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विनेश, बजरंग, सिंधु और चानू की तैयारियों में विदेशी कोच की कितनी भूमिका

टोक्यो ओलंपिक से पहले की तैयारियों में भारत की ओर से पदक के कई दावेदारों ने विदेशी कोच की मदद ली है, जानिए उनके बारे में.

By BBC News हिन्दी
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मीराबाई चानू
VINCENZO PINTO/AFP/Getty Images
मीराबाई चानू

टोक्यो ओलंपिक में भारत के कई खिलाड़ी मेडल के प्रबल दावेदार के रूप में उतरे हैं, ख़ास तौर पर व्यक्तिगत मुकाबलों में, इनमें सबसे अधिक पहलवानों, जैसे बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट से पदक की उम्मीद है.

वहीं, बैडमिंटन में पीवी सिंधु से आशा की जा रही है कि वो दूसरी बार ओलंपिक मेडल लाने में सफल होंगी, वेटलिफ्टर मीरा बाई चानू पहले ही रजत पदक अपने नाम कर चुकी हैं.

टीम मुकाबलों में भारत की पुरुषों की हॉकी टीम ने क्वॉर्टर फ़ाइनल में अपना प्रवेश सुरक्षित कर लिया है और उनके उम्दा प्रदर्शन में भी उनके कोच ग्राहम रीड का काफी योगदान है.

जहाँ इन सभी खिलाड़ियों की मज़बूत नींव भारत के प्रशिक्षकों ने रखी, टोक्यो गेम्स की उनकी तैयारियों में उनके विदेशी कोचों ने भी अहम भूमिका निभाई है.

आइए आपको बताते हैं, इन विदेशी कोचों ने कैसे भारत के इन दिग्गज खिलाड़ियों की प्रतिभा को और भी निखारा है.

विनेश फोगाट
Getty Images
विनेश फोगाट

विनेश फोगाट और वॉलर अकोस

जकार्ता में हुए साल 2018 के एशियन गेम्स में विनेश ने 50 किलोग्राम के वजन में स्वर्ण पदक हासिल किया था और उससे पहले वे 48 किलोग्राम की श्रेणी में लड़ती थीं.

विनेश का वज़न लगभग 57 किलोग्राम था यानी उन्हें अपना वज़न काफी कम करना पड़ा था, इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता था कि चोट लगने की आशंका हमेशा बनी रहती थी, जब उनके शरीर में नमक और पानी की कमी पहले से ही थी. इसी कारण उन्हें कई बार मैट पर लड़ते वक़्त चक्कर भी आने लगते थे.

ये रिस्क भी रहता था कि समय रहते अगर वज़न कम नहीं हुआ तो प्रतियोगिता छूट भी सकती है, रियो ओलंपिक से पहले उनकी एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता इसी कारण से छूट गई थी और 2018 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी चोट के कारण कारण नहीं जा पाई थीं.

हंगरी के अकोस विनेश के साथ 2019 से लगातार जुड़े हुए हैं हालांकि उन्होंने जकार्ता गेम्स से पहले भी उन्हें गाइड किया था, अकोस ने विनेश को 50 से 53 किलोग्राम की कैटेगरी में शिफ्ट कराया.

ये एक मुश्किल काम था लेकिन उन्होंने कहा कि अगर विनेश 2019 की वर्ल्ड चैंपियनशिप के ज़रिए ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई नहीं करती हैं तो वो वापस 50 की कैटेगरी में लौट आएंगे, लेकिन विनेश ने कांस्य पदक हासिल कर टोक्यो के लिए क्वॉलिफाई किया और अब वह 53 किलो की कैटेगरी में विश्व की नंबर एक महिला पहलवान हैं.

विनेश फोगाट
Getty Images
विनेश फोगाट

जब विनेश से पूछा गया कि 53 किलो वर्ग में आने का उनको सबसे ज्यादा फायदा क्या हुआ तो उन्होंने हँसते हुई कहा था कि "अब मैं पेट भर के खाना खा लेती हूँ."

एक और बड़ा बदलाव जो अकोस ने विनेश के खेलने में तरीके में लाया, वो था उनके डिफेंस को मज़बूत करना, विनेश हमेशा प्रतिद्वंदी के सामने ही खड़े रह कर, आगे या पीछे हो कर खेलती थीं, लेकिन अकोस ने उन्हें 'मोशन' करने की यानी, गोल-गोल चक्कर लगाने की आदत बनाने को कहा.

विनेश फोगाट
Getty Images
विनेश फोगाट

ये एक महत्वपूर्ण बदलाव था क्योंकि इस से विनेश का डिफेन्स मज़बूत हुआ, अब विनेश को पकड़ पाना या उन पर काबू पाना पहले से भी मुश्किल हो गया है.

अकोस कहते हैं कि विनेश टोक्यो गेम्स में 'क्लीन हेड' यानी स्पष्ट सोच के साथ जा रही हैं, जो रणनीति मैट के बाहर बनाई जाती हैं, अब विनेश उन्हें मैट पर पूरी तरह अंजाम देती हैं.

बजरंग पुनिया और शाको बेंटिनीडीस

कुश्ती की दुनिया में बजरंग अपने 'स्टैमिना' के लिए जाने जाते हैं, अगर कुश्ती पूरे छह मिनट तक चलती है तो बजरंग इसी दमखम के बल पर जीतते हैं, लेकिन उनकी गेम का एक पक्ष काफी कमज़ोर रहा है, वो है उनका लेग-डिफेंस.

इसका कारण रहा है, करियर की शुरुआत में मिट्टी के दंगलों में शिरकत करना, ज्यादा झुककर न खेलने की आदत की वजह से, अक्सर उनके प्रतिद्वंद्वी उनकी टांगों पर अटैक करते हैं और अंक बटोर लेते हैं.

जॉर्जिया के शाको ने बजरंग की लेग डिफेंस की कमियों को दूर करने में काफी मदद की है, शाको ने बजरंग के लिए विश्व के बेहतरीन ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढे और उन्हें यूरोप और अमेरिका में अलग-अलग जगह ट्रेनिंग के लिए लेकर गए. भारत में बजरंग के लिए विश्व-स्तरीय ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढना संभव नहीं था इसलिए बजरंग की तैयारियों में शाको का ये महत्वपूर्ण योगदान है.

ट्रेनिंग के दौरान शाको जान-बूझ कर बजरंग का ध्यान भटकाते हैं और अगर बजरंग गलती करते हैं तो सारी प्रक्रिया दुबारा से कराते हैं, शाको कहते हैं कि वो नहीं चाहते कि मैट पर बजरंग का ध्यान चूके इसलिए वो बजरंग को लगातार उलझाते रहते हैं ताकि उनका ध्यान पक्का हो जाए.

शाको खुद तीन बार के ओलिंपियन हैं और यूरोपियन चैंपियन भी रह चुके हैं.

पीवी सिंधु और पार्क ताई संग

बैडमिंटन खिलाडी सिंधु अपने पहले कोच महबूब अली से लेकर दक्षिणी कोरियाई संग तक काफी प्रशिक्षकों के साथ ट्रेनिंग कर चुकी हैं. जहाँ 2016 के रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतने तक भारत के जाने-माने पुलेला गोपीचंद के साथ थी, उसके बाद सिंधु ने इंडोनेशिया के मुल्यो हंड्यो और कोरिया के किम जी ह्युं के साथ भी ट्रेनिंग की है.

2019 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने के बाद सिंधु कोरिया के संग के साथ टोक्यो के लिए तैयारी कर रही हैं, संग ने सिंधु के डिफेंस पर काफी काम किया है, ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब किसी बड़े खिलाडी के सामने सिंधु होती हैं तो उनकी बैक कोर्ट का गेम बिखर जाता है.

खेल के जानकारों का मानना है कि संग ने इसी पक्ष पर सिंधु की तकनीक को काफ़ी सुधारा है. हालांकि कोरोना वायरस के चलते सिंधु बहुत अधिक मुकाबले नहीं खेल पाई हैं. ये देखना बाकी है कि मैच सिचुएशन में सिंधु बड़े खिलाड़ियों के सामने कैसा प्रदर्शन करती हैं, अभी तक तो सिंधु जीतकर क्वॉर्टर फाइनल तक पहुँच चुकी हैं.

मीराबाई चानू, भारोत्तोलन, राष्ट्रमंडल खेल, ओलंपिक
Dean Mouhtaropoulos/Getty Images
मीराबाई चानू, भारोत्तोलन, राष्ट्रमंडल खेल, ओलंपिक

मीरा बाई चानू और आरोन हॉर्चिग

यूँ तो मीरा बाई के पर्सनल कोच विजय शर्मा हैं, लेकिन अमेरिका के स्ट्रेंथ एंड मेंटल कंडीशनिंग कोच हॉर्चिग ने इस भारतीय वेट लिफ्टर के टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने में अहम भूमिका निभाई है.

मीरा बाई जब वजन उठाती थीं तो उनके बाएं कंधे पर ज्यादा ज़ोर पड़ता था और बाएं कंधे की ही ताक़त ज्यादा लगती थी, इस वजह से उनकी लिफ्ट का बैलेंस खराब होता था, ओलंपिक जैसे बड़े मुकाबले में जाने से पहले ये ठीक करना जरूरी था.

और यहीं उनके विदेशी कोच ने अपना कमाल दिखाया, उन्होंने मीरा बाई की ट्रेनिंग में कुछ ऐसे व्यायाम जोड़े, जिन्हें करने से मीरा बाई अपने दोनों कंधो का अब बराबर इस्तेमाल करने लगी हैं और उनकी लिफ्ट में बैलेंस भी आ गया है. टोक्यो जाने से पहले मीरा बाई ने अमेरिका जाकर ही अभ्यास किया था.

(पीटीआई के खेल पत्रकार अमनप्रीत सिंह से बातचीत पर आधारित)

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English summary
Tokyo Olympics role of foreign coach in the preparations of Vinesh, Bajrang, Sindhu and Chanu
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