लोकसभा चुनाव 2019- फूलपुर लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की VVIP लोकसभा सीट से इस वक्त समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल सांसद हैं, जिन्होंने साल 2018 में यहां हुए उपचुनाव में जीत का एक नया इतिहास लिखा है। दरअसल इस सीट पर नागेंद्र प्रताप सिंह को बसपा का समर्थन हासिल था, जिसकी वजह से भाजपा की यहां करारी हार हुई। आपको बता दें कि इस सीट पर बीजेपी से कौशलेंद्र पटेल, बसपा समर्थित सपा प्रत्याशी नागेंद्र सिंह पटेल, कांग्रेस के मनीष मिश्रा और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अतीक अहमद मैदान में थे, जिसमें बाजी लगी नागेंद्र प्रताप सिंह के हाथ में। गौरतलब है कि साल 2014 में बीजेपी ने इस सीट को बीएसपी से छीना था और यूपी के डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य इस सीट पर करीब तीन लाख वोटों के अंतर से विजयी हुए थे। केशव प्रसाद मौर्य ने उप मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से इस्तीफा दे दिया था जिसके कारण यहां साल 2018 में उप चुनाव हुआ था।
दरअसल, आज़ादी के बाद से ही ये संसदीय सीट न सिर्फ़ प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र रहा, बल्कि यहां से तमाम दिग्गजों ने चुनाव लड़ा है, इनमें से कई दिग्गज जीते भी हैं, हारे भी हैं और कुछ की ज़मानत भी ज़ब्त हुई है। साल 2014 में केशव प्रसाद मौर्य जब यहां से जीते थे, तो न सिर्फ़ ये उनके लिए बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी अप्रत्याशित था क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इस सीट पर जीत का स्वाद चखा था। खास बात ये है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में पहली लोकसभा में पहुंचने के लिए इसी सीट को चुना था और लगातार तीन बार 1952, 1957 और 1962 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज कराई थी। नेहरू के चुनाव लड़ने के कारण ही इस सीट को 'VVIP सीट' का दर्जा मिला था। फूलपुर से जवाहर लाल नेहरू के विजय रथ को रोकने के लिए 1962 में प्रख्यात समाजवादी नेता डॉक्टर राममनोहर लोहिया ख़ुद यहां चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन वो हार गए थे।
नेहरू के निधन के बाद इस सीट की ज़िम्मेदारी उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने संभाली और उन्होंने 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को हराकर नेहरू और कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया लेकिन 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद इस सीट से इस्तीफ़ा दे दिया, जिसके बाद यहां हुए उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र विजयी हुए थे, इसके बाद 1971 में यहां से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए। 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामपूजन पटेल को टिकट दिया लेकिन जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने यहां से जीत हासिल की, हालांकि बाद में कमला बहुगुणा ख़ुद कांग्रेस में शामिल हो गईं थीं। 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो इस सीट से लोकदल के उम्मीदवार प्रोफ़ेसर बीडी सिंह ने जीत दर्ज की, 1984 में हुए चुनाव कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने जीत दर्ज कर एक बार फिर इस सीट को कांग्रेस के हवाले किया। कांग्रेस से जीतने के बाद रामपूजन पटेल जनता दल में शामिल हो गए. 1989 और 1991 का चुनाव रामपूजन पटेल ने जनता दल के टिकट पर ही जीता. पंडित नेहरू के बाद इस सीट पर लगातार तीन बार यानी हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड रामपूजन पटेल ने ही बनाया।
1996 से 2004 के बीच हुए चार लोकसभा चुनावों में यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीतते रहे, साल 2004 में बाहुबली अतीक अहमद यहां से सांसद चुने गए, साल 2009 में पहली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने भी जीत हासिल की, खास बात ये रही कि 2009 तक तमाम कोशिशों और समीकरणों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर जीत हासिल करने में नाकाम रही लेकिन साल 2014 में सारे समीकरण उलट गए और भाजपा नेता केशव मौर्य ने यहां ऐतिहासिक जीत दर्ज की। मौर्य ने बीएसपी नेता कपिलमुनि करवरिया को तीन लाख से भी ज़्यादा वोटों से हराया लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी के नागेंद्र पटेल ने भाजपा नेता कौशलेंद्र पटेल को 59,613 मतों से शिकस्त दी ।
हालांकि देश की वीवीआईपी सीट होने के बावजूद फूलपुर में विकास के नाम पर सिर्फ़ इफ़को की यूरिया फ़ैक्ट्री है और शिक्षा के नाम पर यहां के कुछेक इंटर कॉलेज गुणवत्ता के लिए राज्य भर में काफी मशहूर रहे हैं लेकिन उनकी भी स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है, दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यहां विकास की गति बहुत धीमी है। वैसे फूलपुर सीट न सिर्फ़ बड़े नेताओं को जिताने के लिए बल्कि कई दिग्गजों को धूल चटाने के लिए भी मशहूर है, चाहे वो बड़े लोहिया हों या छोटे लोहिया (जनेश्वर मिश्र)।