मायावती पर आकर रुक जाता है महागठबंधन का हर रास्ता!
नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है-महागठबंधन। खासकर 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में अगर महागठबंधन बन गया तो बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी, सभी चाहते हैं कि महागठबंधन बने। अखिलेश यादव तो कम सीटें पाकर भी महागठबंधन के पक्ष में हैं, लेकिन इस मुद्दे पर न अभी तक बातचीत भी शुरू है। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीन बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़। तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है। इन राज्यों में चुनाव प्रचार जोरों पर है। इधर से राहुल गांधी औरर उधर से अमित शाह बिना रुके, बिना थके चुनावी दौरे कर रहे हैं। चुनावी शोर के बीच महागठबंधन नाम की चर्चा तक नहीं हो रही है। माना जा रहा था कि 2019 से पहले विधानसभा चुनावों में विपक्ष एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो, लेकिन अभी तक जो संकेत मिले हैं, वे महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं। तो क्या बीजेपी महागठबंधन बनने से रोकने के लिए किसी रणनीति पर काम कर रही या महागठबंधन वाले ही नहीं चाहते हैं कि महागठबंधन हो? करते हैं इन्हीं सवालों पर चर्चा।
महागठबंधन की शक्ति पर कोई संदेह नहीं, संदेह है तो महागठबंधन पर
कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस-जेडीएस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भावी महागठबंधन के भावी घटक दल एक मंच पर नजर आए। मायावती, अखिलेश यादव, चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, सोनिया गांधी। सभी ने मंच पर आकर फोटो खिंचवाई और बीजेपी को संदेश दिया कि 2019 में उन्हें महागठबंधन की अपार शक्ति से दो-दो हाथ करने होंगे। बात सही भी है, जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के तीन लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी को सपा-बसपा, आरएलडी ने कांग्रेस के समर्थन से धूल चटाई, उससे स्पष्ट है कि महागठबंधन की सरकार कितने दिन चलेगी, इसे छोड़ दीजिए, लेकिन महागठबंधन में इतना तो दम है कि वह बीजेपी के विजयरथ की लगाम खींच दे। यूपी के उपुचनावों की बात छोड़ दें तो बिहार का उदाहरण ले लीजिए। जहां नरेंद्र मोदी के तूफानी प्रचार के बाद भी बीजेपी को महागठबंधन ने करारी शिकस्त दे डाली। मतलब महागठबंधन की शक्ति पर कोई प्रश्न नहीं है। प्रश्न है कि 2019 में महागठबंधन बनेगा या नहीं बनेगा?
महागठबंधन पर पड़ रही महासियासत की मार
माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ेंगे। लेकिन चुनाव से ऐन पहले मायावती ने पासे पलट दिए। सबसे पहले बसपा ने मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उसके बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से निकलकर जनता कांग्रेस बनाने वाले अजीत जोगी के साथ गठजोड़ कर लिया। राजस्थान में तो कांग्रेस ने ही बसपा के साथ जाने से इनकार कर दिया। बसपा, कांग्रेस के साथ न आने से बीजेपी को निश्चित लाभ होगा। ये दोनों दल एक-दूसरे के वोट काटेंगे। विधानसभा चुनावों में बसपा और कांग्रेस के बीच तालमेल न हो पाना महागठबंधन के भावी अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। जब विधानसभा में ये दल साथ नहीं आ पा रहे तो लोकसभा चुनाव में आएंगे, इसकी क्या गारंटी है। वैसे यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है, इससे पहले मायावती ने कर्नाटक में भी कांग्रेस को झटका देते हुए जेडीएस से समझौता कर लिया था।
राष्ट्रीय स्तर पर न सही, पर क्या यूपी में बन पाएगा महागठबंधन
क्षेत्रीय दलों की अपनी शर्तें हैं। वे सीटों पर समझौता नहीं करना चाहते हैं। बिहार में एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के लेकर महासंग्राम मचा है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बेहद दुष्कर कार्य नजर आ रहा है, लेकिन क्या यूपी में महागठबंधन बन पाएगा? उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव हर बलिदान देने को तैयार हैं। मतलब सपा की ओर से कोई दिक्कत नहीं है। आरएलडी का इतना वजूद नहीं कि मोल-भाव कर सके। जो मिल जाएगा ठीक है। बात वापस जाकर दो दलों पर अटकती है- बसपा और कांग्रेस। मायावती कहती हैं कि कांग्रेस को यूपी महागठबंधन में कम सीटें दो, क्योंकि 2014 में पार्टी केवल 2 सीटें जीत सकी। खुद के लिए 40 सीटें मांग रही हैं, लेकिन 2014 में मायावती तो एक भी सीट नहीं जीत सकी थीं।
महागठबंधन बनने से रोकने के लिए बीजेपी की रणनीति
राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनना बेहद कठिन है। यह बात सभी जानते हैं, बीजेपी को भी पता है, लेकिन यूपी में इसकी संभावना है। यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से अमर सिंह उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए काम करते नजर आ रहे हैं। अमर सिंह का प्रमुख कार्य है- कैसे भी करके महागठबंधन की गांठ न पड़ने दो। अमर सिंह की बदौलत सपा में दोफाड़ का पहला लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। अखिलेश कुछ भी कहें पर चाचा शिवपाल यादव की नई पार्टी सपा को नुकसान पहुंचाएगी। दूसरी मुश्किल है मायावती का खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना। मायावती गठबंधन में सीटों पर समझौता न करने की शर्त पहले ही लाद चुकी हैं। वह कांग्रेस को कम से कम या यूं कहें कि बेहद सीटें देने के पक्ष में हैं, जो कि उसे स्वीकार नहीं होगा। कांग्रेस-बसपा के बीच खाई बढ़ाने के लिए भी सियासत जारी है। देखना होगा कि 2019 से पहले आखिर नतीजा क्या सामने आता है?