गुजरात के ख़ूबसूरत हिल स्टेशन के पीछे की 'बदसूरत कहानी'
मिलिए नवागाम के आदिवासियों से, जो अपने पड़ोस में एक हिल स्टेशन के विकास का साइड इफेक्ट झेल रहे हैं.
राजस्थान से सटे गुजरात के उत्तरी हिस्सों की ज़मीन रेतीली है. लेकिन उसका दक्षिणी ज़िला डांग जंगलों, पहाड़ों और छोटी-छोटी नदियों से भरा-पूरा है.
डांग की पहचान अब एक ख़ूबसूरत हिल स्टेशन सापुतारा से भी है, जहां सूरत और नासिक जैसे शहरों से ख़ासी संख्या में पर्यटक छुट्टियां मनाने आते हैं.
गुजरात टूरिज़्म के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन कहते हैं, 'गुजरात की आंखों का तारा है सापुतारा. इस हिल स्टेशन पर बात करने के लिए कोई नहीं है, बादलों के सिवा.'
सितंबर में गुजरात पर्यटन विभाग ने दिल्ली तक के पत्रकारों को सापुतारा की सैर करवाई थी, ताकि इस हिल स्टेशन के विकास की कहानी को प्रचारित किया जा सके.
लेकिन पत्रकारों को यहां से तीन किलोमीटर दूर नवागाम नहीं ले जाया गया, जहां इस हिल स्टेशन विकास के 'साइड इफेक्ट्स' की गंदली-पीली कहानियां पसरी हुई हैं.
नवागाम की कहानी
नवागाम में करीब 270 घर हैं, जिनमें करीब 1400 से 1500 लोग रहते हैं. उनमें से ज़्यादातर के पास पहचान पत्र, आधार कार्ड और राशन कार्ड हैं, लेकिन जिन घरों में वे रहते हैं, वे उनके नाम पर नहीं हैं.
यहां के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वज सापुतारा की ज़मीन पर खेती किया करते थे. फिर 1970 में उन्हें वहां से हटाकर नवागाम में बसा दिया गया, ताकि सापुतारा को पर्यटन स्थल बनाया जा सके.
इसकी एवज में सरकार की ओर से उन्हें घर मिले थे. लेकिन आज 47 साल बाद भी वे उन घरों के मालिकाना हक़ के लिए जूझ रहे हैं.
नवागाम महाराष्ट्र से बिल्कुल सटा है. भरतभाई लक्ष्मण पवार का कुटुम्ब भी उन विस्थापितों में शामिल था. अपना घर दिखाने के बाद भरतभाई बोले कि ये छोटा सा मेरा आंगन गुजरात में है. फिर ये जो सरकारी जाली है, इसके उस तरफ़ महाराष्ट्र है.
उनकी पत्नी घर की खिड़की से झांक रही थीं. उनसे नाम पूछा तो शरमाकर भीतर चली गईं.
नोटिफाइड एरिया
साल 1989 में सापुतारा और नवागाम को नोटिफाइड एरिया (अधिसूचित क्षेत्र) घोषित कर दिया गया था. इस वजह से यह इलाक़ा किसी पंचायत में भी नहीं आता और इस वजह से लोग पंचायत के ज़रिये मिलने वाले सरकारी योजनाओं के लाभ से भी वंचित हैं.
नोटिफाइड एरिया का मतलब उन इलाक़ों से है, जिन्हें नगरपालिका का दर्जा प्राप्त नहीं है, लेकिन वे प्रदेश सरकार के लिए महत्व के क्षेत्र हैं. देश में कई आदिवासी बहुल इलाक़ों को नोटिफाइड एरिया का दर्जा दिया गया है.
सापुतारा गुजरात के पर्यटन विज्ञापनों में तारे की तरह चमक रहा है. लेकिन वहां की सैकड़ों एकड़ की ज़मीन पर कभी खेती करने वाले आदिवासी परिवारों का जीवन अब पर्यटकों की कृपा और मज़दूरी पर निर्भर हो गया है.
सापुतारा की सुंदर झील और चमकदार होटलों के पास ही ठेलों की एक पूरी श्रृंखला है, जहां नवागाम के लोग पाव-भाजी, पकौड़े, बटाटा वड़ा और ऐसा ही 'स्ट्रीट फूड' बेचकर रोज़ी चलाते हैं.
'पाव भाजी बनाना भी आ ही गया'
यहीं रहने वाले नामदेव भाई बोले, 'हम लोगों को ये सब बनाना नहीं आता था. हमारा पूर्वज तो कंदमूल और जंगली सब्ज़ियां खाते थे. लेकिन बाहर के लोग आए तो हम लोगों को भी ये पाव भाजी वगैरह बनाना आ गया. अब तो कई साल से बना रहे हैं.'
65 वर्षीय चिमनभाई हड़स बताते हैं, 'उस वक़्त का ज़्यादा तो याद नहीं, लेकिन इतना याद है कि जब हम लोगों को हटाया गया तब कांग्रेस के हितेंद्र देसाई मुख्यमंत्री हुआ करते थे.'
नवागाम के रहने वाले रामचंद्र हड़स ने मेहनत करते-करते सापुतारा में अपना एक रेस्तरां खोल लिया है. उनका कहना है कि इस गांव के 80 फ़ीसदी लोग सापुतारा में लारी (ठेला) लगाते हैं और बाकी इधर-उधर मज़दूरी करते हैं.
'घर हमारे नाम करो, वरना होगा चुनाव बहिष्कार'
मुख्यमंत्री विजय रुपानी इसी साल जून में डांग आए थे. नवागाम के लोगों ने उन्हें अर्ज़ी दी थी कि उनके घरों को रेगुलराइज़ किया जाए, वरना वे विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करेंगे.
अर्ज़ी देने वालों में रामूभाई खांडूभाई पिठे भी थे. उन्होंने मुझे बीते कुछ सालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, ज़िला कलेक्टर तक को लिखी चिट्ठियां दिखाईं. उन्होंने वह चिट्ठी भी दिखाई जो मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने नवागाम को मालेगांव पंचायत में शामिल करने को लेकर स्थानीय भाजपा नेता और अब डांग विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी विजय पटेल को लिखी थी.
महाराष्ट्र में महीनों तक मज़दूरी
नवागाम के लोगों को ज़्यादातर मज़दूरी महाराष्ट्र में मिलती है और वह खेती से जुड़ी होती है. रामूभाई पिठे ने एक ताला लगा हुआ घर दिखाते हुए बताया कि यह परिवार अभी बांस कांटने करीब 60 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पिपलगांव गया है.
अगस्त के महीने में बहुत सारे लोग अंगूर की खेती में काम करने जाते हैं. इन सब लोगों को वहीं दो-तीन महीने खेतों में झोपड़ी बनाकर रहना होता है. यह प्रक्रिया हर साल होती है, इसलिए बच्चों की पढ़ाई हर साल दो-तीन महीनों के लिए रुक जाती है.
रामूभाई का कहना है कि जब पूरे देश में शौचालय बनाने की मुहिम चल रही है, उनके गांव की हर महिला, बच्चा, बूढ़ा और नौजवान खुले में शौच के लिए मजबूर है. लोग गुजरात में रहते हैं और शौच के लिए महाराष्ट्र के मैदानों में जाते हैं.
गांव में घूम ही रहा था कि एक बूढ़ी महिला सामने आ गईं. उनसे किसी ने कह दिया था कि मैं कोई हूं जो दिल्ली से आया हूं और समस्याएं पूछ रहा हूं.
उन्होंने गुस्से में और गुजराती में जो कहा उसका मतलब था, 'घर हमारे नाम पर नहीं. खेती नहीं. संडास बाथरूम नहीं. कुछ नहीं है.' उन्होंने अपना नाम सरीबेन केशव पवार बताया.
'हमारी ज़मीन पर बाहर के लोग मज़ा मार रहे'
रामचंद्र चिमन हड़स कहते हैं, 'हमारे बाप-दादाओं को जब सापुतारा से हटाया गया तो बोला गया था कि यहां ऑफिस बनेगा, उसका फायदा हमें होगा. हम लोगों को नौकरी मिलेगी. अभी हमें लगता है कि हमारी ज़मीन पर सब बाहर के लोग आकर मज़ा मार रहे हैं.'
रामूभाई कहते हैं कि हम लोग लोकसभा-विधानसभा में वोट डाल सकते हैं. लेकिन नवागाम किसी पंचायत में नहीं आता है. इसलिए हम लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलता.
उनका यह भी कहना है कि नवागाम में किसी को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर नहीं मिला है. बाकी जंगलों की लकड़ी है और मिट्टी का चूल्हा है.
प्रशासन का पक्ष
वहीं प्रशासन मानता है कि यह समस्या विस्थापितों के पुनर्वास से ज़्यादा अतिक्रमण की है.
डांग के ज़िलाधिकारी बीके कुमार ने कहा, '1970 में जब पहली बार शिफ्टिंग की गई थी, तब 41 परिवार थे. उनको गुजरात सरकार ने घर बनाकर दिए थे. प्राइमरी स्कूल खोला गया था. बाकी सुविधाएं और पानी की व्यवस्था की गई थी. उसके बाद उन लोगों का परिवार बढ़ता जा रहा है. अभी वहां 134 लोगों ने बिना इजाज़त मकान बनवाए हुए हैं. 53 लोगों ने अम्यूज़मेंट पार्क के लिए रिज़र्व की हुई जगह पर अतिक्रमण किया हुआ है. इस संबंध में हमने गुजरात सरकार को प्रस्ताव भेजा है और मामला गुजरात सरकार के विचाराधीन है.'
नवागाम के लोगों ने मुझसे कहा कि नोटिफाइड एरिया घोषित करने से नवागाम में विकास की छन्नी जाम हो गई है. लेकिन प्रशासन मानता है कि नोटिफाइड एरिया घोषित किए जाने का मक़सद ही विकास था.
ज़िलाधिकारी बीके कुमार के मुताबिक, "नोटिफाइड एरिया सापुतारा के विकास के लिए ही घोषित किया गया था. जहां तक नवागाम के लोगों की बात है तो उन्हें बुनियादी सुविधाएं नोटिफाइड एरिया प्रशासन की ओर से दी जा रही हैं. जब लोगों की मांग हमारे सामने आई तो हमने प्रस्ताव सरकार को भेजा, जो अभी पेंडिंग है."
विकास के मायने अलग
रामूभाई नवागाम वासियों की मांगों को स्पष्ट तरीके से बताते हैं, "जो घर सरकार ने दिए हैं, उन्हें हमारे नाम पर किया जाए. हम सापुतारा में खेती करते थे. यहां नवागाम में खेती करने की जगह नहीं है. इसलिए हमें सापुतारा में कुछ ज़मीन दी जाए या ऐसी व्यवस्था की जाए कि हम अपना धंधा बिना किसी पर निर्भर रहे, चला सकें."
मैंने पूछा कि क्या आप व्हॉट्सऐप चलाते हैं तो बोले, गांव में एक-दो छोकरे हैं, जो चलाते हैं. कई छोकरे लोग ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है, लेकिन करने को कोई काम नहीं है.
डांग ज़िले में सापुतारा, ज़िला मुख्यालय आहवा और तहसील वघई जैसी गिनी-चुनी जगहों पर ही मोबाइल नेटवर्क आता है. ज़िले में डांग नाम से एक ही विधानसभा सीट है जो जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित है. अभी कांग्रेस के मंगलभाई गावित विधायक हैं. भाजपा के उम्मीदवार विजय पटेल नवागाम के आदिवासियों का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं.
डांग में हिल स्टेशन और प्रस्तावित बांध जैसी योजनाएं गुजरात सरकार के लिए विकास हैं, लेकिन आदिवासियों की बड़ी आबादी इस तरह के विकास से सहमत नहीं है.
कुछ यहां के सामाजिक समीकरण हैं और कुछ 'प्रचलित विकास' जनित नाराज़गियां हैं कि लोगों ने यहां सिर्फ एक बार भाजपा को चुना है और ज़्यादातर बार यहां कांग्रेस के विधायक ही रहे हैं.
'कांग्रेस सत्ता में नहीं, जिताएं क्यों?'
लेकिन नवागाम में इस बार चुनाव बहिष्कार के साथ साथ 'अपना काम कराने के लिए' भाजपा को आज़माने के स्वर भी दिखते हैं. भाजपा उम्मीदवार विजय पटेल ने गांव वालों को भरोसा जताया है कि उन्होंने उनका काफी काम करा दिया है.
रामूभाई कहते हैं, "भाजपा की सरकार है तो कांग्रेस को जिताकर क्या फायदा होगा. कांग्रेस के मंगलभाई ख़ुद कहते हैं कि अभी ऊपर जो सरकार है, वो उनकी सुनती नहीं तो आप सरकार को पकड़ो. इसलिए इस बार भाजपा को वोट देने का सोच रहे हैं."
लोगों से पूछा कि सापुतारा में इतने होटल हैं, क्या वहां आप लोगों को काम नहीं मिलता? तो दसवीं तक पढ़ाई कर चुके आशीष कमल पवार बोले, "होटल में सब बाहर के लोग काम करते हैं. यहां के आदमी को कभी काम मिल भी गया तो संडास साफ करने का काम देंगे. कचरा-बोझा उठाने का काम देंगे."
'सरकार ने हमें पट्टेदार बना दिया'
सुनील गोविंद पवार की बाइक देख चौंक गया. थोड़ी अलग तरह की थी. बोले कि ये मेरी नहीं, किसी और की है. वो सापुतारा में टूरिस्टों को चलाने के लिए देते हैं. एक चक्कर के तीस रुपये. इसी में बाइक के मालिक का हिस्सा भी है.
यशवंत भाई इस लड़ाई को लड़ रहे अगुवा नवागाम वासियों में हैं. वह कहते हैं कि हमारे पूर्वज अनपढ़ थे. उनकी मासूमियत का सरकार ने फायदा उठाया. हम आदिवासियों की ज़मीन थी. लेकिन सरकार ने हमें पट्टेदार बना दिया.
वह कहते हैं, "हम तो राह देखते हैं कि खेती तो गई, लेकिन घर हमारे कब्ज़े में रहेगा तो बच्चे को पढ़ाएंगे. घर के नाम पर कर्जा लेकर बच्चों को पढ़ा सकते हैं. "
सापुतारा बिलाशक एक सुंदर जगह है. लेकिन इसकी कहानी नवागाम के आदिवासियों के बिना अधूरी है.
नवागाम में झोपड़ियां अधिक हैं. कुछ नौकरी वाले लोग थे तो उन्होंने पक्के मकान भी बना लिए हैं. सामने एक पहाड़ी है, जो आधी गुजरात में है और आधी महाराष्ट्र में. इसी पहाड़ी पर एक मंदिर है. जहां बाहर से आए टूरिस्ट संपुट में 'गणपति बप्पा मोरिया' का नारा दोहरा रहे हैं.
एक महिला मेरे सामने ही एक ख़ाली ज़मीन पर शौच के लिए निकली है. यह ज़मीन महाराष्ट्र सीमा में है.
नवागाम पर बात करने के लिए कोई नहीं है, बादलों के सिवा.