संक्रमण और टीकाकरण लोगों को दे सकते हैं आजीवन इम्युनिटी, एंडीबॉडी विकसित करने में बोन मेरो की भूमिका अहम- शोध
कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया ने भले ही एक त्रासदी झेली हो लेकिन कोरोना वायरस को लेकर हुए ताजा अध्ययन आपके लिए थोड़ा राहत भरे हो सकते हैं।
नई दिल्ली, 31 मई। कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया ने भले ही एक त्रासदी झेली हो लेकिन कोरोना वायरस को लेकर हुए ताजा अध्ययन आपके लिए थोड़ा राहत भरे हो सकते हैं। ये अध्ययन बताते हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित या इसका टीका लगवाने वाले लोगों में बीमारी के प्रति आजीवन प्रतिरक्षा विकसित हो सकती है। हालांकि ये अध्ययन दोबारा संक्रमण से सुरक्षा की गारंटी नहीं देते लेकिन यह आशा प्रदान करते हैं कि कोरोना से संक्रमित मानव शरीर एंटीबॉडी विकसित कर सकता है जो लंबे समय तक कोविड-19 से लड़ सकती हैं।
ये दोनों अध्ययन इस इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दोबारा संक्रमण के मामलों ने वैज्ञानिकों और जनता दोनों को चिंतत और आश्चर्यचकित कर दिया है कि क्या कोरोना के खिलाफ इम्युनिटी थोड़े ही समय के लिए है। लोगों को डर है कि क्या लगातार प्रतिरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बार-बार टीकाकरण की आवश्यकता हो सकती है।
इन अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने पाया कि Sars-2 या कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता कम से कम एक साल तक चलती है। उन्होंने अनुमान लगाया कि कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा कम से कम कुछ लोगों में दशकों तक रह सकती है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि कोरोना से लड़ने के लिए अस्थि मज्जा (बोन मेरो) एंटीबॉडी के उत्पादन में सहायक हो सकता है।दोनों अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने अस्थि मज्जा में मौजूद प्रतिरक्षा कोशिकाओं की तलाश की।
यह भी पढ़ें: कोरोना मरीज के परिवार को अस्पताल ने थमाया 19 लाख का बिल, 8 लाख देने के बाद भी नहीं दिया शव
ये कोशिकाएं अस्थि मज्जा में रहती हैं और आवश्यकता पड़ने पर एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोविड-19 से ठीक होने के कुछ महीने बाद ही रक्त में एंटीबॉडी कम होने लगती हैं। उन्होंने एंटीबॉडी की खोज के लिए 11 महीनों तक इस अध्ययन को जारी रखा।
अध्ययन के बाद राहत के रूप में जो सामने आया वह था अस्थि मज्जा कनेक्शन, और टी-कोशिकाओं को उत्पन्न करने में प्रतिरक्षा प्रणाली की निरंतर क्षमता, जो मूल संक्रमण को याद रखती हैं और जब वे हमला करने के लिए वापस आते हैं तो रोगजनकों को बेअसर करने में सक्षम होते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रतिरक्षा प्रणाली ने Sars-2 के एक हिस्से को बरकरार रखा और प्रतिरक्षा कोशिकाएं विकसित होती रहीं और समय के साथ कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने के लिए प्रशिक्षित हुईं।
इस अध्ययन से यह भी उम्मीद जगी है कि एंटीबॉडी के उत्पादन में अस्थि मज्जा की भागीदारी से शरीर Sars-2 के विभिन्न प्रकारों के खिलाफ लड़ने में सक्षम हो सकता है।
अध्ययन ने भविष्य में कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन से प्रतिरक्षा विकसित करने के मुकाबले उन लोगों को बेहतर स्थिति में रखा है जिन्होंने कोरोना से संक्रमित होकर इम्युनिटी विकसित की है। अध्ययन के अनुसार स्वभाविक रूप से संक्रमित होने और उसके बाद टीकाकरण कराने वाले व्यक्ति में सबसे अच्छी इम्युनिटी प्रतिक्रिया की उम्मीद है। उन्हें वास्तव में कभी भी बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़ेगी।