देश का वो राष्ट्रपति चुनाव, जब हार गया था सत्ता पक्ष का उम्मीदवार
नई दिल्ली। देश में जब भी राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं, अमूमन सत्तापक्ष के उम्मीदवार ने ही जीत हासिल की है। लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि प्रधानमंत्री ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया और उसे हारना पड़ा?
साल 1969 में हुआ ऐसा
जी हां ऐसा हुआ था साल 1969 में जब कांग्रेस की ओर से प्रस्तावित उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा था। दरअसल, साल 1969 में तात्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मई में आकस्मिक निधन के बाद राष्ट्रपति चुनाव कराना पड़ा। उस वक्त तक यह परंपरा थी कि उप राष्ट्रपति को ही राष्ट्रपति बनाया जाता था। उस समय उपराष्ट्रपति वीवी गिरी ही थे।
तब इंदिरा ने कहा...
1969 के चुनाव में कांग्रेस के भीतर इंदिरा के विरोधियों ने वीवी गिरी की जगह नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव दिया। फिर इंदिरा ने बाबू जगजीवन राम का नाम आगे किया लेकिन कांग्रेस संसदीय बोर्ड में उनके जगजीवन राम के नाम सहमित ना बन पाने के कारण इंदिरा की ओर से प्रस्तावित इस नाम को खारिज कर नीलम संजीव रेड्डी को ही उम्मीदवार बनाया गया।
तब वीवी गिरी मैदान में आए
इसी दौरान वीवी गिरी ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीवारी के लिए पर्चा भर दिया। इतना ही नहीं 1969 के इस चुनाव में इंदिरा ने कांग्रेस सांसदों के लिए व्हिप जारी करने से इनकार कर दिया और कांग्रेस सांसदों से अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट देने को कहा था। 1969 का यह चुनाव 16 अगस्त को हुआ और 20 अगस्त को मतगणना।
और हार गए नीलम संजीव रेड्डी
1969 के चुनाव में 8,36,637 मत डाले गए। इस चुनाव में जीत के लिए 4,18,469 मतों की जरूरत थी। बता दें कि यह ऐसा चुनाव था जिसमें पहले दौर की मतगणना में कोई उम्मीदवार जीत हासिल करने के लिए आवश्यक मत नहीं पास सका था। बता दें कि पहले दौर की मतगणना में वीवी गिरी को 4,01,515 मत मिले थे और रेड्डी को 3,13, 548 मत। दूसरी वरीयता के मतों की गिनती में वीवी गिरी को 4, 20, 077 और रेड्डी को 4,05,427 मत मिले थे।
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