
UNESCO के विश्व धरोहर में शामिल हुआ रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर, 900 साल पुराने शिव मंदिर की विशेषता जानिए
हैदराबाद, 25 जुलाई: भगवान शिव के प्रिय महीने सावन का आज पहला दिन है और इसी दिन करोड़ों शिव भक्तों और भारतीय नागरिकों को एक बहुत बड़ी खुशी मिली है। तेलंगाना के काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसपर सभी लोगों को खासकर तेलंगाना के लोगों को बधाई दी है। सरकार ने इसका प्रस्ताव 2019 में ही यूनेस्को को भेजा था। 12वीं सदी में बना यह मंदिर अपनी कई खास विशेषताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है और आज भी शोध का विषय बना हुआ है। क्योंकि, करीब 900 वर्षों बाद भी यह मंदिर तुलनात्मक रूप में बहुत ही अधिक मजबूत है।

यूनेस्को विश्व धरोहर बना रामप्पा मंदिर
रविवार को यूनेस्को ने तेलंगाना के मुलुगु जिले में स्थित ऐतिहासिक रामप्पा मंदिर को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। यूनेस्को ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसकी घोषणा करते हुए लिखा है, 'अभी-अभी भारत के तेलंगाना स्थित काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में दर्ज किया है। वाह!' इस घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ट्विटर हैंडल के जरिए देशवासियों और खासकर तेलंगाना के लोगों को बधाई दी है। पीएम मोदी ने लिखा है, 'अति उत्कृष्ट! सभी को बधाई, विशेषकर तेलंगाना की जनता को। प्रतिष्ठित रामप्पा मंदिर महान काकतीय वंश के उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। मैं आप सभी से इस गौरवपूर्ण मंदिर परिसर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का आग्रह करता हूं।'

भारतीय शिल्पकला का अनोखा नमूना है रामप्पा मंदिर
सरकार ने 2019 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के लिए सिर्फ एक प्रस्ताव दिया था, वो है रामप्पा मंदिर का। 12वीं सदी में बना भगवान शिव का यह इकलौता मंदिर है, जिसका नाम इसके बनाने वाले शिल्पकार रामप्पा के नाम पर पड़ा है। यह मंदिर भारतीय शिल्पकला का अनोखा नमूना है। इस मंदिर का निर्माण काकतीय वंश के महाराज रूद्र देव ने 1163 में किया था। इसकी मजबूती और इंजीनियरिंग का अंदाजा इसी से लगता है कि जब देश में इस दौर के ज्यादातर मंदिर प्राकृतिक या मानवीय कारणों से खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं, यह आज भी शान से अपने बुलंद इतिहास की गवाही पेश करता है, जो इतिहास और पुरातत्व के छात्रों के लिए शोध का विषय रहा है।

कई विशेषताओं से भरपूर है यह शिव मंदिर
खूबसूरती की मिसाल रुद्रेश्वर का यह मंदिर अनेक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। अकल्पनीय नक्काशी और बेहतरीन इंजीनियरिंग के इस्तेमाल के अलावा इसका भव्य प्रवेशद्वार, छतों के शिलालेख और हजार खंभे किसी का भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। तारे के आकार वाले इस मंदिर की एक और विशेषता है, जिसके लिए यह त्रिकुटल्यम के नाम से भी विख्यात है। क्योंकि, इस मंदिर में एक साथ भगवान शिव, विष्णु (श्रीहरि) और सूर्य देवता विराजमान हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) की एक साथ पूजा की परंपरा तो आम है, लेकिन इस मंदिर में ब्रह्मा की जगह सूर्य देव को आराध्य के रूप में स्थापित किया गया है।(ऊपर की तस्वीरें- पीएम मोदी के ट्विटर हैंडल से)
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तैरने वाले पत्थरों से बना है यह मंदिर
करीब 900 साल पुराने इस मंदिर की अनेक विशेषताओं में एक ये भी है कि इसे तैरने वाले पत्थरों से बनाया गया है। 9 सदियों में इस मंदिर ने अनगिनत प्राकृतिक आपदाएं झेली हैं, लेकिन इसे ज्यादा क्षति नहीं पहुंची है। जानकारी के मुताबिक इस मंदिर को बनाने में 40 साल लगे थे। यह मंदिर 6 फीट ऊंचे आधार पर खड़ा है और दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानी को नक्काशियों के जरिए उकेरा गया है। पुरातत्व वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मंदिर में लगे पत्थरों के वजन काफी हल्के हैं, जिसके कारण यह पानी में भी तैर सकते हैं, लेकिन यह नहीं पता कि इस मंदिर में इस्तेमाल के लिए इन्हें लाया कहां से गया है।