38 साल बाद बंकर में मिला शहीद का अवशेष, बेटी बोली- 'पापा घर आ गए हैं...काश वो जिंदा होते'
नई दिल्ली, 15 अगस्त। सियाचिन की पहाड़ियों के बीच 38 साल पहले लापता हुए शहीद के अवशेष मिलने की जब जानकारी हुई तो परिवार सदस्य एक बार फिर से गम में डूब गए। वो पुराने घाव एक बार फिरसे खुल गए। जब रातों दिन इस बात की चिंता रहती थी वो कहां होंगे। उत्तराखंड में हल्द्वानी के एक शहीद के परिवार को ये तो पता हो गया था वो अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन जब तक उनका पार्थिव शरीर ना देख लेते यकीन नहीं होता। लेकिन बदनसीबी ऐसी कि परिवार को ये भी नसीब नहीं हुआ। लेकिन जब समय ने धीरे- धीरे सारे घाव भर दिए तो 38 साल बाद फिर से पुराना जख्म उभर आया।
38 साल बाद बंकर में शहीद का अवशेष
देश 75वें स्वतंत्रता दिवस को आजादी के अमृत महोत्सव को रुप में मना रहा। यानी आज से 75 साल पहले भारत गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ था। इस आजादी के पीछे छिपा है वो संघर्ष जिसे हम कभी भुला नहीं सकते। देश के सुरक्षित रखने के लिए आज भी भारतीय सेना के जवान सीमा पर अपने प्राणों की बाजी लगा रहे हैं। ऐसे एक जवान के परिवार के 38 साल पुराने जख्म एक बार फिर से हरे हो गए हैं। जब भारतीय सेना के बंकर में एक शव मिला है।
सियाचिन में लापता हुए शहीद का अवशेष
1984 में सियाचिन में लापता हुए उत्तराखंड के हल्द्वानी के सैनिक लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला के अवशेष 38 साल बाद दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में मिले हैं। उनकी पत्नी 63 वर्षीय शांति देवी को जब ये सूचना मिली तो वे सन्न रह गईं। बाद में उनकी तबीयत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके स्वस्थ होने की सूचना सेना की 19 कुमाऊं रेजीमेंट के अधिकारियों ने रविवार को दी।
वर्ष 1971 में सेना में भर्ती हुए थे चंद्रशेखर हर्बोला
लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील अंतर्गत बिन्ता हाथीखुर गांव के निवासी थे। हर्बोला 1971 में कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। मई 1984 को बटालियन लीडर लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के नेतृत्व में 19 जवानों का दल ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकला था। साल 1984 में ड्यूटी के दौरान वे हिमस्खलन की चपेट में आ गए थे। बाद में सेना ने इसकी खोजबीन की लेकिन इनमें से किसी का शव नहीं मिला था।
25 साल की थी तब हो गए लापता- पत्नी
लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला का अवशेष मिलने पर उनकी 63 वर्षीय पत्नी शांति देवी मुश्किल से कुछ बोल पाईं। उनका गला रुंध आया, आखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा 'लगभग 38 साल हो गए हैं। और अब फिर से सारे पुराने घाव फिर से खुल गए... मैं 25 साल की था जब वो लापता हो गए थे। 1975 में हमारी शादी हुई। नौ साल बाद जब वह लापता हो गया, तब मेरी दो बेटियां बहुत छोटी थीं। एक साढ़े चार साल का था और दूसरा डेढ़ साल की। लांसनायक के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी ने शादी नहीं की, पूरी जिंदगी बच्चों को पालन पोषण में लगा दी।
मेडल डिस्क से लांसनायक के अवशेष की पहचान
लांस नायक हर्बोला की पहुचान उनकी मेटल डिस्क से की गई। जिस पर उनके बटालियन और उनका नाम लिखा था। उनके नंबर के साथ उसके अवशेष की की पहचान की गई।
पापा घर आ गए हैं... काश वो जिंदा होते- बेटी
हर्बोला की बेटी कविता अब 42 साल की हो चुकी है। पिता का 38 साल बात पता चलने पर कविता कहती हैं उन्हें नहीं पता कि वो खुश हों या फिर दुखी। पिता से जुदा हुए उनके परिवार को लंबा समय हो गया है। कविता ने कहा 'हमें उम्मीद नहीं थी कि वो इतने लंबे समय के बाद मिलेंगे। अब हिंदू परंपरा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करने के बाद कम से कम अब तो हमें चैन मिलेगा ही। पापा घर आ गए हैं लेकिन काश वो जिंदा होते और यहां सभी के साथ स्वतंत्रता दिवस मना पाते।'
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