिश हुई, अधिकारियों को भेजा गया लेकिन उन लोगों ने दोबारा पथराव करना शुरू कर दिया गया जिसमें एसडीएम, सीओ, इंस्पेक्टर और कई कांस्टेबल घायल हुए."
इस दौरान उन्होंने किसी भी किसान के घायल होने की बात का खंडन किया.
उन्होंने कहा, "यह बात पूरी तरह से ग़लत है कि कोई किसान घायल है. यहां से लेकर लखनऊ, कानपुर और उन्नाव तक के अस्पतालों में भी यहां का कोई किसान घायल नहीं मिलेगा."
क्या है मामला?
दरअसल, उन्नाव और कानपुर के बीच ट्रांस गंगा सिटी बनाने के लिए क़रीब सोलह साल पहले, तीन गांवों के दो हज़ार से भी ज़्यादा किसानों की क़रीब साढ़े ग्यारह सौ एकड़ ज़मीन का उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम यानी यूपीसीडा ने अधिग्रहण किया था.
शुरुआत में मुआवज़ा बेहद कम था लेकिन अब ये साढ़े बारह लाख रुपये प्रति बीघा हो गया है.
यूपीएसआईडीसी के प्रबंध निदेशक अनिल गर्ग बताते हैं, "यहां तीन गांव शंकरपुर सराय, कन्हवापुर और मनभौना के किसानों की ज़मीन ली गई है. साल 2003 में जब ज़मीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई तब किसानों को डेढ़ लाख रुपये प्रति बीघा देना तय हुआ था लेकिन किसानों ने इसे नहीं माना तो साल 2010 में करार नियमावली के तहत साढ़े पांच लाख प्रति बीघा रखा गया."
उन्होंने कहा, "साल 2014 में सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव करके इसे सात लाख रुपये और बढ़ा दिए जिससे ये रेट साढ़े बारह लाख रुपये प्रति बीघा हो गया. उसके बाद काम भी शुरू हो गया लेकिन दो साल पहले किसानों ने फिर मुआवज़ा बढ़ाने की मांग करनी शुरू कर दी लेकिन इसका कोई प्रावधान अब नहीं है."
किसानों की क्या है मांग?
अनिल गर्ग बताते हैं कि किसानों को इसी परियोजना में उनके ज़मीन के कुल भाग का छह प्रतिशत भूखंड विकसित करके भी दिया जाना है जिसकी प्रक्रिया चल रही है. जबकि किसानों का कहना है कि पहले उन्हें सोलह प्रतिशत के बराबर विकसित भूखंड देने का वादा किया गया था और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का भी वादा किया गया था जबकि नौकरी जैसी बात को अधिकारी सिरे से नकार देते हैं.
दरअसल, किसानों की मांग है कि उन्हें भूमि अधिग्रहण क़ानून 2014 के हिसाब से मुआवज़ा दिया जाए.
इस परियोजना की नींव रखे हुए डेढ़ दशक से ज़्यादा का समय हो गया लेकिन दो साल में पूरी होने वाली यह परियोजना अब तक ठीक से शुरू भी नहीं हो सकी है. यहां जब भी काम शुरू होता है किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते हैं. शनिवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ.
शनिवार और रविवार को हुए हंगामे के मामले में दो केस दर्ज किए गए हैं. पहला मामला यूपीएसआईडीसी की तरफ़ से दर्ज कराया गया है जिसमें किसानों के ऊपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने उन पर हमला किया और एक जेसीबी तोड दी. इसमें दो लोग घायल भी हुए थे. दूसरा मामला पुलिस की तरफ से दर्ज कराया गया है जिसमें किसानों पर मारपीट का आरोप है.
यहां हैरानी की बात ये है कि किसानों की पिटाई के मामले मे अबतक कोई एफ़आईआर नहीं दर्ज हुई है.
एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "पुलिस और प्रशासन के डर के मारे कौन दर्ज कराएगा एफ़आईआर. गांव के कुछ लोग जो अपने को किसान नेता बताते थे, वो तक तो फ़रार हैं. किसानों को चोटें आई हैं लेकिन अपना इलाज भी नहीं करा पा रहे हैं और किसी से अपनी पीड़ा तक ज़ाहिर नहीं कर पा रहे हैं."
किसानों की पीड़ा
किसानों को एक आपत्ति इस पर भी है कि खड़ी फ़सल को रौंदकर आख़िर यूपीसीडा क्यों काम शुरू कराना चाहता है, जबकि यूपीसीडा का कहना है कि जब ज़मीन किसानों ने यूपीसीडा को बेच दी है तो उन्हें उस पर खेती कराने का अधिकार ही नहीं है.
यूपीसीडा के एमडी अनिल गर्ग के मुताबिक, नब्बे फ़ीसद किसानों को मुआवज़ा दिया जा चुका है और केवल वही किसान बचे हैं जिनकी ज़मीन को लेकर विवाद था. इस परियोजना के लिए तीन गांवों के कुल 2045 किसानों की 1144 एकड़ ज़मीन अधिग्रहीत किया गया है. इनमें से 1911 किसानों को मुआवज़ा दिया जा चुका है जबकि 134 किसानों का मुआवज़ा बाक़ी है.
अनिल गर्ग की बात को कुछ किसान भी स्वीकार करते हैं लेकिन बड़ी संख्या में किसानों की शिकायत है कि उन्हें मुआवज़े की पूरी राशि और निर्माण स्थल पर मिलने वाली छह प्रतिशत विकसित ज़मीन का वादा पूरा नहीं किया गया है और बिना उसके पूरा हुए ही परियोजना में काम शुरू कर दिया गया.
क्या पर्याप्त मुआवजा नहीं मिला?
उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडा) के कुछ अधिकारी बताते हैं कि जिन किसानों की ज़मीनें गई हैं, उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा मिल चुका है और इस इलाक़े में ज़मीन की इससे ज़्यादा क़ीमत भी नहीं है लेकिन किसानों को कुछ बाहरी लोग उकसा रहे हैं और उन्हें ज़्यादा मुआवज़ा दिलाने का लालच दे रहे हैं, जिसकी वजह से किसान आंदोलित हैं.
छुटवनपुरवा गांव के बांके लाल कहते हैं, "हम लोगों को तो जितना मुआवज़ा कहा गया था उससे ज़्यादा ही मिला है. ज़मीन भी देने को कहा गया है. हमें कोई शिकायत नहीं है."
उन्नाव के स्थानीय पत्रकार विशाल सिंह कहते हैं कि इस मामले में किसानों में भी दो-फाड़ हो गया है. उनके मुताबिक, कुछ किसान प्रशासन की बात मान गए हैं जबकि ज़्यादातर किसान बढ़े दर पर मुआवज़ा पाने की ज़िद पर अड़े हैं.
किसानों से हमदर्दी जताने के लिए किसान संगठनों से जुड़े लोगों के अलावा समाजवादी पार्टी के भी कई नेता सोमवार को शंकरपुर गांवे पहुंचे थे जबकि मंगलवार को कांग्रेस नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल वहां पहुंच रहा है.
किसी भी हिंसक स्थिति को रोकने के लिए परियोजना स्थल और आस-पास के गांवों में उन्नाव ज़िले का लगभग पूरा प्रशासन मुस्तैद है और बड़ी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात किए गए हैं. यहां त कि गांवों में भी चप्पे-चप्पे पर पुलिस वाले तैनात किए गए हैं. प्रशासन किसानों को समझाने में लगा है लेकिन किसानों ने समझने की सिर्फ़ एक शर्त रखी है कि उनकी मांगें मानी जाएं.