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साइबर स्वयंसेवकों के ज़रिए सोशल मीडिया की निगरानी समाधान है या समस्या?

केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल, 'राष्ट्र हित" में सोशल मीडिया और साइबर स्पेस पर नज़र रखने के लिए वॉलंटियर्स को तैनात करेगी, क्या है इरादा और क्या हैं आशंकाएँ

By भूमिका राय
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साइबर क्राइम को रोकने और 'राष्ट्र हित' में सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए स्वयंसेवक या वॉलंटियर्स तैयार किए जाएंगे.

सरकार ने विस्तार से इसकी ज़रूरत के बारे में बताया है लेकिन साइबर क़ानून और निजता के अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे कार्यकर्ताओं ने इस पर गहरी चिंता और आशंकाएँ जताई हैं.

सरकार का कहना है कि अभी यह प्रोग्राम परीक्षण के तौर पर जम्मू-कश्मीर में शुरू किया गया है, वहाँ मिलने वाली रिपोर्ट के बाद उसके आधार पर ही इस प्रोग्राम पर आगे काम किया जाएगा.

वॉलंटियर नियुक्त करने के पीछे क्या है सोच?

इंडियन साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर साइबर क्राइम के ख़िलाफ़ नोडल प्वाइंट के तौर पर काम करता है. इसकी स्थापना गृह मंत्रालय के तहत की गई है. इसका मक़सद व्यापक स्तर पर साइबर अपराधों से निपटना है.

इस सेंटर का मुख्य उद्देश्य साइबर क्राइम की रोकथाम और उसकी जांच में आम लोगों की भागीदारी को बढ़ाना भी है.

गृह मंत्रालय के मुताबिक, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए साइबर क्राइम वॉलंटियर प्रोग्राम को तैयार किया गया है. यह प्रोग्राम 'देश सेवा' और साइबर क्राइम के ख़िलाफ़ लड़ाई में योगदान करने के इच्छुक नागरिकों के लिए तैयार किया गया है.

सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि वॉलंटियर इंटरनेट पर मौजूद ग़ैर-क़ानूनी और 'राष्ट्र विरोधी' कंटेंट की पहचान करने, उसे रिपोर्ट करने और उसे साइबर नेटवर्क से हटाने में एजेंसियों की मदद करेंगे.

ये साइबर वॉलंटियर्स ऐसी किसी भी सामग्री को रिपोर्ट कर सकते हैं जो इनमें से किसी पहलू से जुड़ा कंटेंट हो--

  • भारत की संप्रभुता और अखंडता के ख़िलाफ़
  • भारत की सेना के ख़िलाफ़
  • राज्य की सुरक्षा के ख़िलाफ़
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के ख़िलाफ़
  • सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के ख़िलाफ़
  • सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ख़तरा होने पर
  • बाल यौन शोषण से जुड़ा कंटेंट होने पर

राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर मौजूद जानकारी के मुताबिक़ इस प्रोग्राम का मक़सद इंटरनेट पर मौजूद चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी और ग़ैर-क़ानूनी सामग्री को हटाने में सरकार की मदद करना है लेकिन क्या सब कुछ इतना सीधा-सरल है?

ढेर सारे सवाल और चिंताएँ

सबसे पहला सवाल तो ये है कि ज़्यादातर बातें व्याख्या पर आधारित हैं, अलग-अलग लोगों की व्याख्या उनकी विचारधारा, जानकारी, समझ और पूर्वाग्रह आदि से प्रभावित हो सकती है. कौन सी टिप्पणी या पोस्ट 'राष्ट्र हित' में है या नहीं, कौन सी पोस्ट 'राज्य की सुरक्षा के ख़िलाफ़' है या नहीं, ये ऐसी बातें हैं जिनका फ़ैसला वॉलंटियर्स पर छोड़ा जाना किस हद तक सही होगा?

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत मनचंदा कहते हैं, "पहली समस्या तो यह है कि आपने उन बिंदुओं को तो बताया है कि किसके ख़िलाफ़ लिखने पर शिकायत हो सकती है लेकिन जो बिंदु दिये गए हैं, उनका आयाम बहुत बड़ा है, उनकी व्याख्या और परिभाषा क्या होगी."

मनचंदा वैचारिक पूर्वाग्रहों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "दूसरी समस्या यह है कि किन लोगों को नियुक्त किया जा रहा है, कैसे किया जा रहा और किस आधार पर किया जा रहा है इसे लेकर पारदर्शिता नहीं है."

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, "इसे लेकर अभी उतनी स्पष्टता नहीं है. इसमें अभी पारदर्शिता और जवाबदेही जैसी चीज़ों की ज़रूरत है."

पवन दुग्गल कहते हैं, "अगर इस प्रोग्राम को चलाना है तो विस्तार से इसके प्रावधान लाने होंगे ताकि चेक एंड बैलेंस बना रहे और कहीं ना कहीं अंकुश रहे. वरना तो कोई भी किसी से दुश्मनी निकालने के लिए इन वॉलंटियर्स के पास जा सकता है."

पवन दुग्गल के अनुसार, हम सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है लेकिन उस पर कुछ मदों को लेकर अंकुश लगाए जा सकते हैं लेकिन ये रीज़नेबल रिस्ट्रिक्शन कौन तय करेगा?

उनके मुताबिक़, "साइबर वॉलंटियर जिनके पास क़ानून को समझने की योग्यता ना हो, उनके पास अनुभव ना हो तो वो क़ानून की बारीकियों को नहीं समझ पाएंगे. ऐसे में इस बात की भी आशंका बढ़ जाती है कि शिकायतों की बाढ़-सी आ जाए."

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जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर कहते हैं, साइबर वालंटियर 'लोगों पर नज़र रखने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है.'

हर्ष मंदर कहते हैं, "साइबर वालंटियर्स की आर्मी बनाकर सरकार लोगों पर नज़र रखने को जायज़ ठहरा रही है. ये बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यह नाज़ी जर्मनी की याद दिलाता है जहां लोगों को जासूस बनने और अपने पड़ोसियों की जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था ताकि समाज में लोगों के बीच की दूरियां और बढ़ाई जा सकें".

पवन दुग्गल कहते हैं, "वॉलंटियर्स के लिए अनिवार्य योग्यता पर काम करने की आवश्यकता है, वरना तो हर कोई ही वॉलंटियर ही होगा और फिर ये सिस्टम काम कैसे करेगा, बता पाना मुश्किल है. वो मानते हैं कि ऐसे में इसका दुरुपयोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है."

सरकार की ओर से अब तक दी गई जानकारियाँ

राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर साइबर स्वयंसेवकों के बारे में जो जानकारी दी गई है वो इस तरह हैं--

  • यह विशुद्ध रूप से एक वॉलंटियर प्रोग्राम है और कोई भी वॉलंटियर इसका इस्तेमाल किसी व्यवसायिक लाभ के लिए नहीं कर सकता.
  • इस प्रोग्राम के तहत किसी भी तरह का आर्थिक लाभ नहीं दिया जाएगा. न ही उन्हें कोई पद दिया जाएगा और न ही पहचान पत्र.
  • इस प्रोग्राम से संबंधित लोग कोई भी सार्वजनिक बयान जारी नहीं कर सकेंगे.
  • वॉलंटियर गृह मंत्रालय के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे.
  • इस प्रोग्राम के नाम से सोशल अकाउंट बनाने, जानकारी साझा करने, बयान जारी करने की मनाही है.
  • अगर आप इस प्रोग्राम को लेकर कुछ काम करते हैं तो उसे गोपनीय रखना होगा.
  • वॉलंटियर के लिए अनिवार्य है कि वो रजिस्ट्रेशन के दौरान अपनी सही जानकारी दे.
  • भारतीय क़ानून के दायरे में रहते हुए काम करना होगा.
  • नियम और शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में पंजीकरण नहीं किया जाएगा.
  • साथ ही अगर क़ानून के प्रावधानों को तोड़ने का दोषी पाया जाएगा तो कार्रवाई का प्रावधान भी है.

सरकार को अंदाज़ा रहा होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा भी उठेगा और निजता का भी, इसीलिए सभी वॉलंटियर्स से अपील की गई है कि वे सबसे पहले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 को ज़रूर पढ़ें. अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की आज़ादी की व्याख्या करता है.

विचारों की पहरेदारी नहीं है ये?

साइबर और टेक्नॉलजी मामलों के विशेषज्ञ निखिल पाहवा कहते हैं, "मेरे हिसाब से तो ये साइबर विजिलांटिज़्म जैसा लग रहा है." यानी वैसी ही स्थिति हो सकती है जैसी गोरक्षा के नाम पर जुटे स्वयंसेवकों की वजह से हुई है.

निखिल पाहवा कहते हैं, "जैसे पुलिस है, कोर्ट है इनके पास समझ होती है कि क्या सही है, क्या ग़लत है. लेकिन अगर आप साइबर निगरानी के लिए ऐसे अनजान लोगों को नियुक्त करते हैं और कहते हैं कि तुम पता लगाओ कि किसने ग़ैर-क़ानूनी काम किया है, तो उनके पास क्या ये जज करने की क्षमता होगी?"

निखिल पाहवा कहते हैं, "पिछले कुछ सालों से सरकार की कोशिश जारी है कि वो सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टेंडर निकाले. लेकिन महुआ मोइत्रा के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद ये ख़ारिज हो गया था."

वो कहते हैं कि "ये वॉलंटियर वाला जो सिस्टम है वो ऐसा कि वॉलंटियर को पावर तो है लेकिन कोई जवाबदेही नहीं. जो वॉलंटियर हैं उनकी कोई बेसिक क्वालिफ़िकेशन होनी चाहिए."

पाहवा के हिसाब से सबसे अहम बात ये है कि "किसको चुना जाएगा और किसे रिजेक्ट किया जाएगा, ऐसा करने का आधार क्या होगा, इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. सरकार की ओर से इस मामले में कोई पारदर्शिता नहीं है. यह बात भी समझ नहीं आ रही है कि आख़िर इन लोगों को क्यों कहा जा रहा है कि वो गोपनीय रखें कि वो इस प्रोग्राम का हिस्सा हैं, जैसे पुलिस वाला भी तो वर्दी पहनता ही है ताकि लोगों को पता चले कि वो पुलिसवाला है. तो ये काम छिपकर क्यों किया जा रहा है?"

सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक भारत का कोई भी नागरिक शर्तें पूरी करने के बाद वॉलंटियर बन सकता है. वॉलंटियर के पंजीकरण की प्रक्रिया सरकारी साइट पर कुछ इस तरह है--

  • भारत का कोई भी नागरिक अपने को वॉलंटियर के तौर पर रजिस्टर कर सकता है.
  • www.cybercrime.gov.in पर जाकर खुद को रजिस्टर कर सकते हैं.
  • सबसे पहले एक लॉग-इन आईडी बनानी होगी. अपने राज्य का नाम बताना होगा. मोबाइल नंबर देना होगा. इस मोबाइल नंबर पर ही एक ओटीपी आएगा जिसे देने के बाद लॉन-इन कर सकेंगे.
  • रजिस्ट्रेशन के पहले चरण में उस व्यक्ति से जुड़ी जानकारियां मांगी जाएंगी, जिसमें रेज़्यूमे, पहचान पत्र, घर के पते का दस्तावेज़ और पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो अपलोड करनी होगी.

रजिस्ट्रेशन के दूसरे चरण में कारण बताना होगा कि आख़िर क्यों आप साइबर वॉलंटियर बनना चाहते हैं. साइबर वॉलंटियर बनने के लिए किसी वेरिफ़िकेशन की ज़रूरत नहीं है. फ़ाइनल सबमिशन के बाद आप अगर इंटरनेट पर कोई ग़ैर-क़ानूनी सामग्री देखते हैं तो उसे सीधे www.cybercrime.gov.in पर रिपोर्ट कर सकते हैं.

इस प्रोग्राम में साइबर वॉलंटियर के अलावा दो और कैटेगरी हैं, साइबर वॉलंटियर (जागरूकता) और साइबर वॉलंटियर एक्सपर्ट, इन दोनों कैटेगरी में रजिस्ट्रेशन करने पर वेरिफ़िकेशन कराना होगा जो केवाइसी जैसी प्रक्रिया है.

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English summary
Monitoring social media through cyber volunteers is the solution or problem?
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