Steroids से ठीक हो सकते हैं कोरोना के गंभीर मरीज, लेकिन ऐसी गलती हो सकती है जानलेवा
नई दिल्ली, 13 मई: डॉक्टरों के मुताबिक कोविड के गंभीर मरीजों पर स्टेरॉयड का कारगर असर होता है, लेकिन किसी भी सूरत में इसका इस्तेमाल खुद से नहीं करना चाहिए। डॉक्टरों का कहना है कि देश में कोविड की पहली लहर में भी स्टेरॉयड की दवा से कई मरीजों की जान बची थी। दूसरी लहर में भी कुछ खास लक्षणों वाले मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इसे चिकित्सक की देखरेख में ली जानी चाहिए। खासकर होम आइसोलेशन में इलाज करा रहे मरीजों के लिए डॉक्टरों की ओर से दी गई सलाह बहुत ही महत्वपूर्ण है और मरीजों को खुद और उनकी देखभाल करने वालों को इसे गांठ बांध लेनी चाहिए।
स्टेरॉयड गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर-डॉक्टर
दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड और प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉक्टर विवेक नांगिया और डायरेक्टर ऑफ इंटरनल मेडिसीन डॉ रोमेल टिक्कू ने टीओआई से बातचीत में बताया कि किन मरीजों को स्टेरॉयड दी जा सकती है और यह काम कैसे करता है। स्टेरॉयड ऐसी दवा है जो कोर्टिसोल के समान हैं, जो कि हमारे एड्रिनल ग्लैंड से बनने वाला एक हार्मोन है। यह बहुत ही शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाइयां हैं, जो कि इंफ्लेमेशन को रोकने या कम करने में मदद कर सकता है, जिसकी वजह से कोविड के मरीजों की स्थिति गंभीर हो जाती है। अगर इस इंफ्लेमेशन को नजरअंदाज किया गया तो कोरोना लंग्स को तबाह कर सकता है। पिछले साल यूके में रिकवरी ट्रायल के दौरान पता चला था कि यह ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट वाले मरीजों में मौत की आशंका कम कर देता है।
पहले हफ्ते ही स्टेरॉयड दी गई तो इससे स्थिति बिगड़ सकती है-डॉक्टर
लेकिन, कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों या जिन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत है, उन्हें स्टेरॉयड से फायदा नहीं होता। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीजों को स्टेरॉयड नहीं दी जानी चाहिए, अगर उन्हें किसी और वजह से इसे लेने की सलाह नहीं दी गई हो। वायरस से संक्रमित होने के बाद पहले हफ्ते में कोविड मरीज के अंदर इंफेक्शन बढ़ता है। दूसरे हफ्ते में शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता उससे मुकाबला करती है और उसी समय स्टेरॉयड अपनी भूमिका निभाता है। यदि मरीज को पहले ही हफ्ते में स्टेरॉयड दे दी गई तो इससे इंफेक्शन और ज्यादा बढ़ सकता है।
क्या होम आइसोलेशन में स्टेरॉयड की सलाह दी जाती है ?
होम आइसोलेशन में रह रहे हल्के लक्षणों वाले कोरोना मरीजों को, जिनका ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल 94% से ज्यादा है और निमोनिया नहीं है- उन्हें स्टेरॉयड की जरूरत नहीं है। हालांकि, यदि मरीज को तेज बुखार हो और लक्षण आने के 7 दिन से ज्यादा तक बहुत ज्यादा खांसी हो रही हो तो डॉक्टरों की कड़ी निगरानी में सिर्फ 3 से 5 दिनों के कोर्स पर विचार किया जा सकता है। अगर लक्षण आने के पांच दिन बाद भी बुखार या खांसी हो तो कोर्टिकोस्टेरॉयड (बुडेसोनाइड) दी जा सकती है।
गर्भवती-स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए स्टेरॉयड सुरक्षित है ?
जिन गर्भवती महिलाओं को समय से पहले डिलीवरी का खतरा होता है, उन्हें बीटामेथासोन और डेक्सामेथासोन जैसे स्टेरॉयड नियमित रूप से दिए जाते हैं। जिन गर्भवती महिलाओं को मेकेनिकल वेंटिलेटर या ऑक्सीजन सप्लिमेंट की आवश्यकता है, उनके लिए डेक्सामेथासोन की सलाह दी जाती है। लेकिन, बच्चों में स्टेरॉयड का प्रभाव और उसकी सुरक्षा पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाई है। बच्चों में इसका इस्तेमाल सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
स्टेरॉयड के क्या साइड इफेक्ट हो सकते हैं ?
अगर इलाज छोटा हो तो ज्यादा डोज से भी इसके गंभीर साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिलते। हालांकि, स्टेरॉयड के छोटे कोर्स से भी अस्थायी तौर पर हाई ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर, नींद की कमी, मनोवैज्ञानिक प्रभाव, भूख में बढ़ोतरी, वजन बढ़ना या सेकंडरी इंफेक्शन जैसी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। लेकिन, अगर ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल की जाए (दो हफ्तों से ज्यादा) तो इसके गंभीर नतीजे देखने को मिल सकते हैं, जैसे कि आंख के रोग, मोतियाबिन्द, फ्लूड रिटेंशन, हाइपरटेंशन, मूड स्विंग्स, यादाश्त से जुड़ी परेशानी, कंफ्यूजन या चिड़चिड़ापन,वजन बढ़ना, इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाना और ऑस्टीआपरोसिस। खासकर कोरोना का गंभीर मरीज अगर डायबिटिक है तो उसके केस में स्टेरॉयड के इस्तेमाल में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। उसके शुगर से संबंधित बाकी पैरामीटर पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए। अगर ऐसे मरीजों में प्यास, मिचली, पेट में दर्द, बहुत ज्यादा थकान और सांस की तकलीफ होती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
स्टेरॉयड और ब्लैक फंगस में क्या संबंध है ?
ज्यादा पावर की एंटीबायॉटिक्स के साथ स्टेरॉयड की अनुचित खुराक की वजह से जानलेवा फंगल इंफेक्शन या ब्लैक फंगस के हालात पैदा हो सकते हैं। वैसे तो यह 8 लाख में से एक ही व्यक्ति को होता है, लेकिन हाल के दिनों में कोरोना के मरीजों में इसकी समस्या काफी देखी जा रही है। माना जा रहा है कि स्टेरॉयड के ज्यादा और लंबे समय तक इस्तेमाल होने पर मरीज का साइनस, ब्रेन और लंग्स प्रभावित हो सकता है और डायबिटिक या बहुत ज्यादा कमोजर इम्यून वाले लोगों- जैसे कि कैंसर के मरीज या एड्स/एचआईवी के रोगियों के लिए यह जानलेवा साबित हो सकता है। कई कोरोना मरीजों की आंख की रोशनी जाने की घटनाएं भी सामने आई हैं।