दिल्ली की 'सांसें' वापस दिला सकती है ये मशीन
स्विटज़रलैंड में बनीं कार्बन डाईऑक्साइड सोखने वाली मशीन.
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर थोड़ा घटने के बाद सरकार ने इस सिलसिले में लगाए गए कुछ प्रतिबंधों को वापस ले लिया है.
ट्रकों के आने पर लगाई गई रोक हटा ली गई है और निर्माण कार्यों पर पर लगाई गई पाबंदी में भी राहत दी गई है.
लोग निजी गाड़ी लेकर न निकलें, इसके लिए बढ़ाई गई पार्किंग की दरों को भी वापस ले लिया गया है. अधिकारियों के मुताबिक़ पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन न होने की वजह से यह रोक प्रभावी नहीं रही.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण का ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया था.
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वातावरण से सोखी जा सकेगी कार्बन डाई ऑक्साइड
इसी बीच स्विट्ज़रलैंड की एक कंपनी ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड को वायुमंडल से सीधे सोखा जा सकता है.
इस समय धरती के वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड का घनत्व रिकॉर्ड तोड़ चुका है और इसे लेकर पूरी दुनिया में चिंता ज़ाहिर की जा रही है.
इस समय बॉन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक हो रही है और कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को सीमित रखने के लिए सहमति बनाने की कोशिश हो रही है.
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क्या है तकनीक?
ज़्यूरिख़ के बाहरी इलाक़े में हिनविल रिसाइक्लिंग केंद्र के बाहर 18 विशाल पंखों वाली मशीन को रखा गया है. हर पंखा एक वॉशिंग मशीन के आकार का है
ये पंखे आसपास की हवा को खींचते हैं. अंदर मौजूद रसायन की परत लगा फ़िल्टर कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोख लेता है. जब ये फ़िल्टर 100 डिग्री सेल्सियत तक गरम हो जाते हैं तो वो शुद्ध कार्बन डाई ऑक्साइड को इकट्ठा करते हैं.
इस तकनीक को डायरेक्ट एयर कैप्चर सिस्टम का नाम दिया गया है जिसे स्विस कंपनी क्लाइमवर्क्स ने तैयार किया है.
ये मशीन एक साल में वायुमंडल से 900 टन कार्बन डाई ऑक्साइड को इकट्ठा कर सकती है. कंपनी इस कार्बन डाई ऑक्साइड को 600 डॉलर प्रति टन के दाम पर सब्ज़ी उगाने वालों को बेचती है जो काफ़ी महंगा है.
असल में शुद्ध कार्बन डाई ऑक्साइड को मछली से लेकर कंक्रीट बनाने, कार सीट से लेकर टूथपेस्ट और तेल खनन से लेकर ई-डीज़ल बनाने तक में इस्तेमाल किया जाता है.
अमरीका में तो कार्बन डाई ऑक्साइड का कारोबार काफ़ी तेजी से फल फूल रहा है.
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कितना व्यावहारिक?
क्लाइमवर्क्स के सह संस्थापक इयान वर्ज़बेकर का कहना है कि 'पहली बार हम CO2 व्यावसायिक रूप से बेच रहे हैं. ये अपनी तरह का पहला प्रयास है.'
उनके अनुसार, 'अभी ये तकनीक महंगी है और हम लागत को 100 डॉलर प्रति टन तक लाने की कोशिश करेंगे. इस तकनीक को व्यापक बनाकर इसकी लागत को कम किया जा सकता है.'
कंपनी 2015 तक कार्बन डाई ऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन का एक प्रतिशत वायुमंडल से निकालना चाहती है. लेकिन इस कोशिश के लिए ऐसी 7.5 लाख मशीनें लगानी होंगी. इन्हें चलाने के लिए भी बहुत ज़्यादा मात्रा में ऊर्जा की ज़रूरत होगी.
डायरेक्ट एयर कैप्चर सिस्टम पर कनाडा में दो अन्य कंपनियां कार्बन इंजीनियरिंग कंपनी और फ़िनिश जर्मन कन्सोर्शियम भी कोशिश में हैं.
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हालांकि विशेषज्ञ इसके व्यावहारिक होने पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा को सीमा में रखने का मौक़ा दुनिया गंवा चुकी है और इस तरह की तकनीक की अब ज़रूरत है.
इयान वर्ज़बेकर का कहना है, "20 साल पहले कार्बन उत्सर्जन को कम किए जाने पर ज़ोर देने की बात सही थी, लेकिन 2050 तक वायुमंडल से 10 गीगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड हर साल निकालने की ज़रूरत है."
आज से आठ लाख साल पहले के मुकाबले कार्बन डाई ऑक्साइड का घनत्व अधिक है, हालांकि इस गैस की मात्रा वायुमंडल में 0.04 प्रतिशत है.