किसने कहा था, “मैं भाजपा का सचिन तेंदुलकर बनना चाहता हूं”
नई दिल्ली, 03 मई। जैसे अमित शाह को आज मोदी सरकार का संकटमोचक माना जाता है वैसे ही कभी प्रमोद महाजन वाजपेयी सरकार के संकटमोचक थे। 3 मई 2006 को अचानक उनकी हत्या हो गयी वर्ना आज वे भाजपा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे होते। प्रमोद महाजन अपने दौर में सबसे तेज तरक्की करने वाले नेता थे। वे रणनीति बनाने में जितना माहिर थे उतने ही हाजिरजवाब भी थे।
वे शानदार वक्ता थे। जब वे अपनी बात को ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से जोड़ कर सामने रखते तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वे समस्या से भागते नहीं थे बल्कि डट कर उसका समाधान खोजते थे। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के संयोजक प्रमोद महाजन थे। उसी समय नरेन्द्र मोदी ने भी राष्ट्रीय राजनीति में चमक बिखेरी थी। गुजरात में रथयात्रा के मोदी ही रणनीतिकार थे। उस समय प्रमोद महाजन ने नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक कौशल की बहुत तारीफ की थी।
वाजपेयी जी के भरोसेमंद थे प्रमोद महाजन
प्रमोद महाजन की काबिलियत को सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने पहचाना था। फिर वे अटल बिहारी वाजपेयी के करीब आये। राजनीतिक उलझन को सुलझाने में उनका कोई सानी नहीं था। इस वजह से जब अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में 13 दिन के प्रधानमंत्री बने तो प्रमोद महाजन को रक्षा मंत्री बनाया था। सरकार भले 13 दिन चली लेकिन वे अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गये। 1998 के लोकसभा चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन प्रमोद महाजन उत्तर पूर्व मुम्बई से चुनाव हार गये थे। वाजपेयी जी को सरकार चलाने के लिए प्रमोद महाजन का सहयोग चाहिए था। उस समय प्रमोद महाजन की बढ़ती अहमियत से भाजपा के कई नेता जलते थे। उनके चुनाव हारने पर इन नेताओं को बहुत संतोष मिला था। लेकिन वाजपेयी जी ने प्रमोद महाजन को अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त उन्हें सरकार में अहम भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंप दी। उन्हें कैबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा दिया गया था। कुछ दिनों के बाद जब राज्यसभा की सीट खाली हुई तो प्रमोद महाजन को सांसद बना दिया गया। इसके बाद वाजपेयी जी ने प्रमोद महाजन को मंत्री बना कर ही दम लिया। यही नहीं उन्हें सरकार का प्रवक्ता जैसा अहम पद भी सौंपा गया था।
आडवाणी की रथ यात्रा कैसे हुई ती सुपरहिट ?
आडवाणी जी की रथ यात्रा 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ शुरू हुई थी। यह यात्रा 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में सम्पन्न होनी थी। तब प्रमोह महाजन ने योजना बनायी कि रास्ते में जितने भी भाजपा कार्यालय हैं उन सभी में फैक्स मशीन लगा दी जाय। ताकि दिल्ली के हर अखबार को रथयात्र के पल पल की जानकारी मिलती रहे। दिल्ली के अखबारों को नियमित अंतराल पर प्रेस विज्ञप्ति मिलने लगी जिससे रथयात्रा की खबरें प्रमुखता से छपने लगीं। इसकी वजह से से पूरे देश में राममंदिर को लेकर एक लहर पैदा हो गयी। प्रमोद महाजन ही आडवाणी के रथ का संचालन कर रहे थे। रथ से हर दिन करीब बीस सभाएं होतीं। लालकृष्ण आडवाणी तो मुख्य वक्ता थे ही लेकिन प्रमोद महाजन अपने जोशीले भाषण से समां बांध देते। लालकृष्ण आडवाणी ने प्रमोद महाजन के बारे में एक बार कहा था, यदि आप उनसे एक काम करने के लिए कहेंगे तो दस और काम का अनुमान लगाएंगे और उसे करेंगे भी। इससे समझा जा सकता है कि वाजपेयी दौर की राजनीति में प्रमोद महाजन कितने अपरिहार्य नेता थे। एक बार प्रमोद महाजन ने अपने बारे में कहा था, मैं भाजपा का सचिन तेंदुलकर बनना चाहता हूं। कप्तान चाहे कोई भी हो, मैं सचिन की तरह सबकी टीम में रहना और जीत के लिए रन बनाना चाहता हूं।
हर PM को संकटमोचक की जरूरत
अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में प्रमोद महाजन भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार थे। नरेन्द्र मोदी के दौर में अमित शाह भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार हैं। तब की राजनीतिक परिस्थितियां अलग थीं। आज की अलग हैं। तब संविद सरकार की मजबूरियां थीं। आज भाजपा अकेले बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी है। दो अलग-अलग दौर के रणनीतिकारों के बीच तुलना उचित नहीं। लेकिन भाजपा के उत्थान में इन दोनों नेताओं की अहम भूमिका है। जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब अमित शाह उनके सबसे विश्वस्त और काबिल सहयोगी थे। मेहनती और कुशल रणनीतिकार थे। नरेन्द्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तो अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। वे सबसे कम उम्र (50) में भाजपा अध्यक्ष बने थे। 2014 की जीत में उनका भी अहम योगदान था। लेकिन उन्होंने अपनी रणनीतिक योग्यता का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2017 में किया। उत्तर प्रदेश की जातीय गोलबंदी के ध्वस्त करने के लिए अमित शाह ने अलग नीति बनायी और भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलायी। अमित शाह अब भारत के गृहमंत्री हैं। इससे समझा जा सकता है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए कितने जरूरी हैं। हर प्रधानमंत्री अपने संकट मोचक को सदैव साथ रखना चाहता है। जो अटल बिहारी वाजपेयी ने किया वहीं नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं।
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