सबरीमाला: वो मंदिर, जहां 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश से रोक हटी
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नई दिल्ली। केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हट गई है। इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को गलत मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से वंचित करना असंवैधानिक है। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर केस में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। सबरीमाला मंदिर दक्षिण भारत का ऐसा तीर्थस्थल है जहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। आइए, जानते हैं सबरीमाला मंदिर और उससे जुड़ी हर चीज के बारे में..
केरल में है सबरीमाला मंदिर
सबरीमाला मंदिर तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। ये मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। वहीं, इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है। हर सीढ़ी का अलग अर्थ है। इनके बारे में बताया जाता है कि पहली 5 सीढियां मनुष्य की पांच इन्द्रियों को इंगित करती हैं जबकि इसके बाद की 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़कर देखा जाता है। अगली 3 सीढियों को मानवीय गुण जबकि आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर का असली नाम सबरिमलय है। मलयालम भाषा में पर्वत को शबरीमला कहा जाता है। 18 पहाड़ियों के बीच स्थित होने के कारण इसका नाम सबरिमलय रखा गया।
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भगवान अयप्पा को समर्पित है मंदिर
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी ( भगवान विष्णु का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव। इसके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता और मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। सबरीमाला मंदिर के अलावा इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं। इस मंदिर को दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
मंदिर को लेकर कई मान्यताएं
जबकि ये भी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने अय्यपन पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति की स्थापना की थी। वहीं कई विद्वानों का ये भी मत है कि शैव और वैष्णव संप्रदाय के लोगों के बीच मतभेद बहुत बढ़ गए थे, तब उन मतभेदों को दूर कर धार्मिक सद्भाव बढ़ाने के उद्देश्य से अयप्पन की परिकल्पना की गई। यहां धर्म के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं किया जाता है।
हर साल करोड़ों श्रद्धालु करते हैं दर्शन
यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य से भरी होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर में हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
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पहाड़ियों से होकर मंदिर को जाता है रास्ता
मंदिर से 5 किमी दूर पंपा तक कोई गाड़ी लाने का रास्ता नहीं हैं, इस कारण पहले ही उतर कर यहां तक आने के लिए पैदल यात्रा शुरू हो जाती है। वहीं ट्रेन से आने वाले यात्री कोट्टायम या चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन उतरकर मंदिर जा सकते हैं। यहां से पंपा तक गाड़ियों से सफर किया जा सकता है। इसके बाद जंगल के रास्ते पहाड़ियों को पारकर सबरीमाला मंदिर पहुंचा जाता है जहां भगवान अयप्पा के दर्शन होते हैं। इस इलाके के सबसे नज़दीक एयरपोर्ट तिरुअनंतपुरम है जहां से क़रीब सौ किमी की दूरी पर ये मंदिर है।
महिलाओं का प्रवेश वर्जित
सबरीमाला मंदिर धार्मिक सद्भवा का प्रतीक है लेकिन फिर भी यहां 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। बताया जाता है कि भगवान अयप्पन ब्रह्मचारी थे इसलिए मंदिर परिसर में केवल वही बच्चियां जा सकती हैं जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो और वे महिलाएं ही जा सकती हैं जो इससे निवृत्त हो चुकी हैं। इसी को लेकर एक कानूनी लंबे समय से चल रही है।
महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ याचिका
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने इस पाबंदी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में ये कहा गया है कि ये प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव करती है। याचिकाकर्ता ने इसे खत्म करने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है इसलिए इस महिलाओं को भी मंदिर में प्रवेश मिलना चाहिए।
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