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अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कितना ख़तरा?

मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के ठीक दो महीने पहले उसे संसद में अविश्वास प्रस्ताव की चुनौती मिल रही है. ये चुनौती कोई और नहीं बल्कि दो दिन पहले तक एनडीए की हिस्सा रही तेलगु देशम पार्टी देने वाली है.

आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्ज़ा नहीं मिलने से नाराज़ टीडीपी ने सरकार के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है.

By BBC News हिन्दी
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मोदी
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मोदी

मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के ठीक दो महीने पहले उसे संसद में अविश्वास प्रस्ताव की चुनौती मिल रही है. ये चुनौती कोई और नहीं बल्कि दो दिन पहले तक एनडीए की हिस्सा रही तेलगु देशम पार्टी देने वाली है.

आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्ज़ा नहीं मिलने से नाराज़ टीडीपी ने सरकार के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है. संभवतः सोमवार को यह प्रस्ताव पेश किया जाएगा.

वाईएसआर कांग्रेस भी इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है. इतना ही नहीं, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, एआईएडीएमके, एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी ने भी अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने की घोषणा की है.

अगर यह अविश्वास प्रस्ताव पेश होता है तो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ पहला अविश्वास प्रस्ताव होगा.

चंद्रबाबू नायडु
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चंद्रबाबू नायडु

लेकिन सवाल उठता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के कमज़ोर हो रहे कुनबे पर यह अविश्वास प्रस्ताव कितना असर डालेगा?

बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में कुल 284 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि अब लोकसभा में भाजपा के अपने कुल 274 सांसद हैं. इसके बाद कांग्रेस के 48, एआईडीएमके के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, वाईआरएस कांग्रेस के नौ, सपा के सात, लोजपा और एनसीपी के छह-छह, राजद और रालोसपा के क्रमशः चार और तीन सांसद हैं.

शिवसेना ने अविश्वास प्रस्ताव पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है, हालांकि पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में अकेले जाने का फ़ैसला किया है.

भाजपा के ख़ुद के 274 और उनके वर्तमान में सहयोगी दलों के 41 सांसद साथ हैं. विपक्षी पार्टियों के अविश्वास प्रस्ताव को ख़ारिज करने के लिए उसे वर्तमान में सिर्फ़ 270 सांसदों का साथ चाहिए.

अगर सहयोगी दलों को छोड़ भी दें तो भाजपा अकेले दम पर विश्वास मत सदन में हासिल कर लेगी. ऐसे में तकनीकी तौर पर देखा जाए तो सरकार को पेश होने वाले अविश्वास प्रस्ताव से कोई ख़तरा नहीं है.

भारतीय संसद
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भारतीय संसद

अब अविश्वास प्रस्ताव के तकनीकी पक्ष समझिए

तकनीकी पक्ष में सबसे पहले समझें कि अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है? जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाती है.

इसे मंजूरी मिलने पर सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन को यह साबित करना होता है कि उन्हें सदन में ज़रूरी समर्थन प्राप्त है.

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी के लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन ज़रूरी होता है. आंकड़ों के गणित को देखें तो लोकसभा मे तेलगुदेशम पार्टी के 16 और वाईएसआर के नौ सांसद हैं.

कांग्रेस के 48, एआईडीएमके के 37, सीपीएम के नौ और एआईएमआईएम के एक सांसद है. ऐसे में ये सभी मिल जाए तो संसद में अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी ज़रूर मिल जाएगी.

राहुल और अखिलेश
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राहुल और अखिलेश

तो फिर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों ला रही है?

इस अविश्वास प्रस्ताव से विपक्षी पार्टियां ग़ैर-भाजपा दलों को क़रीब लाने का प्रयास करेगी. अविश्वास प्रस्ताव से भले सरकार बच जाए पर सरकार की चुनौतियां कम नहीं हो जाएंगी. अविश्वास प्रस्ताव भाजपा के विरोधी दलों को नजदीक लाएगा.

उपेंद्र कुशवाहा
Ved Prakash/BBC
उपेंद्र कुशवाहा

बिखराव की आशंका और चेतावनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस एनडीए की अगुवाई कर रहे हैं उसके सहयोगी छिटकने लगे हैं. इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा एनडीए से अलग होकर लालू प्रसाद की पार्टी राजद में शामिल हो गई.

बिहार और उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली शिकस्त के बाद बिखराव की आशंका बढ़ गई है. उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई. वहीं राजस्थान में भी हुए उपचुनाव में बीजेपी को दो लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

बिहार के स्थानी मीडिया के अनुसार लोकजन शक्ति पार्टी के सासंद चिराग पासवान ने भाजपा को सहयोगी दलों से बात करने और इस बात पर विचार करने की सलाह दी है कि एनडीए में बिखराव क्यों हो रहा है.

उधर, केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा का लालू प्रसाद की पार्टी राजद से नजदीकियों की भी चर्चा तेज़ है. शुक्रवार को राजद के साथ आ चुकी जीतन राम मांझी की पार्टी के नेता दानिश रिजवान और कुशवाहा की बंद कमरे में घंटों मुलाक़ात हुई.

योगी और मोदी
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योगी और मोदी

भाजपा के भीतर विरोध बोल

टीडीपी से मंत्री रहे पहले ही केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफ़ा सौंप चुके हैं. इतना ही नहीं भाजपा के नेता भी अब विरोधी बोल बोलने लगे हैं.

शत्रुघ्न सिन्हा पहले से ही बाग़ी बने हुए हैं. बागी तेवर के कारण ही पार्टी ने सासंद कीर्ति आज़ाद को निकाल दिया. महाराष्ट्र के भाजपा सांसद नानाभाऊ पटोले भी पार्टी के ख़िलाफ़ नाराज़गी दिखाकर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव बीजेपी के ख़िलाफ़ गोलबंदी को और हवा दे सकता है.

BBC Hindi
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English summary
What is the danger to the Modi government from the motion of no confidence
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