मिलिए इंडियन आर्मी के जवान नरेन चंद्र दास जो दलाई लामा को तिब्बत से लेकर आए तवांग
असम की राजधानी गुवाहाटी में आयोजित नमामी ब्रह्मपुत्र कार्यक्रम में 79 वर्षीय रिटायर्ड राइफलमैन नरेन चंद्र दास से मुलाकात। सन् 1959 में दास की वजह से दलाई लामा तिब्बत से पहुंचे थे तवांग।
गुवाहाटी। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा इन दिनों नार्थ ईस्ट के दौरे पर हैं। रविवार को असम की राजधानी गुवाहाटी में आयोजित नमामी ब्रह्मपुत्र कार्यक्रम में उन्होंने शिरकत की। इस कार्यक्रम में दलाई लामा ने इंडियन आर्मी के एक रिटायर्ड जवान को थैंक्यू भी कहा। 79 वर्षीय नरेन चंद्र दास जो अब असम राइफल्स से रिटायर हो चुके हैं, दलाई लामा आज तक उनके शुक्रगुगजार हैं।
दास के शुक्रगुजार दलाई लामा
रविवार को दलाई लामा ने दास को जब सैल्यूट किया तो सभी लोग हैरान थे कि पूरी दुनिया जिनके आगे सिर झुका रही है, वह भला इस व्यक्ति को क्यों सैल्यूट कर रहे हैं? दरअसल नरेन चंद्र दास वही जवान हैं जिनकी वजह से दलाई लामा तिब्बत से सुरक्षित भाग सके थे। वर्ष 1959 में दास और उनके चार साथियों ने उनकी भागने में मदद की और फिर उन्हें सुरक्षित तवांग लेकर आए थे।
क्या किया था चीन ने
वर्ष 1959 में चीनी आर्मी ने ल्हाासा में तिब्बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया। तब दलाई लामा वहां से भाग निकले थे और उसके बाद से ही वह भारत में निर्वासन की जिंदगी बिता रहे हैं। दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं। धर्मशाला आज तिब्ब्ती की राजनीति का केंद्र बन गया है।
58 वर्ष बाद दास से मिले दलाई लामा
रविवार को करीब 58 वर्ष बाद जब तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा राइलफमैन दास से मिले तो खुद को उन्हें सैल्यूट करने से रोक नहीं पाए। दलाई लामा ने उन्हें गले लगया और बरसों पहले के उस पल को यादकर एन सी दास से का शुक्रिया अदा किया। वर्ष 1959 में एन सी दास अरूणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में तैनात थे। उनकी तैनाती के समय ही उन्हें दलाई लामा को तिब्बत सीमा से सुरक्षित भारत लाने का आदेश मिला था। दास ने अपनी ड्यूटी पूरी की और दलाई लामा को मैकमोहन रेखा से सुरक्षित भारत लेकर आए।
दोनों ही थे युवा
दलाई लामा को इंडियन आर्मी की जो टुकड़ी सुरक्षित भारत लेकर आई थी उसमें आधा दर्जन जवानों के साथ कंपनी कमांडर भी थे। दास उस समय सिर्फ 22 वर्ष के थे और दलाई लामा की उम्र 23 वर्ष थी। दास के कुछ साथियों का निधन हो चुका है और बाकी साथी कहां हैं किसी को भी नहीं मालूम। दास से मिलने के बाद दलाई लामा ने कहा, 'वृद्ध हो चुके एक सैनिक से मिलकर, जो मुझे सीमा पार से सुरक्षित लेकर आया, उससे मिलकर मुझे भी अहसास हो रहा है कि मैं भी अब बूढ़ा हो चुका हूं।'
दास को याद आया वह पल
दास ने भी उस मौके को याद किया जब दलाई लामा ने अपनी पहली रात इंटरनेशनल बॉर्डर लुमला में गुजारी जहां पर उनका भारत सरकार के अधिकारियों ने उनका स्वागत किया था। दास ने बताया, 'अगली सुबह असम राइफल्स की एक और टीम ने दलाई लामा को सुरक्षा दी और उनके बॉडीगार्ड्स उन्हें तवांग लेकर चले गए थे। उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता।' दास ने जानकारी दी कि हजारों की संख्या में तिब्बती बुमला के रास्ते भारत में दाखिल हो गए थे। दास बताते हैं कि उस समय सीमा के उस पार कोई भी चीनी नहीं था। उस समय यह तिब्बत था और चीन की सीमा उत्तर में भारत के साथ नहीं थी बल्कि तिब्बत से सटी थी।