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West Bengal elections:क्या BJP की यही दोनों 'रणनीति' उसपर पड़ जाएगी भारी ?

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में पिछले दो चुनावों (विधानसभा चुनाव 2016 और लोकसभा चुनाव 2019 ) की तुलना करें तो भाजपा ने वहां अप्रत्याशित रूप से बढ़त बनाई है। जबकि, तृणमूल कांग्रेस के जनाधार में सेंध लग चुकी है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव- 2016 में सत्ताधारी टीएमसी को 44.9 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन लोकसभा चुनाव-2019 में उसका वोट शेयर घटकर 43.3 फीसदी पहुंच गया। लेकिन,जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी का जनाधार गिरा, वहीं बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव में 10.2 फीसदी वोट के मुकाबले पिछले लोकसभा चुनाव में 40.3 फीसद वोट तक पहुंच गई। जाहिर है कि महज तीन साल में वोटों में चार गुना इजाफे ने भाजपा के इरादे को बुलंद कर रखा है। लेकिन, तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, जो सात दशक पुराने जनसंघ के दिनों के उसके बंगाल विजय के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए काफी है।

कई सीटों पर टीएमसी के दल-बदलुओं का आसरा

कई सीटों पर टीएमसी के दल-बदलुओं का आसरा

यूं तो भारतीय जनता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों से ही टीएमसी की आंखों में खटक रही है। लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ममता बनर्जी तो उसे दुश्मन ही मान बैठी हैं। लेकिन, यह भी सच है कि भाजपा लोकसभा की 18 सीटें भले ही जीत गई हो, लेकिन उसके प्रदेश नेतृत्व के लिए सभी 42 सीटों के लिए उम्मीदवारों को खोजना भी आसान नहीं था। लेकिन, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुत ही अधिक लोकप्रिय छवि उसके हक में काम कर गया। टीएमसी के मुकाबले प्रत्याशियों की तलाश भाजपा के लिए इसबार भी आसान नहीं है। यही वजह कि राजनीतिक जानकारों को लगता है कि उसने टीएमसी के दल-बदलुओं के लिए एंट्री गेट धड़ल्ले से खोले रखी। भाजपा के एक नेता ने इस स्थिति को कुछ ऐसे परिभाषित करने की कोशिश की है, 'जिन नेताओं की अपने इलाकों में मजबूत जनाधार है, उनका स्वागत किया जा रहा है। इसके इलावा हमारे जमीनी कार्यकर्ता, जिसे आरएसएस ने वर्षों से तैयार किया है, वह भी हमारी मदद करेंगे।'

बंगाल में ममता के मुकाबले भाजपा का चेहरा कौन?

बंगाल में ममता के मुकाबले भाजपा का चेहरा कौन?

लोकसभा चुनाव में भाजपा के चेहरा थे नरेंद्र मोदी। विधानसभा चुनाव में टीएमसी के पास हैं ममता बनर्जी। तथ्य यही है कि जैसे लोकसभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता का मुकाबला नहीं था, वैसी ही इस चुनाव में बंगाल में ममता जितना विशाल जनाधार वाला नेता भाजपा के पास नहीं है। पीएम मोदी की लोकप्रियता आज अगर और भी बढ़ी है तो भी पार्टी में टीएमसी सुप्रीमो के मुकाबले लोकल नेतृत्व की किल्लत जरूर है। ये स्थिति तब है जब कभी ममता के साथ रहे मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी जैसे करीब दर्जनों बड़े नाम तृणमूल से निकल बीजेपी में जा चुके हैं। सबसे ताजा नाम पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी का है, हालांकि अभी उनकी औपचारिक स्थिति साफ होनी बाकी है। यही वजह है कि पार्टी को अभी भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की रणनीति के भरोसे बैठना पड़ रहा है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक, 'यह कोई मसला नहीं है कि दीदी के मुकाबले राज्य में हमारे पास कोई चेहरा नहीं है। बंगाल में दीदी बनाम मोदी हमारे पक्ष में काम करेगा।' यही नहीं उन्होंने कहा कि 'दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां अमित शाह सबसे ज्यादा दिखाई देने वाले चेहरा होंगे।'

बंगाल में यह रणनीति कितनी कारगर?

बंगाल में यह रणनीति कितनी कारगर?

सिर्फ बंगाल बीजेपी ही नहीं, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी इस चुनौती को महसूस कर रहा है। इसलिए हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को कहना पड़ा, बीजेपी 'धरती के लाल' को ही मुख्यमंत्री बनाएगी। इस स्थिति से पार्टी को संभालने के लिए पार्टी के प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, 'जिस राज्य में भी हमारी अपनी सरकार नहीं होती, हम अपने सीएम चेहरा की घोषणा नहीं करते, ठीक वैसे ही जैसे कि यूपी, हरियाणा, बिहार (2015 में), त्रिपुरा या महाराष्ट्र में। यह हमारी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।' पार्टी ने चुनाव के बाद हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, झारखंड में रघुबर दास और त्रिपुरा में बिप्लब देब को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया था। विजयवर्गीय कहते हैं कि 'चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री चुनना हमारी पार्टी के लिए 5 मिनट का काम है।' हालांकि, बीजेपी के लिए दिल्ली का अनुभव काफी कड़वा है जहां उसने सीएम का चेहरा घोषित किया था, लेकिन वह बुरी तरह फेल हो गई।

बंगाली भद्रलोग के दिलों में जगह बनाने की चुनौती

बंगाली भद्रलोग के दिलों में जगह बनाने की चुनौती

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ममता के मुकाबले चेहरा की दिक्कत तो भाजपा झेल ही रही है एक और मोर्चा है, जहां भाजपा को थोड़ी परेशानी महसूस हो रही है। मसलन, कोलकाता यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर समीर के दास कहते हैं, 'अभी की जो स्थिति है, बीजेपी अभी भी बंगाली भद्रलोक से खुद को जोड़ नहीं सकी है।.........इस मामले में उनसे कुछ भूल भी हुई है,जैसे कि बिरसा मुंडा की प्रतिमा लगाना, जो इन्हें बहुत अच्छा नहीं लगा। ' हालांकि, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे राष्ट्र नायकों के सहारे पार्टी इन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश जरूर कर रही है। वैसे दास कहते हैं कि भद्रलोक ममता के शासन से भी खुश नहीं हैं, क्योंकि उनके काम करने के तरीके ने समाज पर इनक सांस्कृतिक आधिपत्य को खत्म कर दिया है। यही वजह है कि ममता को भी अब इन महापुरुषों की याद सताने लगी है।

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English summary
West Bengal elections: Not giving the face of the Chief Minister compared to Mamata Banerjee and BJP may suffer loss due to lack confidence of Bhadralok
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