आर्टिकल-370 जाते ही महबूबा-अब्दुल्ला होंगे बेघर, खाली करने होंगे करोड़ों के आलीशान बंगले
नई दिल्ली- आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों पर एक बड़ा संकट आने वाला है। इन सभी नेताओं को अब सरकारी बंगले खाली पड़ने पड़ सकते हैं। क्योंकि, अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला श्रीनगर में भी लागू होगा, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों से जीवनभर सरकारी बंगले में रहने की गारंटी छीन ली गई है। अभी जम्मू-कश्मीर के लगभग सभी पूर्व सीएम या तो श्रीनगर के पॉश इलाके गुपकर रोड के आलीशान बंगलों में रहते हैं या सरकार से उसके लिए मोटा किराया वसूलते हैं। ये नेता सुरक्षा के नाम पर सिर्फ सरकारी बंगलों में रह ही नहीं रहे हैं, उसके मेंटेनेंस पर जनता के खजाने से करोड़ों रुपये फूंक भी चुके हैं और दूसरी तमाम सुविधाओं का भी वर्षों से मुफ्त में लुत्फ उठा रहे हैं। माना जा रहा है कि अब जल्द ही ये शानदार और आलीशान फ्री सेवा खत्म होने वाली है।
आलीशान सरकारी बंगले में रहती हैं महबूबा
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती श्रीनगर के पॉश गुपकर रोड के सरकारी आवास में 2005 से लगातार रह रही हैं, जो फेयरव्यू के नाम से मशहूर है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक महबूबा और उमर ने अपने-अपने कार्यकाल में कुल मिलाकर करीब 50 करोड़ रुपये बंगलों की साज-सज्जा पर खर्च कराए हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम स्थित महबूबा के पिता और पूर्व सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद के निजी आवास के पुनर्निमाण पर रोड और भवन विभाग ने बहुत मोटी रकम खर्च की है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता कार्यकाल के बाद भी सरकारी बंगले की सुविधा 'सुरक्षा चिंताओं' के नाम पर उठाते आए हैं।
दो-दो घर छोड़ सरकारी बंगले में रहते हैं उमर
श्रीनगर के गुपकर रोड इलाके में ही नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला के पास दो-दो घर हैं, लेकिन उनके बेटे उमर अब्दुल्ला पास में ही सरकारी बंगला 'नंबर-1' में रहते हैं। इस बंगले में उमर ने अपनी सुविधा के लिए सभी लग्जरी सुविधाओं का इंतजाम कराया है। मसलन बंगले में प्राइवेट जिम और सॉना का भी इंतजाम है। जम्मू और कश्मीर एस्टेट डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि जब उमर अब्दुल्ला 2009 से 2014 तक सीएम थे तो बंगले की साज-सज्जा पर 20 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
फारूक अपने घर में रहते हैं, लेकिन सरकार से किराया लेते हैं
नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला गुपकर रोड इलाके में अपने निजी आवास में रहते हैं। लेकिन, स्टेट विभाग के एक अफसर ने कहा है कि पूर्व सीएम होने के नाते वे सरकार से मोटा किराया वसूलते हैं। यही नहीं उनके बंगले में उनकी सेवा के लिए स्टाफ की भारी-भरकम फौज है, जिनकी सैलरी सरकारी खजाने से दी जाती है।
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आजाद का है सरकारी गेस्टहाउस पर 'अस्थाई कब्जा'
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद शायद अकेले ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिनके नाम पर न कोई सरकारी बंगला आवंटित है और न ही वे उसके लिए किराया मांगते हैं। वे श्रीनगर के हैदरपुरा इलाके में अपने घर में रहते हैं। लेकिन, गुपकर रोड में ही जम्मू और कश्मीर बैंक का गेस्टहाउस उनके 'अस्थाई कब्जे' में है, जहां वे पार्टी के लोगों से मिलते-जुलते हैं।
एक पूर्व सीएम के पोते ने तो सरकारी प्रॉपर्टी बेच भी दी
एक पूर्व सीएम गुलाम मोहम्मद सादिक के पोते इफ्तिकार सादिक ने डलगेट इलाके के गरीबल में तो कथित तौर पर उस प्रॉपर्टी का एक हिस्सा ही बेच दिया, जो उसके दादा के कब्जे में था। दरअसल वो एक 'बेनामी संपत्ति' (संपत्ति का मालिक 1947 में पीओके चला गया) थी, जिसकी संरक्षक जम्मू और कश्मीर सरकार थी।
अपनी सुविधा के हिसाब से बनाया कानून
जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम सरकार बंगलों के अलावा भी कई सुविधाओं के हकदार हैं। मसलन सुरक्षा के नाम पर उन्हें बुलेट-प्रूफ गाड़ियां मिलती हैं और काफी सारे स्टाफ भी दिए जाते हैं। फारूक अब्दुल्ला के रिश्तेदार और पूर्व सीएम गुलाम मोहम्मद शाह ने सबसे पहले 1984-86 के अपने कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए रिटायरमेंट के बाद की सुविधाओं के मद्देनजर एक कानून बनाया था। बाद में 1997-98 के दौरान सीएम के तौर पर अपने कार्यकाल में फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व सीएम के लिए मुफ्त में सरकारी आवास के अलावा ढेर सारी लग्जरी सुविधाओं का प्रावधान भी जोड़ दिया था। हालांकि, हाल ही में जम्मू-कश्मीर स्टेट लॉ कमीशन के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस एमके हंजुरा ने मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रण्यम को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें फारूक द्वारा जोड़ी गई सुविधाओं को संविधान की 'समानता के अधिकार' की भावना के खिलाफ बताया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?
2018 के मई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस कानून को निरस्त कर दिया था, जिसमें सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास दिए जाने की गारंटी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद सिर्फ जम्मू और कश्मीर ही ऐसा राज्य बचा था जहां पूर्व मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी बिना कोई रेंट दिए भी साल-दर-साल से सरकारी बंगलों में आराम से रह रहे हैं।