नई संसद के उपर लगे शेरों को क्रूर बताने वाली याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-यह दिमाग पर निर्भर करता है
नई दिल्ली, 30 सितंबर: नए संसद भवन की छत पर बनाए गए अशोक स्तंभ के स्वरूप को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। नए संसद भवन में लगे राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि यह स्टेट एंबलम ऑफ इंडिया एक्ट का उल्लंघन बताया था। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, यह देखने वाले की अपनी सोच पर निर्भर करता है।
सर्वोच्च अदालत में दायर याचिका में गया था कि नए संसद भवन में लगाए गए राष्ट्रीय प्रतीक के शेर, सारनाथ म्यूजियम में संरक्षित रखे गए राष्ट्रीय चिह्न के गंभीर शांत शेरों की तुलना में कहीं ज्यादा 'क्रूर' दिख रहे हैं। ये भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट का उल्लंघन है। राष्ट्रीय प्रतीक की मंजूरी प्राप्त डिजाइन में कोई भी कलाकारी नहीं की जा सकती। साथ ही याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि इसमें 'सत्यमेव जयते' का लोगो नहीं है।
कोर्ट में दायार याचिका में कहा गया है कि चार शेर बुद्ध के चार मुख्य आध्यात्मिक दर्शन के प्रतीक हैं, जो केवल एक डिजाइन नहीं है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और दार्शनिक महत्व है। याचिका की यह भी गया था कि राज्य के प्रतीक के डिजाइन में बदलाव इसकी पवित्रता का उल्लंघन करता है। इसमें किसी तरह का बदलाव स्पष्ट रूप से मनमाना है। मामले में दो वकील अलदनीश रेन और रमेश कुमार की तरफ से याचिका दायर की थी।
इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस एमआर शाह और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि, अगर शेर किसी को आक्रामक मुद्रा में लग रहा है, तो वह उसकी अपनी सोच हो सकती है। जो चिन्ह संसद भवन में लगाया गया है, वह स्टेट एंबलम ऑफ इंडिया एक्ट के अनुसार सही है।
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कोर्ट ने कहा कि, साल 1950 में 26 जनवरी को राज्य प्रतीक को नए गठित गणतंत्र के चिह्न और मुहर के रूप में लाया गया था। संसद भवन के ऊपर स्थापित शेर की मूर्तियाँ भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम 2005 का उल्लंघन नहीं करती हैं।