TIME मैगजीन के कवर पर दिखीं किसान आंदोलन में शामिल महिलाएं, टैग लाइन है- 'मुझे डराया और खरीदा नहीं जा सकता'
TIME मैगजीन के कवर पर दिखीं किसान आंदोलन में शामिल महिलाएं, टैग लाइन है- 'मुझे डराया और खरीदा नहीं जा सकता'
नई दिल्ली: टाइम मैगजीन ने अपने इंटरनेशनल कवर में भारत के किसान आंदोलन में शामिल महिलाओं को जगह दी है। टाइम मैगजीन ने इस बार अपना कवर पेज दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही महिलाओं को समर्पित किया है। टाइम मैगजीन के नये इंटरनेशनल कवर पर टैगलाइन लिखा है, "मुझे डराया नहीं जा सकता और मुझे खरीदा नहीं जा सकता।" भारत के किसानों के विरोध का नेतृत्व करने वाली महिलाएं।' कवर पेज पर किसान आंदोलन में शामिल कुछ महिला किसानों को उनके छोटे बच्चों के साथ दिखाया गया है। महिलाएं छोटे बच्चे को गोद में उठाकर नारेबाजी करते दिख रही हैं। कवर पर महिला किसानों को किसान आंदोलन का फ्रंटलाइनर बताया गया है।
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टाइम मैगजीन ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा है, ''टाइम का नया इंटरनेशनल कवर।'' टाइम मैगजीन ने कवर में जिन महिलाओं को जगह दी है, उसमें 41 वर्षीय अमनदीप कौर, गुरमर कौर, सुरजीत कौर, जसवंत कौर, सरजीत कौर, दिलबीर कौर,बिन्दु अम्मां, उर्मिला देवी, साहुमति पाधा, हीराथ झाड़े, सुदेश गोयत शामिल हैं। इन महिलाओं में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ज्यादा महिलाएं हैं।
टाइम पत्रिका ने अपने लेख में लिखा है कि कैसे भारत की महिला किसानों ने कृषि बिल के खिलाफ अपने आंदोलन को जारी रखने का संकल्प लिया है। उन्होंने अपनी लेख में लिखा है कि कैसे इन महिलाओं ने सरकार के कहने के बाद भी दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का मोर्चा संभाले हुए है।
बता दें कि पिछले महीने भारत के किसान आंदोलन को इंटरनेशनल लेवर पर कई सेलेब्रिटियों का साथ मिल था। अमेरिकन पॉप स्टार रिहाना के बाद कई सेलेब्रिटियों ने भारत के किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के किसान आंदोलन समर्थित ट्वीट ने भी सुर्खियां बटोरी थीं। भारत के कलाकार भी किसान आंदोलन को लेकर दो समूहों पर बंटे दिखाए दिएं। हालांकि ज्याजातर लोगों ने विदेशी सितारों का किसान आंदोलन पर टिप्पणी करने को सही नहीं ठहराया था।
पिछले साल 2020 के नवंबर से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि सरकार तीन नए कृषि कानून को रद्द कर दे। किसान और सरकारों के बीच इसको लेकर कई दौरे की वार्ता भी हो चुकी है लेकिन इसका हल अभीतक कुछ नहीं निकल पाया है।