सोनाली बेंद्रे को कौन सा कैंसर हुआ है?
उनके मुताबिक, "कई बार केवल ये पता चलना कि कैंसर में प्राइमरी ट्यूमर कहां है ये भी काफ़ी नहीं होता. मसलन, अगर ब्रेस्ट कैंसर मेटास्टेटिसाइज़ हो गया है तो ये पता लगना भी काफ़ी नहीं होता. ब्रेस्ट कैंसर के कई प्रकार होते हैं जिनका मेटास्टेटिसाइज़ होना जानलेवा हो सकता है और कई बार जानलेवा नहीं भी हो सकता है."
हर कैंसर में मेटास्टेटिस का मतलब स्टेज 4 होता है. लेकिन हर कैंसर में स्टेज 4 जानलेवा ही हो, ये ज़रूरी नहीं है.
कुछ दिन पहले 'इंडियाज़ बेस्ट ड्रामेबाज़' के रिएलटी शो में जब सोनाली बेंद्रे दिखना बंद हो गई थीं, तो किसी ने नहीं सोचा था कि ये सब उनकी बीमारी की वजह से है.
अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे कैंसर की बीमारी से जूझ रही हैं. सोनाली बेंद्रे ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस बारे में जानकारी दी है. सोनाली ने लिखा, ''हाल ही में जांच के बाद मुझे ये पता चला है कि मुझे हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर है. इसकी उम्मीद मुझे कभी नहीं थी. लगातार होने वाले दर्द के बाद मैंने अपनी जांच करवाई जिसके बाद चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई.''
सोनाली लिखती हैं, ''इस घड़ी में मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं और हर संभव तरीके से मेरा साथ दे रहे हैं. मैं उन सबकी शुक्रगुज़ार हूं और ख़ुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं.''
आख़िर हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर क्या होता है?
सोनाली बेंद्रे के इस इंस्टाग्राम पोस्ट के बाद ही सब यही जानना चाहते हैं कि आख़िर उनका कैंसर किस स्टेज पर है और कितना ख़तरनाक है.
यही सवाल हमने भी देश के जाने माने ऑन्कोलॉजिस्ट से पूछा.
दिल्ली के अपोलो अस्पताल में ऑन्कोलॉजी विभाग की हेड डॉक्टर सपना नांगिया के मुताबिक, "सोनाली बेंद्रे ने अपने कैंसर के बारे में जितनी बातें इंस्टाग्राम पर शेयर की हैं, उससे बिल्कुल सटीक ये पता नहीं लगाया जा सकता है कि उनका कैंसर कितना ख़तरनाक है."
डॉक्टर सपना नांगिया आगे कहती हैं, "किसी भी कैंसर का पता लगाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि पता चले प्राइमरी ट्यूमर कहां था. सोनाली बेंद्रे के कैंसर के बारे में अभी ये पता नहीं है."
आख़िर मेटास्टेटिस कैंसर क्या होता है? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं ''हर मेटास्टेटिस कैंसर जानलेवा नहीं होता. कई बार इस तरह के कैंसर का इलाज संभव भी होता है.''
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क्या ब्रेस्ट कैंसर के लिए कीमोथेरेपी ज़रूरी है?
मेटास्टेटिस कैंसर का मतलब ये है कि एक जगह कैंसर के सेल मौजूद नहीं हैं. जहां से कैंसर की उत्पत्ति हुई है, उससे शरीर के दूसरे अंग में वो फैल चुका होता है.
उनके मुताबिक, "कई बार केवल ये पता चलना कि कैंसर में प्राइमरी ट्यूमर कहां है ये भी काफ़ी नहीं होता. मसलन, अगर ब्रेस्ट कैंसर मेटास्टेटिसाइज़ हो गया है तो ये पता लगना भी काफ़ी नहीं होता. ब्रेस्ट कैंसर के कई प्रकार होते हैं जिनका मेटास्टेटिसाइज़ होना जानलेवा हो सकता है और कई बार जानलेवा नहीं भी हो सकता है."
हर कैंसर में मेटास्टेटिस का मतलब स्टेज 4 होता है. लेकिन हर कैंसर में स्टेज 4 जानलेवा ही हो, ये ज़रूरी नहीं है.
मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल के डॉक्टर आशुतोष टोंडरे के मुताबिक, "मेटास्टेटिस कैंसर से ये मतलब कतई न निकालें कि कैंसर किस स्टेज में हैं. इसका मतलब ये है कि कैंसर के सेल किस स्टेज में हैं. इससे ये पता लगता है कि कैंसर के सेल शरीर के दूसरे हिस्से में फैल रहे हैं."
पर सोनाली बेंद्रे का कैंसर हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर हैं. इसलिए ये जानना भी ज़रूरी है कि हाईग्रेड क्या होता है.
डॉक्टर सोनाली कहती हैं कि हाईग्रेड के दो मतलब होते हैं. एक तो ये कि प्राइमरी ओरिजन बदल गया है और दूसरा ट्यूमर का टाइप, मसलन ट्यूमर ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है.
इलाज क्या है?
सोनाली ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा है कि वो फ़िलहाल न्यूयॉर्क में अपना इलाज करवा रही हैं.
जब कैंसर स्टेज 4 में हो तो किस तरह का इलाज संभव है?
डॉक्टर आशुतोष के मुताबिक, "वैसे तो कैंसर का सबसे अच्छा इलाज सर्जरी है. वो भी तब जब कैंसर शरीर के दूसरे हिस्से में फैला नहीं होता है. लेकिन ये केवल स्टेज 1 और 2 में कारगर होता है. किसी ख़ास परिस्थिति में स्टेज 3 में भी सर्जरी की जाती है. हर बार सर्जरी से पहले मरीज़ की कीमोथेरेपी भी की जाती है."
तो फिर स्टेज 4 के लिए उपा क्या है?
इस पर डॉ. आशुतोष कहते हैं, "स्टेज 4 के कैंसर में सर्जरी नहीं की जा सकती. इसलिए केवल कीमो का सहारा लिया जाता है. इसके आलावा कुछ ख़ास तरह के कैंसर में टारगेट थेरेपी भी कारगर हो सकती हैं जो टैबलेट और इंजेक्शन के ज़रिए ख़ून में जाती है ताकि कैंसर सेल शरीर के दूसरे हिस्से में न पहुंच सके.
कई तरह के मेटास्टेटिस कैंसर में रेडिएशन का भी सहारा लिया जाता है. इस तरह का इलाज हड्डियों के कैंसर में दर्द दूर करने में काफ़ी फ़ायदेमंद होता है.
लेकिन सबके मन में इस कैंसर का नाम सुनने के बाद ये सवाल स्वाभाविक होता है कि इसमें बचने की संभावना कितनी होती है?
इस सवाल के जवाब में रिलायंस मेमोरियल अस्पताल के रेडियोलॉजिस्ट और ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रसाद ढांडेकर कहते हैं, "जिस तरह से हर कैंसर का इलाज अलग होता है, उसी तरह से हर कैंसर में ख़तरा भी अलग तरह का होता है. ये कैंसर के स्टेज पर निर्भर करता है. फेफड़ों के कैंसर में बचने की संभावना सबसे कम होती है."
भारत में इलाज कितना संभव है
गंभीर बीमारी के बाद बहुत कम सेलेब्रिटी अपना इलाज भारत में करवाते हैं फिर चाहे क्रिकेटर युवराज सिंह हों, या फिर अभिनेता इरफ़ान ख़ान. अक्सर लोग विदेश में जाकर इलाज कराते हैं. ऐसा क्यों? क्या भारत में ये तकनीक उपलब्ध नहीं है?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर प्रसाद कहते हैं, "भारत के अस्पतालों में हर तरह के कैंसर के इलाज की सभी तरह की तकनीक मौजूद है. लेकिन अक्सर इस तरह के कैंसर में इलाज में प्राइवेसी की ज़रूरत होती है. कई बार मरीज़ ये बात छुपाना चाहते हैं. सेलिब्रेटी के साथ अक्सर इस तरह की दिक्क़त सामने आती है. कई बार कैंसर ट्रीटमेंट में मरीज़ के बाल झड़ जाते हैं, उल्टियां होती हैं, चेहरा बिल्कुल डल हो जाता है - सेलिब्रेटी उस दौरान फ़ोटो नहीं खिंचवाना चाहते. भारत में अक्सर इस तरह के फ़ोटो के लीक होने का ख़तरा होता है. विदेश के अस्पतालों में मरीज़ के प्राइवेसी क़ानून का ख़ास ख़्याल रखा जाता है.
डॉक्टर आशुतोष के मुताबिक, "भारत में इसका इलाज संभव है. किसी ख़ास वजह से अगर कोई कमी हो तो हम बाहर से भी डॉक्टर और दवाइयां मंगवा कर इलाज करते हैं. लेकिन अपनी बीमारी का इलाज कहां कराना है कई मामलों में ये निजी फ़ैसला होता है."