हाथ से मैला साफ करने पर सुप्रीम कोर्ट की केंद्र पर तीखी टिप्पणी, कहा- कहीं भी लोगों को गैस चैंबर में मरने नहीं भेजा जाता
नई दिल्ली। देश में सीवर की हाथ से सफाई के दौरान लोगों की मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी देश में लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर्स में नहीं भेजा जाता है। बता दें कि भारत में मैनुअल स्केवेंजिंग या हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित किया जा चुका है, लेकिन अभी भी देश में यह गंभीर समस्या बनी हुई है। पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से सवाल किया कि आखिर हाथ से मल साफ करने और सीवर के नाले या मैनहोल की सफाई करने वालों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसी सुविधायें क्यों नहीं मुहैया करायी जातीं।
पीठ में जस्टिस एमआर शाह और बीआर गवई भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल से सवाल किया कि सफाईकर्मियों को मास्क और ऑक्सीजनल सिलेंडर क्यों नहीं दिए जाते हैं। दुनिया में कोई और देश नहीं होगा जहां लोगों को गैस चैंबर में मरने के लिए भेजा जाता है। कोर्ट ने कहा कि हर महीने चार से पांच लोग इसी वजह से मर जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठया कि जब सभी इंसान एक समान है तो फिर अधिकारियों द्वारा एक समान सुविधाएं क्यों नहीं दी जाती हैं।
पीठ ने देश में अस्पृश्यता यानी छुआछूत पर भी टिप्पणियां कीं। अदालत ने कहा, ''संविधान में देश में अस्पृश्यता समाप्त करने के बावजूद मैं आप लोगों से पूछ रहा हूं क्या आप उनके साथ हाथ मिलाते हैं? इसका जवाब नकारात्मक है। इसी तरह का हम आचरण कर रहे हैं। इन हालात में बदलाव होना चाहिए।
933 से अब तक 620 लोगों की हो चुकी है मौत
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 1993 से अब तक इस प्रथा के कारण कुल 620 लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक 445 मामलों में मुआवजा दिया चुका है, 58 मामलों में आंशिक समझौता किया गया है और 117 मामले लंबित हैं। इस मामले में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मंत्रालय के साथ जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार अकेले तमिलनाडु में ही ऐसे 144 मामले दर्ज किए गए हैं।