त्रिपुराः 'हिंदी लागू करेंगे तभी राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलेगा?'
भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से वहां की एक जनजातीय भाषा के संबंध में लिए गए कथित सरकारी प्रस्ताव का विरोध होना शुरू हो गया है.
दरअसल मामला ये है कि त्रिपुरा सरकार के सूचना और सांस्कृतिक मामलों के विभाग की सर्कुलेशन कमेटी ने पिछले महीने 6 अप्रैल को एक बैठक कर प्रदेश में समाचार माध्यम के लिए स्थानीय
भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से वहां की एक जनजातीय भाषा के संबंध में लिए गए कथित सरकारी प्रस्ताव का विरोध होना शुरू हो गया है.
दरअसल मामला ये है कि त्रिपुरा सरकार के सूचना और सांस्कृतिक मामलों के विभाग की सर्कुलेशन कमेटी ने पिछले महीने 6 अप्रैल को एक बैठक कर प्रदेश में समाचार माध्यम के लिए स्थानीय जनजातीय भाषा कोकबोरोक की जगह हिंदी का उपयोग करने का एक प्रस्ताव स्वीकार किया है.
हालांकि विभाग ने अब तक इस दस्तावेज़ को लेकर किसी तरह की पुष्टि नहीं की है लेकिन इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है और इसकी आलोचना की जा रही है.
सरकारी विभाग की बैठक में लिए गए कुछ प्रस्तावों में एक जगह लिखा है, "यह प्रस्तावित किया गया है कि समाचार माध्यम के उपयोग के लिए कोकबोरोक की बजाए हिंदी का इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि यह राष्ट्रवाद को बढ़ावा देगी. इससे दूसरे राज्यों के लोग भी यहां की खबरों को देख सकेंगे."
'सरकार के कदम से भाषा को नुकसान होगा'
राजधानी अगरतला में केबल टीवी पर कोकबोरोक भाषा का एकमात्र न्यूज़ चैनल 'कोकत्रिपुरा' चलाने वाले कमल कोलोई कहते है, "त्रिपुरा में इस समय एक भी सैटेलाइट न्यूज़ चैनल नहीं है. प्रदेश में तक़रीबन 25 से 26 न्यूज़ चैनल है जो सिर्फ केबल टीवी पर ही प्रसारित होते है और ये सभी न्यूज़ चैनल बांग्ला भाषा में हैं. इनमें केवल एक न्यूज़ चैनल कोकबोरोक भाषा में हैं."
ऐसे में कोकबोरोक भाषा को लेकर सरकार के इस प्रस्ताव को लोग सहजता से नहीं ले पा रहें है. नतीजतन जनजातीय लोग सोशल मीडिया के अलावा विभिन्न माध्यमों से सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध कर रहें हैं.
विपक्षी पार्टियां भी राजनीतिक स्तर पर इस मामले में अपना विरोध जता रही हैं.
कोकबोरोक साहित्य के लिए साल 1976 में साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान पुरस्कार से नवाज़े गए पूर्वोत्तर भारत के जानेमाने कवि चंद्रकांता मुरासिंह ने अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए बीबीसी से कहा, "सरकार अगर सही में कोकबोरक के बदले हिंदी को लागू करना चाहती है तो ये सही कदम नहीं होगा. हिंदी राष्ट्र भाषा है उसको लागू करना चाहिए लेकिन कोकबोरोक के बदले क्यों?"
10 लाख लोगों की भाषा है कोकबोरोक
चंद्रकांता मुरासिंह ने आगे कहा, "कोकबोरोक यहां के मूल जनजातीय लोगों की मातृभाषा हैं और यह लोगों की भावनाओं से जुड़ी है. वो अपनी भाषा से प्यार करते है. ऐसे में किसी की भाषा में हस्तक्षेप करने से मतभेद पैदा हो सकते है. प्रदेश में भाजपा सरकार नई आई है और लोगों को इस सरकार से काफी उम्मीदें है. लेकिन सरकार अगर ऐसा कुछ कदम उठाती है तो इससे लोगों में नकरात्मक संदेश जाएगा."
वो कहते हैं, "कोकबोरोक को लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है जबकि यह त्रिपुरा में बांग्ला के बाद ये दूसरी मान्यता प्राप्त भाषा है. अभी इस भाषा में कुछ काम होने शुरू हुए है, ऐसे में सरकार ध्यान नहीं देगी तो इस जनजातीय भाषा को काफी नुकसान पहुंचेगा."
कमल कोलोई कहते है, "अगर सरकार ऐसा कुछ करने की सोच रही है तो ये यहां के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने जैसा होगा. सरकारी मान्यता वाली कोकबोरोक को हटाकर हिंदी को लागू करने की बात से लग रहा है कि सरकार जनजातीय लोगों पर दबाव डाल रही हैं."
सरकारी भाषा
कमल कोलोई के मुताबिक़, "त्रिपुरा में कुल 19 जनजातियां है जिनमें करीब आठ जनजाति के लोग कोकबोरोक में बात करते है. अर्थात राज्य की 37 लाख आबादी में करीब 10 लाख लोग कोकबोरोक का उपयोग करते है. इसके अलावा बांग्लादेश में दो लाख लोग कोकबोरोक बोलते हैं. मिज़ोरम और असम में भी इस भाषा को बोलने वाली जनजातियां हैं. साल 1979 में कोकबोरोक को त्रिपुरा सरकार ने द्वितीय सरकारी भाषा के तौर पर भी मान्यता दी थी."
'कोकत्रिपुरा' के संपादक एक सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, "त्रिपुरा सरकार में शामिल एक जनजातीय नेता से मेरी बात हुई थी और उनका कहना था कि सरकार के ऐसे किसी भी प्रस्ताव के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं है."
त्रिपुरा में बीजेपी ने इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी आईपीएफ़टी के साथ मिलकर सरकार बनाई है और इस सरकार में उप-मुख्यमंत्री जिष्णु देव बर्मन समेत कई जनजातीय नेता शामिल है.
इस संबंध मे त्रिपुरा प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता मृणाल कांति देब कहते हैं, "ऐसी बात हुई थी कि कोकबोरोक और बांग्ला के साथ हिंदी को भी समाचार माध्यम के लिए शुरू किया जाए. लेकिन लगता है इसकी कोई गलत व्याख्या हुई है. सबसे अहम बात यह है कि इस विषय को लेकर अब तक औपचारिक कोई घोषणा नहीं हुई है. शायद चर्चा हुई हो लेकिन सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी."
मुख्यमंत्री से माफी की मांग
मृणाल कांति देब कहते हैं, "मुझे लगता है कि शायद ग़लती से ऐसा कुछ हुआ होगा. सरकार कोकबोरोक को और विकसित करने के पक्ष में है. हाल में हमारे विधायक अतुल देब बर्मा की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई है जो सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने जा रही है जिसमें कोकबोरोक के विकास के बारे में बात की गई है."
इधर कांग्रेस की प्रदेश इकाई ने रविवार को इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब से माफ़ी की मांग की है. दरअसल मुख्यमंत्री देब के पास सूचना और सांस्कृतिक मामलों का पोर्टफोलियो भी है.
त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष प्रद्युत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा ने कहा, "जब तक हम हिंदी नहीं बोलेंगे, हमको ऐसी नजऱों से देखा जाएगा कि हम शायद कम हिंदुस्तानी है. अगर मैंने मराठी बोली, तामिल बोली, कोकबोरोक बोली तो हमें ऐसा देखा जाएगा कि हम अभी तक पूरे हिंदुस्तानी हुए नहीं."
"मैं हिंदी अच्छी बोलता हूं, मैंने हिंदी सिखी है लेकिन मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं है. मैं भी हिंदुस्तानी हूं. सरकार ने अपने प्रस्ताव में ग़लत कहा है कि कोकबोरोक को हटा कर हिंदी लागू करेंगे तभी राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलेगा."