एमसीडी चुनाव: तारीख़, सियासत और समीकरण - जानिए सब कुछ
इसी साल दिल्ली की तीनों म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को मिलाकर एक यूनिफ़ाइड एमसीडी बनाई गई. इसके 250 पार्षदों का चुनाव चार दिसंबर को होना है. नतीजे सात दिसंबर को आएंगे. इस चुनाव के बारे में जानिए सब कुछ.
दिल्ली एमसीडी के चुनाव चार दिसंबर को होने जा रहे हैं. ईवीएम मशीन के ज़रिए सुबह आठ बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक मतदान होंगे और नतीजे 7 दिसंबर को आएंगे.
दिल्ली की तीनों म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का कार्यकाल इसी साल मई महीने में ख़त्म हो गया था, लेकिन चुनाव की घोषणा होने में लगभग 6 महीने लग गए. आमतौर पर कार्यकाल ख़त्म होने से एक महीने पहले ही चुनाव करा लिए जाते हैं.
राज्य चुनाव आयोग ने बीते पांच नवंबर को एमसीडी के चुनावों की घोषणा के साथ ही चुनाव में देरी की वजह बताई.
राज्य के चुनाव आयुक्त विजय देव ने बताया, ''डीएमसी एक्ट में संशोधन के बाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का एकीकरण किया गया. यानी एक यूनिफ़ाइड म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना की गई. पहले राजधानी दिल्ली में कुल तीन नगर निगम थे, जो एकीकरण के बाद एक हो गए. इसके बाद परिसीमन प्रक्रिया ज़रूरी थी. ये एक लंबी प्रक्रिया होती है और इसे पूरा करने में व़क्त लगा."
एमसीडी चुनाव में क्यों हुई देरी?
चुनाव में देरी के पीछे की जो वजहें रहीं - पहली नगर निगमों का एकीकरण और दूसरा वॉर्डों की परिसीमन प्रक्रिया.
बीजेपी लंबे समय से दिल्ली नगर निगम के एकीकरण की मांग कर रही थी. पार्टी का मानना था कि अगर तीनों नगर निगम एक हो जाएंगे तो एक ही मेयर होगा और उसकी शक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री के लगभग बराबर हो जाएगी. एमसीडी और दिल्ली सरकार के बीच अक्सर फंड,अधिकार क्षेत्र और काम के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी रहती है.
इस साल मार्च महीने में केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली एमसीडी के एकीकरण पर मुहर लगा दी और फिर दोनों ही सदनों से विधेयक पास होने के बाद एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हो गई.
फिर जुलाई महीने में गृह मंत्रालय ने एमसीडी वॉर्डों के नए सिरे से परिसीमन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. समिति को चार महीने में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करनी थी, लेकिन करीब साढ़े तीन माह में इसे पूरा कर लिया गया. जिसके बाद एमसीडी वॉर्ड की संख्या 272 से घटकर 250 हो गई. इससे पहले दिल्ली एमसीडी में कुल 272 वॉर्ड थे.
इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद एमसीडी चुनाव का रास्ता साफ़ हो पाया.
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कैसे अलग हैं इस बार के चुनाव?
दिल्ली एमसीडी के एकीकरण के बाद पहली बार चुनाव हो रहे हैं. इससे पहले ये तीन हिस्से - नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन और ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में बंटे हुए थे.
इस बार दिल्ली नगर निगम के 250 वॉर्डों के लिए मतदान होंगे.
250 सीटों में से 42 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई हैं. इनमें 21 सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.
वहीं बची 208 सीटों में से 104 सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.
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कैसे होते हैं एमसीडी के चुनाव?
दिल्ली एमसीडी चुनाव में सीधे मेयर का चुनाव नहीं किया जाता बल्कि ये पार्षदों के ज़रिए होता है. जिस पार्टी के सबसे अधिक पार्षद जीतकर आते हैं, उसी पार्टी का मेयर होता है.
एमसीडी चुनाव की ज़िम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग की होती है. आयोग के प्रमुख विजय देव का कहना है कि इस बार भी चुनाव ईवीएम के ज़रिए कराए जाएंगे. सभी सीटों पर चुनाव एक ही चरण में होंगे.
कुल 13,665 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं और 1 करोड़ 46 लाख 73 हज़ार 847 वोटर हैं.
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पिछले चुनाव के नतीजे क्या कहते हैं?
आख़िरी एमसीडी चुनाव 2017 में हुए थे और तब वॉर्डों की कुल संख्या 272 थी. बीजेपी ने इनमें से 181 सीटों पर जीत दर्ज की थी, आप ने 48, कांग्रेस ने 30 और अन्य ने 11 सीटें जीती थीं. एमसीडी में बीजेपी की ये लगातार तीसरी जीत थी. 2017 में चुने गए तीनों मेयर बीजेपी पार्टी के ही थे.
साल 2012 के चुनावों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच था. चुनावों में बीजेपी को भारी बहुमत मिला था. वहीं 2007 में भी बीजेपी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी थी.
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क्यों अहम हैं एमसीडी के चुनाव?
हज़ारों करोड़ रुपये के बजट वाले दिल्ली एमसीडी के पास कई सारी शक्तियां होती हैं. इन शक्तियों के प्रयोग से कई स्थानीय समस्याओं का समाधान हो सकता है और एक बड़ी आबादी के हितों को साधा जा सकता है.
इन कामों का पार्टियों के वोट बैंक पर गहरा असर होता है. यही कारण है कि दिल्ली एमसीडी चुनाव में हर दल की दिलचस्पी होती है.
क्या हैं एमसीडी की शक्तियां?
टाउन प्लानिंग, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत अस्पतालों को चलाना, साफ़-सफ़ाई सुनिश्चित करना, जल संसाधनों के विकास के साथ जल निकासी को भी सुनिश्चित करना, अपने-अपने क्षेत्रों के जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड रखना, प्राइमरी स्कूलों का संचालन, ई-रिक्शा, रिक्शा और ठेलों को लाइसेंस देना और उनका नियमन करना, हाउस टैक्स से लेकर दूसरे तरह के टैक्सों की वसूली करना आदि.
दिल्ली सरकार और एमसीडी के कुछ अधिकार एक दूसरे से ओवरलैप करते हैं. उदाहरण के लिए जैसे 60 फ़ीट से अधिक चौड़ी सड़कों के निर्माण से जुड़ा कार्य जहां दिल्ली सरकार के अंतर्गत आता है, वहीं इससे कम एमसीडी के.
दिल्ली सरकार की ज़िम्मेदारी जहां बड़ी गाड़ियों को लाइसेंस देने की है, वहीं एमसीडी ई-रिक्शा जैसी छोटी गाड़ियों को लाइसेंस मुहैया कराती है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अधिकार ऐसे ही बंटे हैं.
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राजनीतिक दांव-पेंच
बीते 15 सालों से दिल्ली एमसीडी पर बीजेपी का राज है.
पिछले आठ सालों से दिल्ली की कमान आम आदमी पार्टी के पास है.
इस दौरान बीच में जो चुनाव हुए उसमें आम आदमी पार्टी की सीटें तो आईं, लेकिन वो मेयर अपना नहीं बनवा पाई.
ऐसे में आम आदमी पार्टी जहां एमसीडी पर भी अपना क़ब्ज़ा ज़माना चाहती है, वहीं बीजेपी अपनी पैठ बरक़रार रहना चाहती है, ताकि इसका फ़ायदा उन्हें आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी मिले.
मुक़ाबले में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के आगे कांग्रेस जानकारों के मुताबिक़ कमज़ोर है, लेकिन फिर भी पार्टी के कई स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार में अपनी ताक़त झोंकते नज़र आ रहे हैं.
वहीं आम आदमी पार्टी केजरीवाल के चेहरे के साथ ही दाव लगा रही है. पार्टी ने "एमसीडी में भी केजरीवाल" का नारा दिया है.
बीजेपी में प्रचार की कमान दिल्ली के सभी सातों सांसद, पूर्व मेयर और दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता संभाल रहे हैं.
बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अलावा इस बार एआईएमआईएम-एएसपी गठबंधन, जेडीयू और बीएसपी भी अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं.
दुनिया का सबसे बड़ा नगर निगम
दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 68 एमसीडी में आते हैं. एमसीडी के अंदर दिल्ली की 1 करोड़ से ज़्यादा आबादी आती है. आबादी के लिहाज से ये दुनिया की सबसे बड़ी नगर निगम में से एक है.
क्या हैं मुद्दे?
दिल्ली एमसीडी चुनाव के सबसे अहम मुद्दे हैं साफ़-सफ़ाई और प्रदूषण.
गाजीपुर, भलस्वा और ओखला - दिल्ली के तीन कूड़े के पहाड़ों को लेकर अक्सर राजनीति होती रहती है. आम आदमी पार्टी कूड़े के ढेर के लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार ठहराती है क्योंकि बीजेपी ही एमसीडी पर क़ाबिज़ है. वहीं बीजेपी फ़ंड को लेकर आम आदमी पार्टी को घेरती है.
केजरीवाल ने दावा किया है कि अगर उनकी पार्टी जीत जाती है तो वो विदेश से एक्सपर्ट बुलाकर कूड़े का ढेर हटवा देंगे. वहीं बीजेपी का कहना है कि अरविंद केजरीवाल चार साल पहले सोल गए थे, ये देखने के लिए कि नदी कैसे साफ होती है, लेकिन न यमुना साफ़ हुई न प्रदूषण कम हुआ.
पार्टी का मानना है कि उसने दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर और बिजली पर काफ़ी काम किया है, इसलिए उनकी वापसी तय है.
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बीजेपी ने केजरीवाल पर टिकट बेचने का भी आरोप लगाया है. इसके अलावा पार्टी ने गली-गली में शराब के ठेके खुलने को भी बड़ा मुद्दा बनाया है.
वहीं कांग्रेस का कहना है कि केजरीवाल दिल्ली की राजनीति बदलने आए थे, लेकिन स्थिति जस की तस है.
जेडीयू कोरोनाकाल के दौरान दिल्ली में पूर्वांचल के लोगों के कथित अपमान का मुद्दा उठा रही है. एआईएमआईएम बुनियादी मुद्दों के अलावा दिल्ली दंगों के व़क्त दिल्ली सरकार की कथित चुप्पी, जमातियों पर एफ़आईआर आदि का मुद्दा उठा रही है.
सड़कों पर अवैध अतिक्रमण और एमसीडी कर्मचारियों के वेतन भुगतान से जुड़े मुद्दे भी एमसीडी चुनाव के लिहाज़ से अहम माने जा रहे हैं. एमसीडी कर्मचारी सही समय पर वेतन न मिलने की सूरत में समय-समय पर हड़ताल पर जाने को मजबूर होते हैं.
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