अयोध्या के वो 'बाबा', जिनके पास थीं नेताजी की 'अमूल्य निशानी', बन गए अनसुलझी पहेली
नई दिल्ली, 15 अगस्त। भगवान जी के नाम मशहूर बाबा जी घर में कुछ ऐसी चीजें मिली जिसे देखकर ये लगने लगा कि बाबा के वेश में दिखने वाले वो कोई आम इंसान नहीं थे। उनके घर से कई किताबें और अखबार मिले। कई रिपोर्ट में यह दर्ज है कि'भगवान जी'फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन भाषा में बात करते थे। लेकिन वो कौन थे, अयोध्या में सन्यासी बनकर क्यों रहे? चेहरा दिखाकर लोगों से बात क्यों नहीं की? जस्टिस विष्णु सहाय आयोग रिपोर्ट ने यहां तक कह दिया कि ये बेहद शर्मानक है कि उनके अंतिम संस्कार में महज 13 लोग ही शामिल हो सके।
अयोध्या के बाबा की पहचान पर संशय
देश का 75वां स्वतंत्रता दिवस आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार ने इसके लिए खास प्रबंध किए। ऐसे में हमने भारत के उन रीयल हीरो को याद किया जिन्होंने अपने लहू के अंतिम कतरा शेष रहने तक आजादी की लड़ाई। आज हम ऐसे ही अपने एक रीयल हीरो जिसे हम 'नेता जी' कहकर पुकारते हैं, याद कर रहे हैं। जिनका जन्म तो हमें मालूम है लेकिन उनके मौत या फिर बलिदान की तारीख को लेकर अब भी लोगों के मन में संशय बना हुआ है। दरअसल हम यहां जिक्र कर रहे हैं अयोध्या के बाबा की जिन्हें लोग गुमनामी बाबा और भगवान के नाम पुकारते थे। क्या नेताजी की मौत 1945 में प्लेन क्रैश में ही हुई थी? इसको लेकर देश विदेश में लगातार खोज चली। दावा किया गया कि नेताजी गुमनामी बाबा के नाम से यूपी में 1985 तक रह रहे थे।
कौन थे गुमनामी बाबा?
गुमनामी बाबा बंगाली थे। वो बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी भाषा के जानकार थे। वे एक असाधारण मेधावी व्यक्ति थे। अयोध्या के राम भवन से बंगाली, अंग्रेजी और हिन्दी में अनेक विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं। गुमनामी बाबा को युद्ध, राजनीति और सामयिक की गहन जानकारी थी। उनकी आवाज नेताजी सुभाषचंद्र बोस के स्वर जैसा था। गुमनामी बाबा में आत्मबल और आत्मसंयम था।
गुमनामी बाबा की नहीं की जा सकी पहचान: यूपी सरकार
वैसे तो आयोध्या के गुमनामी बाबा का संबंध नेताजी सुभाष चंद्रबोस से होने का दावा वर्षों से किया जाता रहा। लेकिन तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद गुमनामी बाबा की जांच रिपोर्ट के लिए जस्टिस विष्णु सहाय आयोग का गठन 2016 में किया था। आयोग का मुख्य काम यह पता लगाना था कि गुमनामी बाबा की असली पहचान क्या है ? क्या गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे? तीन साल बाद जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने अपनी रिपोर्ट यूपी विधानसभा में पेश की। इस रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए लिखा है, 'आयोग द्वारा गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी की पहचान नहीं की जा सकी। गुमनामी बाबा के बारे में आयोग ने कुछ अनुमान लगाए हैं।'
जस्टिस विष्णु सहाय आयोग का निष्कर्ष
जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने अपने निष्कर्ष में कहा कि ये अयोध्या के गुमनामी बाबा एक मेधावी व्यक्ति थे। बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो अपने रहस्य उद्घाटन के बदले मर जाना पसंद करते हैं। आयोग ने इसे बेहद शर्मनाक माना कि ऐसे पुरुष के अंतिम संस्कार में महज 13 व्यक्ति शामिल हुए।
गुमनामी बाबा की अनमोल चीजें
गुमनामी बाबा की मौत के बाद के उनकी पहचान को लेकर जो दावे किए गए उसके बाद उनका समान सील कर दिया गया। जांच की गई तो आखिरी बक्से से नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फैमिली फोटोज, तीन घड़ियां- रोलेक्स, ओमेगा और क्रोनो मीटर सहित तीन सिगार केश मिले। गुमनामी बाबा के मकान मालिक के मुताबिक, 4 फरवरी, 1986 को नेताजी के भाई सुरेशचंद्र बोस की बेटी ललिता यहां आई थीं। उन्होंने ही फोटो में लोगों की पहचान की थी। आखिरी बक्से से आजाद हिंद फौज के कमांडर पबित्र मोहन राय, सुनील दास गुप्ता या सुनील कृष्ण गुप्ता के 23 जनवरी या दुर्गापूजा में आने को लेकर लेटर और टेलीग्राम भी मिले। जबकि पहले के बक्से में गोल फ्रेम का एक चश्मा मिला था। वह ठीक वैसा ही है, जैसा बोस पहनते थे। एक रोलेक्स घड़ी मिली। ऐसी घड़ी बोस अपनी जेब में रखते थे। कुछ लेटर मिले, जो नेताजी की फैमिली मेंबर ने लिखे थे। न्यूज पेपर्स की कुछ कटिंग्स मिलीं, जिनमें बोस से जुड़ी खबरें हैं। इसें आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म, सिगरेट, पाइप, कालीजी की फ्रेम की गई तस्वीर और रुद्राक्ष की कुछ मालाएं मिलीं। बाबा एक झोले में बांग्ला और अंग्रेजी में लिखी 8-10 लिटरेचर की किताबें मिलीं।
10 साल तक पर्दे के पीछे से करते थे बात
अयोध्या में 10 वर्षों तक गुमनामी बाबा ने किसी को अपना चेहरा नहीं दिखाया। वो पर्दे के पीछे से लोगों से बात करते थे। लेकिन उनकी आवाज में वो तेज था जिससे लोग काफी प्रभावित होते थे। अपने अयोध्या के दिनों में गुमनामी बाबा पूजा और ध्यान में पर्याप्त समय व्यतीत करते थे। वो संगीत, सिगार और भोजन के प्रेमी थे। आयोग ने अयोग ने अपने अनुमान में ये कहा कि बाबा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अनुयायी थे। लेकिन जब ये बात लोगों को पता चली तो उन्होंने अपना निवास बदल दिया। अयोग ने ये भी कहा कि शासन की स्थिति से गुमनामी बाबा का कोई लगाव नहीं था।
सरयू तट पर बनी है समाधि
अयोध्या में सरयू नदी के तट पर गुमनामी बाबा की समाधि है। जिस पर उनकी जन्मतिथि 23 जनवरी लिखी है और इसी तिथि को हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्म तिथि है। खास बता ये है कि गुमनामी बाबा की समाधि पर उनकी मृत्यु की तिथि के आगे तीन सवालिया निशान लगाए गए हैं। इसका मतलब ये कि गुमनामी बाबा की मौत की तिथि के स्थान को तब भरा जाएगा जब ये साबित हो जाएगा कि वो ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस थे। लेकिन इन दावों सरकार पहले ही नकार चुकी है। उनके पास मिली चीजें काफी हद तक नेताजी की निजी वस्तुओं से मेल खाती हैं लेकिन सरकार ने इसे पर्याप्त सबूत नहीं माना।