मोदी 'काल' का पहला बैंक घोटाला नहीं है पीएनबी
खुद के भ्रष्टाचार मुक्त होने का दावा करने वाली बीजेपी के शासन में भी हुए हैं घोटाले.भारतीय बैंकिंग की स्थिति पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, बेंगलुरु ने भी एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की थी और ये रविशंकर प्रसाद के दिए आंकड़ों से मेल खाती है.
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के सार्वजनिक हुए दो दिन भी नहीं बीते थे कि मोदी सरकार ने भारत में बैंक धोखाधड़ी से जुड़े चौंकाने वाले आंकड़े सामने रख दिए.
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि सार्वजनकि क्षेत्र के बैंकों को साल 2012 से 2016 के बीच धोखा देकर 22,743 करोड़ रुपये का चूना लगाया गया.
भारतीय बैंकिंग की स्थिति पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, बेंगलुरु ने भी एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की थी और ये रविशंकर प्रसाद के दिए आंकड़ों से मेल खाती है.
शुक्रवार को मंत्री जब प्रश्न काल के दौरान बहस में हिस्सा ले रहे थे, उस वक्त भी उन्होंने आईआईएम बेंगलुरु की इस रिपोर्ट का ज़िक्र किया.
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रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 के पहले नौ महीने में आईसीआईसीआई बैंक में धोखाधड़ी के करीब 455, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में 429, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में 244 और एचडीएफ़सी बैंक में 237 मामले पकड़े गए.
ये सभी मामले एक लाख रुपये या इससे ज़्यादा के थे. रिपोर्ट कहती है कि धोखाधड़ी के ज़्यादातर मामलों में बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत थी.
आंकड़े बताते हैं कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के 60 से ज्यादा स्टाफ़, एचडीएफसी बैंक के 49, एक्सिस बैंक के 35 कर्मचारियों का इस गोरखधंधे में रोल पाया गया.
नीरव मोदी कांड के बाद पंजाब नेशनल बैंक ने भी 11,400 करोड़ रुपये के घोटाले के सिलसिले में अपने 20 कर्मचारियों को निलंबित किया है.
आइए एक नज़र डालते हैं 2011 से 2017 के बीच हुए कुछ बड़े बैंक घोटालों पर.
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साल 2011
साल 2011 में केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) ने बताया कि कुछ बैंक अफसरों ने 10 हज़ार संदिग्ध बैंक खाते खोले और उनमें लोन के 1500 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर लिए.
ये अधिकारी बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स और आईडीबीआई जैसे बैंकों के थे.
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साल 2014
इसके ठीक तीन साल बाद मुंबई पुलिस ने सार्वजनिक बैंकों के कुछ अधिकारियों के ख़िलाफ़ नौ एफ़आरआर दर्ज किए.
उन पर 700 करोड़ रुपये के फ़िक्स्ड डिपॉज़िट का घपला करने का आरोप था.
इसी साल कोलकाता के उद्योगपति बिपिन बोहरा पर कथित तौर पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के सहारे सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया से 1400 करोड़ रुपये लोन लेने का आरोप लगा.
2014 में ही सिंडिकेट बैंक के एक्स चेयरमैन और प्रबंध निदेशक एसके जैन पर कथित रूप से रिश्वत लेकर 8000 करोड़ रुपये का लोन मंज़ूर करने का आरोप सामने आया.
इसी साल यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया ने विजय माल्या को विलफ़ुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया. इसके बाद एसबीआई और पीएनबी ने भी यूबीआई की राह अपनाई.
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साल 2015
ये बरस विदेशी मुद्रा के विनिमय घोटाले का साल था. इस घोटाले में कई बैंकों के स्टाफ़ और हांगकांग की एक कंपनी शामिल थी.
इन लोगों ने मिलकर 6000 करोड़ रुपये के मूल्य की विदेशी मुद्रा का घपला किया.
साल 2016
चार धोखेबाज़ों ने मिलकर सिंडिकेट बैंक के खातों से 1000 करोड़ रुपये उड़ा लिए. इसके लिए 380 फर्जी बैंक खाते बनाए गए और जाली लेनदेन को अंजाम दिया गया.
इसे अंजाम देने में फर्जी चेकबुक, लेटर ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग और जीवन बीमा निगम की पॉलिसीज का इस्तेमाल किया गया.
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साल 2017
ये साल विजय माल्या को लेकर सुर्खियों में रहा. सीबीआई ने बैंकों के डूबे हुए 9500 करोड़ रुपये की कर्ज की वसूली के लिए माल्या के ख़िलाफ़ चार्जशीट फ़ाइल की.
साल 2016 में माल्य ने भारत छोड़ दिया. फिलहाल वे ब्रिटेन में रह रहे हैं और भारत उनके प्रत्यर्पण के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है.
कुछ ही महीने बीते थे कि 7000 करोड़ रुपये के एक घोटाले का मामला विनसम डायमंड्स के ख़िलाफ़ सामने आया. सीबीआई ने इस सिलसिले में छह एफआईआर दर्ज किए.
जतिन मेहता की विनसम डायमंड्स का मामला नीरव मोदी की धोखाधड़ी की तर्ज पर ही था. इसी साल कोलकाता के कारोबारी नीलेश पारेख का मामला भी सुर्खियों में रहा.
सीबीआई ने 2017 में नीलेश को मुंबई एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया. उन पर कम से कम 20 बैंकों को 2,223 करोड़ रुपये का चूना लगाने का आरोप था.
पारेख ने कथित रूप से ये पैसा शेल कंपनियों के ज़रिए हांगकांग, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात ट्रांसफ़र कर दिया था.
इस मामले में सीबीआई ने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के एक ज़ोनल मैनेजर और सूरत की एक प्राइवेट कंपनी के डायरेक्टर के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया.
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