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जब हिंदू लड़के के प्यार में घर छोड़ा

आदित्य के मुताबिक ये उनकी ज़िंदगी का पेचीदा दौर है. कई रिश्तों और सपनों का संतुलन बनाकर चलना है.

'स्पेशल मैरेज ऐक्ट' के तहत शादी करना चाहते हैं. अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी गृहस्थी ख़ुद चलाना चाहते हैं.

अब ये दोनों 21 साल के हो गए हैं. एक-दूसरे पर भरोसा क़ायम है. आइशा कहती है कि आदित्य उसका हीरो है, उसे हौसला देता है.

By BBC News हिन्दी
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आइशा और आदित्य
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आइशा और आदित्य

आइशा और आदित्य की मुलाक़ात फ़ेसबुक पर हुई. तब वो बालिग भी नहीं थे. आइशा का नाम भी सच्चा नहीं था, तस्वीर भी नहीं पर बातें सच्ची थीं.

बातों का सिलसिला ऐसा बना कि दो साल तक थमा नहीं. बेंगलुरु में रहनेवाली आइशा और दिल्ली के आदित्य एक-दूसरे का चेहरा देखे बिना, मिले बिना, एक-दूसरे के क़रीब होते गए.

आइशा ने मुझे कहा कि उसे बिल्कुल यक़ीन नहीं था कि इस ज़माने में कोई लड़का सच्चे प्यार में विश्वास रखता होगा इसीलिए बातों के ज़रिए परखती रही.

एक बार ग़लती से अपनी आंखों की तस्वीर भेज दी. बस आदित्य ने बेंगलुरु के कॉलेज में दाखिला ले लिया. तब जाकर आदित्य की मुलाकत फेसबुक की इरम ख़ान, यानी असल ज़िंदगी की आइशा से हुई.

आदित्य कहते हैं, "हम मिले नहीं थे पर शुरू से जानते थे कि वो मुसलमान है और मैं हिंदू, धर्म हमारे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा पर हमारे परिवारों को ये बिल्कुल क़बूल नहीं था."

उन्हें साफ़ कर दिया गया कि बिना धर्म परिवर्तन के शादी मुमकिन नहीं है. पर अपनी पहचान दोनों ही नहीं खोना चाहते थे.

आइशा ने घर छोड़कर भागने का फ़ैसला किया. परिवार ने रोकने की कोशिश की पर आदित्य के साथ वो दिल्ली आ गई जहां वो लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे.

आइशा कहते हैं, "पहले पांच महीने हमने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया, कहीं आने-जाने में डर लगता था, कि कहीं कोई हमें मार ना दे क्योंकि हम अलग मज़हब से हैं."

उन्हीं दिनों दिल्ली में एक मुस्लिम लड़की से प्रेम संबंध रखने की वजह से 23 साल के एक लड़के, अंकित सक्सेना की हत्या कर दी गई थी.

लड़की के परिवारवाले गिरफ़्तार हुए और मुकदमा जारी है. इज़्ज़त के नाम पर हत्या का ख़ौफ़ और ख़तरा आइशा को अपने बहुत क़रीब लगने लगा था.

एक ओर नौकरी ढूंढना ज़रूरी था और दूसरी ओर शादी कर क़ानूनन तौर पर सुरक्षित होना.

आइशा और आदित्य साथ तो थे पर दुनिया में अकेले. तजुर्बा भी कम था. एक बार फिर इंटरनेट ने उनकी ज़िंदगी को नया मोड़ दिया.

जानकारी की तलाश उन्हें रानू कुलश्रेष्ठ और आसिफ़ इक़बाल के पास ले गई. पति-पत्नी का ये जोड़ा भी उन्हीं की तरह दो धर्मों से साथ आया था.

साल 2000 में इन्होंने 'स्पेशल मैरेज ऐक्ट' के तहत शादी की थी और अब 'धनक' नाम की संस्था चला रहे हैं.

वो आइशा और आदित्य जैसे जोड़ों को इस 'ऐक्ट' के बारे में जानकारी देने, काउंसलिंग करने और रहने के लिए सेफ़ हाउस जैसी सुविधाओं पर काम कर रहे हैं.


स्पेशल मैरेज ऐक्ट

स्पेशल मैरेज ऐक्ट 1954 के तहत अलग-अलग धर्म के लोग बिना धर्म परिवर्तन किए क़ानूनन तरीके से शादी कर सकते हैं.

शर्त ये है कि दोनों शादी के व़क्त बालिग हों, किसी और रिश्ते में ना हों, मानसिक तौर पर ठीक हों और अपनी सहमति देने के क़ाबिल हों.

इसके लिए ज़िला स्तर पर मैरेज अफ़सर को नोटिस देना होता है. नोटिस की तारीख़ से 30 दिन पहले से जोड़े का उस शहर में निवास होना ज़रूरी है.

ये नोटिस एक महीने तक सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किया जाता है. इस दौरान परिवार वाले कई बार अपना एतराज़ ज़ाहिर कर सकते हैं.

कोई आपत्ति ना होने पर ही शादी गवाह की मौजूदगी में रजिस्टर की जाती है.

ये ऐक्ट भारत प्रशासित कश्मीर पर लागू नहीं होता.


आसिफ़ और रानू
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आसिफ़ और रानू

आइशा और आदित्य उनसे कई बार मिले. 'धनक' के साथ जुड़े कई और जोड़ों से भी मुलाकात हुई.

अचानक एक नया परिवार मिल गया. अब वो दुनिया में इतने अकेले नहीं थे. हर जोड़े की आपबीती में अपनी प्रेम कहानी के अंश दिखते थे.

डर धीरे-धीरे जाता रहा. आइशा ने नौकरी पर जाना भी शुरू कर दिया.

आइशा कहती हैं, "पहले लगता था कि साथ तो रहने लगे हैं पर एक-दो साल में मार दिए जाएंगे, पर रानू और आसिफ़ को देखकर लगता है कि ऐसी ज़िंदगी मुमकिन है, ख़ुशी मुमकिन है."

रानू कहती हैं कि लड़का-लड़की में आत्म-विश्वास होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि मां-बाप की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाने की ग्लानि हमेशा परेशान करती रहती है.

इसीलिए वो परिवार से बातचीत का रास्ता खुला रखने की सलाह देती हैं.

इससे फ़ायदा ये भी होता है कि परिवार ये जान पाए कि उनके बच्चे एक साथ कितने ख़ुश हैं.

ये अलग धर्मों के लड़के-लड़कियों में मेलजोल के खिलाफ़ बने सामाजिक और राजनीतिक माहौल की चुनौती से निपटने में भी मददगार होता है.

रानू कहती हैं, "एक डर का माहौल है, पर अगर परिवार समझने की कोशिश करे और कट्टर विचारधारा रखनेवाले संगठनों से दूर रहे, अपने बच्चों में विश्वास करे तो बाहरी माहौल मायने नहीं रखता."

आदित्य ने अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया है. उम्मीद नहीं छोड़ी की उसके पिता आइशा को बिना धर्म परिवर्तन किए अपनी बहू बनाने को मान जाएंगे.

घर के बेटों के प्रति भारतीय परिवार नर्म रुख़ रखते हैं. समाज में इज़्ज़त का बोझ अक़्सर लड़कियों पर ही डाला जाता है.

रानू के मुताबिक, "लड़के उत्तराधिकारी होते हैं, वंश चलाते हैं, इसलिए उनके साथ रिश्ता बनाए रखना परिवार के लिए भी ज़रूरी होता है और वो कुछ ठील देने को तैयार भी हो जाते हैं पर लड़कियों पर नियंत्रण की ख़्वाहिश अलग ही स्तर की होती है."

आदित्य के मुताबिक ये उनकी ज़िंदगी का पेचीदा दौर है. कई रिश्तों और सपनों का संतुलन बनाकर चलना है.

'स्पेशल मैरेज ऐक्ट' के तहत शादी करना चाहते हैं. अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी गृहस्थी ख़ुद चलाना चाहते हैं.

अब ये दोनों 21 साल के हो गए हैं. एक-दूसरे पर भरोसा क़ायम है. आइशा कहती है कि आदित्य उसका हीरो है, उसे हौसला देता है.

आदित्य कहता है कि पहली लड़ाई ख़ुद से थी, अपने रिश्ते में यक़ीन करने की. वो जीत ली.

दूसरी लड़ाई जो परिवार और समाज के साथ है, अब दोनों साथ हैं तो मिलकर वो भी किला भी फ़तह कर लेंगे.

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English summary
When a girl left her home in love of hindu boy
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