परमबीर सिंहः मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर कहाँ हैं, ये पुलिस को भी पता नहीं
महाराष्ट्र सरकार ने पिछले महीने आधिकारिक तौर पर परमबीर सिंह के लापता होने का एलान कर दिया था. मई के बाद से उन्हें किसी ने सार्वजनिक जगहों पर नहीं देखा.
एक अक्तूबर को महाराष्ट्र के अधिकारियों ने बताया कि मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह लापता हैं. भारत की आर्थिक राजधानी के मुखिया के लापता होने की ये घोषणा चौंकाने वाली थी.
दो साल पहले ही परमबीर सिंह को 45 हज़ार पुलिसकर्मियों की संख्या वाली मुंबई पुलिस का प्रमुख बनाया गया था.
अब परमबीर सिंह ना तो मुंबई में अपने अपार्टमेंट में और ना ही अपने पैतृक शहर चंडीगढ़ के पते पर मौजूद हैं.
मुंबई पुलिस अपने ही पूर्व प्रमुख को तलाश रही थी लेकिन मुंबई में उनके साथ रहने वालीं उनकी पत्नी और बेटी तथा विदेश में रहने वाले उनके बेटे और वकीलों ने उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी.
ये मामला इसी साल फ़रवरी में भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से भरी एक कार के मिलने से शुरू हुआ था.
सवाल खड़ा हुआ था कि इसके पीछे कौन है.
अगले कुछ दिन में कार के कथित मालिक का शव शहर के पास ही समंदर में मिला. बाद में पुलिस जांच में पता चला कि उनकी हत्या करके शव फेंका गया था.
बाद में जब मृतक के एक परिचित पुलिसवाले को गिरफ़्तार किया गया तो चीज़ें और भी गंभीर और जटिल हो गईं.
जाँचकर्ता ये मानते हैं कि गिरफ़्तार किए गए मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के सब-इंस्पेक्टर सचिन वाझे का अंबानी के घर के बाहर मिली विस्फोटकों से लदी कार और हत्या से संबंध था.
मार्च में परमबीर सिंह को पद से हटाकर होमगार्ड का प्रमुख बनाकर भेज दिया गया. भारतीय मीडिया की भाषा में कहा जाए तो परमबीर को दंडित करके एक कम रुतबे वाले पद पर भेज दिया गया था.
राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने एक बयान में कहा था कि ये रूटीन तबादला नहीं है. उन्होंने कहा था कि, "मुंबई पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में तैनात अधिकारियों ने कई गंभीर ग़लतियां की हैं."
हालांकि ये कभी स्पष्ट नहीं किया गया कि ये गंभीर ग़लतियां क्या थीं.
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परमबीर सिंह ने मध्य मार्च में अपने पुराने दफ़्तर से कुछ किलोमीटर दूर ही स्थित अपने नए दफ़्तर में कार्यभार संभाल लिया.
इसके तुरंत बाद ही परमबीर सिंह ने सरकार के नाम एक पत्र लिखकर अपने बॉस अनिल देशमुख पर वसूली और भ्रष्टाचार के आरोप लगए. इसके लिए उन्होंने कोई सबूत पेश नहीं किया.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम लिखे पत्र में परमबीर सिंह ने आरोप लगाया कि देशमुख सचिव वाझे की मदद से मुंबई शहर के बार संचालकों और होटल कारोबारियों से सख़्त नियमों में ढील के बदले करोड़ों रूपए वसूल रहे थे.
देशमुख ने सभी आरोपों का खंडन किया लेकिन अगले ही महीने यानी अप्रैल में उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया. केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जांच शुरू की और उन्हें पांच बार पूछताछ के लिए तलब किया.
नवंबर में अनिल देशमुख को गिरफ़्तार कर लिया गया. वो अभी जेल में हैं. परमबीर सिंह पर आरोप लगाए हुए देशमुख ने कहा, "मुझ पर आरोप लगाने वाला देश से भाग गया है."
इसी बीच मई में परमबीर सिंह ने मेडिकल छुट्टियां लीं और दो बार इन्हें बढ़वाया.
और इसके बाद वो ग़ायब हो गए.
मुंबई के पॉश इलाके मालाबार हिल्स में उनके घर पर उनकी बेटी और पत्नी उनके बारे में बात नहीं करती हैं. बीबीसी ने जब उनके वकील अनुकूल सेठ से संपर्क किया तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
भारतीय मीडिया की रिपोर्टों में कयास लगाए जा रहे हैं कि परमबीर सिंह देश से भाग गए हैं. एक चैनल ने दावा किया कि वो रूस में हैं तो दूसरे ने दावा किया कि वो बेल्जियम में सुरक्षित हैं.
महाराष्ट्र के नए गृहमंत्री दिलीप वाल्से पाटिल ने एक बयान में कहा है, "हम उन्हें खोज रहे हैं. वो एक सरकारी अधिकारी हैं. बिना सरकार की अनुमति के वो देश छोड़कर नहीं जा सकते हैं."
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महाराष्ट्र सरकार ने एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में परमबीर के मामले की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया है. परमबीर सिंह के ख़िलाफ़ अब रियल एस्टेट कारोबारियों, होटल मालिकों और बुकी की तरफ़ से चार आपराधिक मामले दर्ज करवाए गए हैं जिनकी जांच चल रही है.
उनके वकील ने अदालत को बताया है कि परमबीर सिंह पैनल के संपर्क में हैं जिससे संकेत मिलता है कि वो क़ानून से नहीं भाग रहे हैं.
अभी भी इस मामले के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है. क्या इसका विस्फोटकों से भरी कार के मामले से कोई संबंध हैं? ऐसी क्या वजह थी कि अनिल देशमुख को परमबीर सिंह को पद से हटाना पड़ा? मंत्री के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप लगाने के बाद परमबीर सिंह लापता क्यों हो गए? परमबीर सिंह मामले की जांच कर रहे पैनल के सामने प्रस्तुत क्यों नहीं हो रहे हैं?
इन सवालों का अभी कोई जवाब नहीं है.
समाज शास्त्र में मास्टर्स डिग्री लेने वाले परमबीर सिंह के पिता एक अधिकारी थे और मां गृहिणी थीं. अपने कार्यकाल के अंतिम वर्षों तक वो तंदुरुस्त रहे और उन्हें क्रिकेट खेलने का शौक था.
अपने चार दशक के पुलिस करियर में उन्होंने माओवाद प्रभावित ज़िलों में माओवादियों और शहरी क्षेत्रों में गैंगस्टरों से मुक़ाबला किया. 1990 के दशक में उन्होंने अंडरवर्ल्ड का ख़ात्मा करने वाली मुंबई पुलिस की टीम के साथ काम किया.
उस दौर में भारत का सबसे अमीर शहर मुंबई अपराध और माफ़िया से बुरी तरह प्रभावित था.
वो 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' कहे जाने वाले पुलिसवालों के साथ काम करके सुर्ख़ियों में आए. ये पुलिसवालों कारोबारियों और फ़िल्म निर्माताओं से फ़िरौती मांगने वाले गैंगस्टरों का एनकाउंटर में सफाया किया करते थे.
मुंबई के अपराध पर किताब लिखने वाले पत्रकार एस हुसैन ज़ैदी ने लिखा कि परमबीर सिंह को एक दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ मिलकर मुंबई से अंडरवर्ल्ड का सफ़ाया करने का काम दिया गया था और दोनों ने मिलकर इस काम को करने के लिए तीन 'एलीट एनकाउंटर स्क्वॉड' का गठन किया था.
सिंह अगले साल 60 साल के होकर पुलिस बल से रिटायर हो जाएंगे.
अगस्त में फ़ोन पर बात करते हुए उन्होंने एक पत्रकार से कहा था, "मैं भारत में ही हूं और मैंने देश नहीं छोड़ा है."
एक बात ये भी है कि उनकी अपनी मुंबई पुलिस को नहीं पता है कि वो कहां हैं और क्यों सामने नहीं आ रहे हैं.
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