'मौसी से ज्यादा अच्छी देखभाल दादा-दादी करेंगे', SCने कोविड काल में अनाथ हुए बच्चे पर सुनाया फैसला
नई दिल्ली, 09 जून: कोरोना महामारी में कई बच्चों ने अपने मां-बाप खो दिए। कोविड महामारी में अनाथ हो चुके बच्चों को उनके रिश्तेदारों ने अपनाया वहीं बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ आश्रमों में रह रहे हैं। कोविड काल में अनाथ हुए बच्चों का असली हकदार कौन होगा? बच्चे के पिता के घर वाले या मां के घर वाले? अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में सुनवाई करते हुए अनाथ बच्चे को लेकर फैसला सुनाया है।
SC ने दादा-दादी के लिए बोली ये बात
बता दें एक पांच वर्षीय लड़के जिसने पिछले साल COVID-19 में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। उसकी कस्टडी के लिए उसके दादा-दादी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। बच्चे के स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर चिंतित दादा-दादी ने उसकी कस्टडी मांगी थी। जिस पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बच्चे के दादा-दादी के पक्ष में सुनाया है और अपने आदेश में कहा कि मौसी की तुलना में दादा-दादी बच्चे की बेहतर देखभाल करेंगे।
दादा-दादी हमेशा अपने पोते-पोतियों की 'बेहतर देखभाल' करते हैं
बेंच ने कहा कि वे बच्चे की मौसी की तुलना में पोते की कस्टडी के लिए अधिक योग्य हैं क्योंकि दादा-दादी पोते से अधिक जुड़े होंगे। कोर्ट ने कहा बच्चे पर ननिहाल पक्ष से ज्यादा अधिकार दादा-दादी का है। जस्टिस एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा कि भारतीय समाज में दादा-दादी हमेशा अपने पोते-पोतियों की 'बेहतर देखभाल' करते हैं।
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71 वर्षीय दादा ने मांगी थी कस्टडी
शीर्ष अदालत का यह आदेश 71 वर्षीय दादा स्वामीनाथन कुंचु आचार्य द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जो अपनी 63 वर्षीय पत्नी के साथ गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश से व्यथित थे, जिसमें मौसी को बच्चे की कस्टडी देने का आदेश दिया गया था।
बच्चे ने मई 2021 में कोविड में खो दिए थे अपने मां-बाप
इसने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने 46 वर्ष की उम्र में मौसी को कस्टडी दी थी। अहमदाबाद के इस बच्चे ने 13 मई को अपने पिता और 12 जून, 2021 को अपनी मां को खो दिया था, और बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने उसकी पेरेन्टल कस्टडी उस बच्चे की मौसी को दी थी। जिसके बाद बच्चे की कस्टडी के लिए दादा-दादी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मौसी को बच्चे से मिलने का दिया अधिकार
उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए बच्चे के मातृ पक्ष को कस्टडी में दे दिया था कि मौसी केंद्र सरकारी की नौकरी में हैं और वह अविवाहित थी जबकि दादा-दादी पेंशन पर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि दादा-दादी के अधिकारों से वंचित करने के लिए आय एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता है, जो बच्चे से अधिक जुड़े हुए हैं।नाबालिग को दाहोद की तुलना में अहमदाबाद में बेहतर शिक्षा मिलेगी। हालांकि कोर्ट ने कहा मौसी को बच्चे से मुलाक़ात का अधिकार हो सकता है और वह अपनी सुविधानुसार बच्चे से मिल सकती है।
बच्चे की कस्टडी का इनकम एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता है
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले का खंडन करते हुए कहा माता-पिता के दादा-दादी को हिरासत से इनकार करने के लिए आय एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता है। इस प्रकार, मौसी को दी गई कस्टडीरद्द कर दी गई है और अब यह दादा-दादी के पास होगी। पीठ ने दोनों पक्षों से अपनी कड़वाहट को एक तरफ रखने का भी आग्रह किया।