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जानिए, गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाने से क्यों डरते हैं राष्ट्रीय दल? 1962 से हर चुनाव का विश्लेषण

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नई दिल्ली- गुजरात (Gujarat) में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से राष्ट्रीय दलों के परहेज का विस्तार से विश्लेषण करें, उससे पहले एक तथ्य को दिमाग में रख लेना बेहद जरूरी है। पिछले 30 साल से गुजरात का कोई मुस्लिम नुमाइंदा लोकसभा में नहीं है। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल गुजरात के वो आखिरी मुस्लिम चेहरे हैं, जो अंतिम बार वहां से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। वर्तमान में भी वो संसद में गुजरात के प्रतिनिधि हैं, लेकिन सीधे जनता से चुनकर नहीं, बल्कि बैकडोर वाले माध्यम से राज्यसभा से पहुंचे हैं। लेकिन, इससे भी अधिक चौंकने वाली बात ये है कि अब तक राष्ट्रीय पार्टियों ने राज्य में सिर्फ 15 मुस्लिम प्रत्याशियों को ही चुनाव मैदान में उतारा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से राष्ट्रीय पार्टियां डरती क्यों हैं?

कांग्रेस भी फिसड्डी, लेकिन दूसरों से अव्वल

कांग्रेस भी फिसड्डी, लेकिन दूसरों से अव्वल

1962 से 2014 के लोकसभा चुनावों तक राष्ट्रीय दलों में सिर्फ कांग्रेस ने ही गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों पर भाग्य आजमाया है। लेकिन, उनकी संख्या भी सिर्फ 15 पर अटकी है। पार्टी ने इस बार भी भरूच से इकलौते मुसलमान उम्मीदवार को टिकट दिया है। सिर्फ अहमद पटेल ही एकमात्र कांग्रेस के मुस्लिम नेता हैं, जो तीन बार गुजरात से चुनाव जीते हैं। 1962 में कांग्रेस ने 2 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, उनमें से सिर्फ जोहराबेन छावडा बनासकांठा सीट से जीती थीं। इसके बाद 1977 में एहसान जाफरी अहमदाबाद से चुनाव जीते थे, जो 2002 के दंगों में मारे गए थे। जबकि, पटेल 1977, 1982 और 1984 में भरूच सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे थे। कांग्रेस ने 1977 में सबसे ज्यादा यानी 3 मुस्लिमों को टिकट दिया था और उनमें से दो यानी जाफरी और पटेल को सफलता मिली थी। 1989 के बाद से कांग्रेस ने गुजरात (Gujarat) में सिर्फ 7 मुसलमानों को टिकट दिया है। 1967, 1996 और 1999 में उसने अपना एक भी मुस्लिम उम्मीदवार गुजरात में नहीं उतारा। 2004 से पार्टी हर लोकसभा चुनाव में सिर्फ 1 उम्मीदवार को टिकट दे रही है। 2014 में राज्य में कुल 334 प्रत्याशी थे, जिनमें 67 मुसलमान थे। उनमें से 65 निर्दलीय, 1 समाजवादी पार्टी से और कांग्रेस के टिकट पर मकसुद मिर्जा नवसारी से मैदान में उतरे थे।

मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत पर संदेह

मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत पर संदेह

गुजरात में मुसलमानों की आबादी महज 9.5% है। इनमें इकट्ठे एक जगह सबसे ज्यादा 22% मुस्लिम वोटर भरूच में हैं, जहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 15.64 लाख है। अहमदाबाद में दानी लिमडा, दरियापुर और जमालपुर को मिलाकर 25% मुस्लिम वोटर हैं। जबकि जुहापुरा का बड़ा मुस्लिम बहुल इलाका गांधीनगर लोकसभा सीट में आता है, जहां करीब 4 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सेंटर फॉर सोशल स्टडीज के किरण देसाई मानते हैं कि गुजरात में मुसलमान सामाजिक ही नहीं, राजनीतिक तौर पर भी हाशिये पर हैं। जबकि बीजेपी दावा करती है कि वो जीतने योग्य उम्मीदवारों को टिकट देती है। पार्टी कहती है कि नगर निगम और पंचायत में वो मुसलमानों को टिकट देती है, जहां वे जीतने की स्थिति में होते हैं। जबकि, कांग्रेस नेता मनीष दोषी का कहना है कि गुजरात (Gujarat)विधानसभा में पार्टी के तीन विधायक हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने मुसलमानों को टिकट दिया था, लेकिन वे जीत नहीं सके।

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अब अहमद पटेल भी नहीं लगाते दांव

अब अहमद पटेल भी नहीं लगाते दांव

भरूच से तीन बार चुने जाने के कारण इस बार जोरदार चर्चा चली थी कि अहमद पटेल 2019 में भी उसी सीट से अपना भाग्य आजमाएंगे। लेकिन, आखिरकार उनका नाम सामने नहीं आया। वे अंतिम बार 1984 में राजीव लहर में यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। लेकिन, 1989 में बीजेपी के चंदू देशमुख ने उन्हें 1.15 लाख वोट से हरा दिया था। इसके बाद से किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को गुजरात से लोकसभा पहुंचना असंभव सा बन गया है। वैसे कांग्रेस ने एकबार फिर भरूच से अब्दुल शकुर पठान पर दांव लगाया है, लेकिन वे 30 साल बाद भी गुजरात में तैयार हुई राजनीतिक परंपरा को पलट पाएंगे या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे नरेंद्र मोदी को इसबार जमकर चुनौती देने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस के अहमद पटेल का इसबार लोकसभा चुनाव लड़ने से कन्नी काट जाना बहुत कुछ खुद ही बयां कर रहा है।

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English summary
why are the national parties afraid of betting on Muslim candidates in Gujarat?
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