शानदार भाषण के लिए जाने जाने वाले अटल बिहारी जब अपना पहला भाषण बीच में ही भूल गए
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं रहे। बीमारी से लंबे संघर्ष के बाद आज उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली। अटल जी प्रखर वक्ता के तौर पर जाने जाते थे। उनकी वाक पटुता और उनकी मधुर वाणी में ऐसा जादू होता था कि उनके धुर विरोधी भी उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। उनके पास शब्दों का ऐसा भंडार था, जिसके जरिए वो बड़ी से बड़ी बातें आसानी से कह जाते थे। उनके भाषणों को सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुटती थी। आम जनता से लेकर राजनेता उनके भाषणों को सुनने के लिए इंतजार करते थे। उनकी भाषण शैली के हजारों लाखों लोग दीवाने हैं। उनकी लोकप्रियता सीमाओं से परे है। अटल जी के भाषणों संग्रहों को लोग आज भी सुनते हैं। संसद से लेकर सभाओं में उन्होंने कई ऐसे यादगार भाषण दिए, जिसे कोई नहीं भूल सकता। अटल जी की जिस भाषण शैली की दुनिया दीवानी हैं वहीं अटल जी अपना भाषण बीच में ही भूल गए थे।
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जब बीच में ही अपना भाषण भूल गए अटल बिहारी वाजपेयी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों के दीवानों की तादात लाखों में हैं। वो अपनी भाषण शैली और अपने शब्द से लोगों को बांधकर रख लेते थे। अटल जी के जिस भाषण शैली की दुनिया दीवानी हैं वहीं अटल जी अपना पहला भाषण बीच में ही भूल गए थे। जिसके बाद उन्हें भाषण बीच में ही बंद करके स्टेज से जाना पड़ा था।
भाषण बीच में छोड़कर स्टेज से उतरना पड़ा था
अटल बिहारी वाजपेयी पर लिखी अपनी किताब में डॉ. प्रीतम सिंह ने उस वाकये का जिक्र किया है, जिसमें अटल जी अपना पहला भाषण स्टेज पर भूल गए थे। वाकया गुजरात के वडनगर के उस स्कूल के वार्षिकोत्सव का है, जहां अटल जी के पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी हेडमास्टर थे। वार्षिकोत्सव के दौरान वो मंच पर भाषण देने पहुंचे, लेकिन बीच में ही लड़खड़ा गए। उन्हें अपना भाषण बीच में ही बंद कर स्टेज से उतरना पड़ा।
खाने-पीने के बेहद शौकीन अटल
डॉ. प्रीतम सिंह ने वाजपेयी पर अपनी किताब पर उनके खाने के शौक के बारे में भी लिखा है। डॉ प्रीतम पहले शख्स हैं, जिन्होंने वाजपेयी पर शोध करने की पहल की और देश में पहली बार वाजपेयी के जीवन पर शोध के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था। अपनी किताब में उन्होंने लिखा कि अटल को बाजरे का पुआ और गुझिया बहुत पसंद थे। वो जब भी ग्वालियर जाते तो वहां के एमएलबी रोड पर मिलने वाले मुंगौड़े जरूर खाते थे।