शरद पवार को अचानक सियासी 'अंगूर खट्टे' क्यों लगने लगे?
नई दिल्ली- कुछ दिन पहले की ही बात है, जब एनसीपी नेता शरद पवार ने चुनावी राजनीति में वापस लौटने की घोषणा करके कई तरह की सियासी अटकलबाजियों को जन्म दे दिया था। लेकिन, सोमवार को अचानक अपने फैसले से पीछे हटने की बात कहकर उन्होंने उससे भी ज्यादा राजनीतिक सवाल पैदा कर दिए हैं। पवार मंजे हुए राजनीतिज्ञ हैं। अगर उनको अपना फैसला वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है, तो इसके पीछे जरूर कोई बड़ी वजह रही होगी। क्योंकि, महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसपी गठबंधन को बीजेपी-शिवसेना के मजबूत गठबंधन से भिड़ना है। ऐसे में वहां के सबसे कद्दावर नेता का चुनावी मैदान में अचानक हथियार डाल देना, दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने जैसा है। तथ्य यह भी है कि महाराष्ट्र ही यूपी के बाद सबसे ज्यादा सांसद चुनकर दिल्ली में नई सरकार बनाने का रास्ता तय करता है।
पवार की दलील पर सवाल
शरद पवार ने अपने फैसले पर यह कहकर सफाई देने की कोशिश की है कि उनके परिवार के दो सदस्य इस बार चुनाव मैदान में हैं, इसलिए उन्होंने मुकाबले में डटे रहना ठीक नहीं समझा। सवाल ये है कि क्या उन्हें पहले से ये सब पता नहीं था? वैसे भी उन्होंने माढ़ा से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, जबकि उनके पोते पार्थ पवार को मावल से लड़ाने की घोषणा की गई है। अभी भी उनकी बेटी बारामती सीट से मौजूदा सांसद हैं और खुद पवार साहब राज्यसभा में मौजूद है। इसी दौरान उनके भतीजे और पार्थ के पिता अजीत पवार महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री के पद तक की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ऐसे में एक परिवार से इतने लोगों का इकट्ठे राजनीति में होना तो कोई मुद्दा नहीं लगता। यानी सवाल उठना लाजिमी है कि पवार ने जो कुछ कहा है, उतना ही सही है या उनके फैसले के पीछे कोई और मजबूरी है?
परिवार पर 'पवार पॉवर' बेअसर
जब शरद पवार ने अपनी बारामती सीट बेटी सुप्रिया सुले के लिए छोड़ी थी, तभी ये चर्चा उठी थी कि उन्होंने भतीजे की जहग बेटी को सियासी वारिश बनाने का फैसला किया है। लेकिन, महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार के दौरान अजीत पवार को डिप्टी सीएम का पद दिलाकर पवार ने साफ करने की कोशिश की थी कि दोनों भाई-बहन की जिम्मेदारियां अलग हैं। सुप्रिया सुले ने भी साफ कर दिया था कि महाराष्ट्र दादा ही संभालेंगे। लेकिन, खबरों के मुताबिक जब शरद पवार ने ये पहले साफ कर दिया था कि लोकसभा चुनाव वे और सुप्रिया ही लड़ेंगे, तो फिर किस दबाव में पार्थ का नाम सामने लाना पड़ा? टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक पार्थ ने टिकट के लिए अपने पिता और दूसरे पार्टी नेताओं पर भी दबाव डाला था, तब जाकर पवार को उनके नाम की घोषणा करनी पड़ी और लगे हाथ उन्होंने अपनी उम्मीदवारी भी वापस ले ली। क्या पवार को पता नहीं है, कि उनके इस फैसले को बीजेपी और शिवसेना किस तरह से लेगी?
पार्टी पर भी 'पवार पॉवर' बेअसर
खबरों के मुताबिक पवार के पीछे हटने का एक कारण यह भी हो सकता है कि माढ़ा सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर मौजूदा पार्टी सांसद विजयसिंह मोहिते पाटिल और उनके धुर-विरोधी संजय शिंदे की आपसी लड़ाई ने पवार को चिंतित कर दिया था। यहां तक कहा जा रहा है कि उन दोनों के विवाद को दूर करने के लिए ही पवार ने खुद माढ़ा सीट से चुनाव लड़ने की बात कही थी। लेकिन, जब एक कार्यक्रम में पवार के भाषण के बीच दोनों ओर से बाधाएं पैदा की गईं, तो पवार अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर घबराए गए थे।
शायद जो सोचा था, वो होता नहीं दिख रहा
पवार ने जब चुनावी राजनीति में वापसी की बात की थी, तब उनके मन में शायद यह संभावना थी कि 2019 के चुनाव में अगर मोदी सरकार बहुमत से दूर रह गई, तो उनकी किस्मत भी चमक सकती है। राज्य की 48 सीटों पर फिलहाल कांग्रेस एवं एनसीपी क्रमश: 26 और 22 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पवार को यकीन था कि अगर बीजेपी-शिवसेना के खिलाफ उन्होंने बाकी एंटी-मोदी पार्टियों को एकजुट कर लिया,तो उनके खेमे में महाराष्ट्र से अच्छी-खासी सीटें आ सकती हैं, जिसके दम पर उनके लिए शायद त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में 7 लोक कल्याण मार्ग का भी रास्ता खुल सकता है। लेकिन, प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अगाड़ी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएसआईएम (AIMIM)से तालमेल दूर की कौड़ी साबित होने के चलते उनकी उम्मीदें परवान नहीं चढ़ पाईं।
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